हृदय रोग विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है, "लाइफ सेविंग (जीवन रक्षक) कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन या सीपीआर प्रक्रिया केवल डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिक्स तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि सभी को बताई जानी चाहिए।"
सीपीआर(CPR) एक लाइफ सेविंग(Life saving) प्रक्रिया है जिसका उपयोग तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति के दिल ने धड़कना बंद कर दिया हो या किसी आपात स्थिति में उसकी सांस रुक गई हो।
विशेष रूप से युवा आबादी में अचानक कार्डियक अरेस्ट (Cardiac arrest) के कारण मृत्यु के बढ़ते मामलों के बीच, एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि भारत में सर्वाइवल दर(Survival ratio) वर्तमान में 1.05 प्रतिशत है, जो आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं की उपलब्धता, त्वरित बाईस्टैंडर सीपीआर और डिफिब्रिलेशन तक पहुंच पर निर्भर है।
कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया(Cardiological society of India) के अनुसार, भारत में सामान्य आबादी का केवल 2 प्रतिशत ही सीपीआर करने के बारे में जानता है, जो कि 30 प्रतिशत के अंतरराष्ट्रीय औसत से काफी कम है।
गुरुग्राम मैक्स हॉस्पिटल के एसोसिएट डायरेक्टर-इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी डॉ. अरुण कुमार गुप्ता ने आईएएनएस को बताया कि यदि कार्डियक अरेस्ट के 3 मिनट के भीतर सीपीआर दिया जाए, तो इससे बचने की संभावना बढ़ जाती है।
माहिम में पीडी हिंदुजा हॉस्पिटल और एमआरसी के डॉक्टर खुसरव बाजन ने आईएएनएस को बताया कि सीपीआर केवल डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिक्स तक ही सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि वास्तव में सभी को बतानी चाहिए। सीपीआर तकनीक स्कूली बच्चों, पुलिसकर्मियों, फायरमैनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, जिम गाइडों को सिखाई जानी चाहिए।
सीपीआर आमतौर पर कब किया जाना चाहिए?
इस सवाल के जवाब में डॉ. बाजन ने कहा कि सीपीआर तब किया जाता है जब कोई व्यक्ति कार्डियक अरेस्ट की स्थिति में होता है, जिसमें हृदय मस्तिष्क जैसे महत्वपूर्ण अंगों में रक्त पंप करना बंद कर देता है।
उन्होंने कहा कि कार्डियक अरेस्ट(Cardiac arrest) की पहचान तब की जा सकती है जब पीड़ित अचानक पूरी तरह होश खो बैठता है और सांस लेना बंद कर देता है। हर किसी को पता होना चाहिए कि बर्बाद किया गया हर मिनट मस्तिष्क को 10 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचा सकता है। डॉक्टर ने कहा कि एक बार कार्डियक अरेस्ट की पुष्टि हो जाए तो मदद के लिए तत्काल एम्बुलेंस(Ambulance) को फोन करना और नजदीकी अस्पताल को सूचित करना चाहिए।
सीपीआर कैसे करें?
इस सवाल के जवाब में डॉक्टर ने कहा कि सीपीआर में दो कॉम्पोनेंट्स होते हैं, पहला छाती को दबाना और दूसरा मुंह से सांस देना, जिसे माउथ टू माउथ रेस्पिरेशन(Mouth to mouth respiration) कहते हैं। यह मस्तिष्क और गुर्दे(Brain and Kidney) जैसे महत्वपूर्ण अंगों में रक्त संचार को बनाए रखने में मदद करता है।
डॉक्टर गुप्ता ने समझाया कि यदि कार्डियक अरेस्ट के समय एक बचावकर्ता है, तो आपको केवल 100 कंप्रेशन प्रति मिनट की गति से छाती को दबाना चाहिए। अगर दो बचावकर्ता हैं, तो एक को छाती को दबाना चाहिए और दूसरे को 15:2 के अनुपात के साथ मुंह से सांस देना चाहिए, जिसका अर्थ है 15 दबाव और दो बार सांस देना।
डॉ. बाजन ने आईएएनएस को बताया कि सीपीआर करने वाले को छाती की हड्डी के बीच में कम से कम 100/प्रति मिनट की दर से और 2 से 2.4 इंच की गहराई तक दबाव देना चाहिए।
डॉक्टरों ने भारतीय आबादी में सीपीआर की समझ बढ़ाने के लिए स्वास्थ्य सेवा में शामिल सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों द्वारा ज्यादा से ज्यादा जागरूकता कार्यक्रमों का आह्वान किया है। डॉक्टर गुप्ता ने आईएएनएस को बताया कि आम जनता के लिए सीपीआर की जानकारी बहुत जरूरी है क्योंकि इसमें गंभीर परिस्थितियों में जान बचाने की शक्ति है। कार्डिएक अरेस्ट अचानक और बिना किसी पूर्व सूचना के हो सकता है। सीपीआर से अचानक कार्डियक अरेस्ट से पीड़ित मरीज की 70 फीसदी से ज्यादा जान बचाई जा सकती है।(IANS/RR)