

केतन देसाई (Dr. Ketan Desai) के विवादित करियर की कहानी, एक ऐसे डॉक्टर जो कभी भारत की सबसे बड़ी मेडिकल संस्था मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) और फिर वर्ल्ड मेडिकल एसोसिएशन (WMA) के अध्यक्ष रहे थे। लेकिन उनके नाम पर भ्रष्टाचार और शक्ति के दुरुपयोग के कई गंभीर आरोप लगे हैं। फिर भी, हर विवाद के बाद वो दोबारा से ऊँचे पदों पर लौटते रहे हैं। इस कहानी में है कि भारत की मेडिकल व्यवस्था में पैसा, राजनीति और प्रभाव कैसे ईमानदारी से ज़्यादा ताकतवर साबित होती है।
डॉ. केतन देसाई गुजरात के अहमदाबाद के बी.जे. मेडिकल कॉलेज में यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख और प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास एमबीबीएस, एमएस (जनरल सर्जरी), एमसीएच (यूरोलॉजी) जैसी डिग्रियाँ हैं और वो रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जन्स (एडिनबर्ग) के फेलो भी हैं। उन्होंने अपने शुरुआती वर्षों में कई छात्रों को प्रशिक्षित किया और चिकित्सा क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई।
दिसंबर 2001में दिल्ली हाईकोर्ट ने डॉ. देसाई को MCI के अध्यक्ष पद से हटाने का आदेश दिया। उसके बाद अदालत ने पाया कि उन्होंने भ्रष्टाचार और शक्ति के दुरुपयोग किए हैं। जांच में यह भी सामने आया कि उनके परिवार के नाम पर करीब ₹65 लाख के बैंक ड्राफ्ट जारी हुए थे। कोर्ट ने कहा कि देसाई के कार्यकाल में MCI "भ्रष्टाचार का अड्डा" बन गई थी। आपको बता दें की यह उनके करियर की पहली और बड़ी गिरावट थी।
फिर कुछ साल बाद ही देसाई फिर से मेडिकल संस्थाओं में सक्रिय हो गए। उसके बाद वो 2007 में वर्ल्ड मेडिकल एसोसिएशन (WMA) के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़े, और 2009 में वो बिना विरोध के अध्यक्ष-निर्वाचित बन गए। इस वापसी ने दिखाया कि उनकी राजनीतिक और संस्थागत पकड़ कितनी मजबूत थी।
अप्रैल 2010 में CBI ने डॉ. देसाई को गिरफ्तार किया। क्योंकि उन पर आरोप था कि उन्होंने पंजाब के ग्यान सागर मेडिकल कॉलेज से ₹2 करोड़ की रिश्वत ली थी, ताकि कॉलेज को मेडिकल काउंसिल से मंजूरी दिलाई जा सके। उसके बाद चौकाने वाली बात यह हुई की CBI को उनके घर से नकदी और दस्तावेज़ मिले। इस घोटाले के बाद सरकार ने MCI को भंग कर दिया और उसकी जगह एक Board of Governors बनाया गया। आपको बता दें इसी साल उनके खिलाफ लखनऊ में एक और केस दर्ज हुआ, जिसमें उन पर एक अन्य कॉलेज को अवैध मंजूरी देने का आरोप लगा।
तीन साल के बाद, 2013 में देसाई (Dr. Ketan Desai) ने फिर अपनी छवि सुधारने की कोशिश की, क्योंकि रिपोर्ट्स के अनुसार, उनका मेडिकल लाइसेंस फिर से बहाल किया गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनके एक केस की सुनवाई पर रोक लगा दी थी, और दूसरे केस में कुछ आरोप हट गए थे। इसी दौरान इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने WMA को सूचित किया कि देसाई पर लगे सारे आरोप हटा लिए गए हैं। इसके बाद WMA ने उनकी निलंबन समाप्त कर दिया। हालाँकि बाद में खुलासा हुआ कि कम से कम दो केस अब भी भारतीय अदालतों में लंबित थे।
उसके बाद जब 2016 में देसाई के WMA अध्यक्ष बनने की घोषणा हुई, तो दुनियाभर के मेडिकल विशेषज्ञों ने कड़ी आलोचना की। लोगों ने सवाल उठाया कि भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे व्यक्ति को कैसे विश्व की नैतिक संस्था का प्रमुख बनाया जा सकता है। देसाई ने सभी आरोपों से इनकार करते हुए खुद को "बलि का बकरा" बताया। लेकिन आलोचक मानते रहे कि इससे मेडिकल संस्थाओं की साख को गहरी चोट पहुँची है।
अक्टूबर 2016 में देसाई ने ताइवान में WMA की बैठक के दौरान अध्यक्ष पद की शपथ ली। आपको बता दें की भारत में उनके केस अभी भी चल रहे थे, लेकिन संगठन ने उन पर कोई रोक नहीं लगाई। उसके बाद कई विशेषज्ञों ने कहा कि WMA ने IMA की जानकारी पर भरोसा कर के गलती की है, बिना यह जांचे कि कानूनी मामले वास्तव में समाप्त हुए हैं या नहीं। फिर भी, देसाई ने पूरा कार्यकाल बिना किसी रुकावट के पूरा किया।
दो दशक बाद भी देसाई भारतीय चिकित्सा संस्थानों में प्रभावशाली बने हुए हैं। सितंबर 2024 में Federation of All India Medical Associations (FAIMA) ने IMA को पत्र लिखकर देसाई की "मुख्य संरक्षक" (Chief Patron) की भूमिका पर पुनर्विचार करने की माँग की थी। उसके बाद FAIMA ने कहा कि उनकी उपस्थिति से संगठन की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहें हैं। इस विवाद ने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी कि क्या ईमानदारी से सुधार संभव है, जब की नेतृत्व में वही लोग बने रहें हैं जिन पर कभी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हों।
प्रमुख घटनाएँ (Timeline)
2001: दिल्ली हाईकोर्ट ने MCI से हटाया
2007: मेडिकल संस्थानों में वापसी
2009: WMA अध्यक्ष-निर्वाचित
2010: ₹2 करोड़ रिश्वत मामले में CBI गिरफ्तारी
2013: लाइसेंस बहाल, केसों में राहत
2015: वैश्विक आलोचना
2016: WMA अध्यक्ष बने
2024: फिर से विवाद और जवाबदेही की माँग
डॉ. केतन देसाई (Dr. Ketan Desai) की कहानी हमे यह सिखाती है कि भारत के मेडिकल सिस्टम में प्रभाव और संपर्क अक्सर नैतिकता और पारदर्शिता से ज़्यादा मजबूत साबित होते हैं। हर बार जब उनका करियर गिरा, फिर वो कुछ सालों में उठ खड़े हुए। उनका मामला इस बात का प्रतीक है कि भारत की चिकित्सा व्यवस्था में सुधार की बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन जवाबदेही की प्रक्रिया अब भी कमजोर है। (Rh/PS)