भारत के 13.1 प्रतिशत नशे के शिकार 20 साल से कम उम्र के लोग
भारत (India) में नशीली दवाओं और मादक द्रव्यों के सेवन में शामिल लगभग 13.1 प्रतिशत लोग 20 साल से कम उम्र के हैं, संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के एक शीर्ष अधिकारी ने गुरुवार को यह बात कही। ड्रग्स एंड क्राइम पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (यूएनओडीसी) के कार्यक्रम अधिकारी बिली बाटवेयर ने 'चिल्ड्रन मैटर-राइट टू ए ड्रग-फ्री चाइल्डहुड' पर इंटरनेशनल फोरम में बोलते हुए यह बात कही।
बाटवेयर ने कहा- बच्चों के खिलाफ हिंसा (violence), शोषण और यौन शोषण (Sexual Exploitation) के परिणामस्वरूप खराब मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य (physical health) के कारण बच्चों में नशीली दवाओं (drugs) और शराब के दुरुपयोग का खतरा बढ़ जाता है। मादक पदार्थों की लत वाले 10 में से नौ लोग 18 साल की उम्र से पहले ही इसका उपयोग करना शुरू कर देते हैं। अपनी 2021-25 की रणनीति में, यूएनओडीसी ने युवाओं और बच्चों की परिवर्तनकारी शक्ति का उपयोग करने को अपनी तीन क्रॉस-कटिंग प्रतिबद्धताओं में से एक के रूप में परिभाषित किया है।
बाल तस्करी (child trafficking), बाल श्रम (Child labour) और अपराधियों द्वारा शोषण के कारण अक्सर बच्चों का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य खराब हो जाता है, जिससे ड्रग्स और शराब के दुरुपयोग का खतरा बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि अपराध में बच्चों का शामिल होना ज्यादातर सामाजिक-आर्थिक कठिनाई और अवसरों की कमी के कारण होता है।
फोर्थ वेव फाउंडेशन (एफडब्ल्यूएफ) इंडिया के निदेशक सीसी जोसेफ ने कहा कि केरल में बच्चों में ड्रग्स के इस्तेमाल में तेजी से वृद्धि हुई है और ड्रग्स से संबंधित अपराध दर में भारी वृद्धि हुई है। जोसेफ ने कहा- बच्चों, बाल उपचार और बाल देखभाल प्रोटोकॉल के साथ काम करने के लिए प्रशिक्षित सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों की कमी राज्य में एक गंभीर मुद्दा है। केरल में एफडब्ल्यूएफ द्वारा चलाया जा रहा प्रोजेक्ट वीईएनडीए, देखभाल और उपचार के चक्र को प्रबंधिन करने के लिए क्षमता निर्माण की आवश्यकता को बताता है। यह कार्यक्रम स्कूल-केंद्रित हस्तक्षेपों के माध्यम से कम उम्र में स्वास्थ्य शिक्षा (health education) के अलावा, रोकथाम, उपचार, वसूली और दवा की मांग में कमी के बहु-आयामी दृष्टिकोण का पालन कर रहा है। कार्यक्रम को पूर्ण सामुदायिक भागीदारी के साथ डिजाइन और क्रियान्वित किया गया है।
ग्लोबल ड्रग पॉलिसी एडवोकेसी एफर्ट्स फोकस्ड ऑन चिल्ड्रन पर पैनल चर्चा में, द कंसर्नड फॉर वकिर्ंग चिल्ड्रन-इंडिया, एडवोकेसी एंड फंडरेजिंग की निदेशक कविता रत्ना ने कहा कि मादक द्रव्यों का सेवन उपयोगकर्ताओं और पीड़ितों दोनों के रूप में बच्चों को प्रभावित करता है। रत्ना ने कहा कि बच्चे भी राज्य सुरक्षा के हकदार हैं और यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि वह मादक द्रव्यों के सेवन से मुक्त समुदाय में रहें और बढ़ें।
शराब, तम्बाकू और नशीली दवाओं के उपयोग के कारण श्रीलंका में हर साल लगभग 40,000 लोगों की मौत का खुलासा करते हुए, नेशनल डेंजरस ड्रग्स कंट्रोल बोर्ड ऑफ श्रीलंका (एनडीडीसीबी) के अध्यक्ष आशाक्य नानयक्कारा ने कहा कि नशामुक्त बचपन बनाने के हमारे प्रयासों में रोकथाम शिक्षा प्रभावी होगी। सामुदायिक कार्रवाई के साथ-साथ सामाजिक परिवर्तन का एशिया क्षेत्र में जबरदस्त प्रभाव पड़ेगा।
अरुण कंदासामी, मनोरोग के प्रोफेसर, सेंटर फॉर एडिक्शन मेडिसिन, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज (निम्हान्स), बेंगलुरु ने कहा- 70 प्रतिशत किशोरों का व्यसन का पारिवारिक इतिहास है और वयस्कों का 43 प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि लगभग 61 प्रतिशत किशोरों और 32 प्रतिशत वयस्कों में मनमौजी कठिनाइयां हैं।
कंदासामी ने कहा- किशोर, जो नशे के लिए एक उच्च जोखिम समूह हैं, अक्सर इलाज के लिए देर से आते हैं। अगर उन्हें जल्दी पहचाना और इलाज किया जाए, तो अधिकांश जटिलताओं और परिणामों को कम किया जा सकता है।
आईएएनएस/RS