क्या है प्रेगनेंसी टूरिज्म ? जानें क्यों लद्दाख में गर्भवती होने के लिए आती हैं विदेशी महिलाएं

लद्दाख में एक गांव है, जिसके बारे में यह बताया जा रहा है कि वहां विदेशी महिलाएं गर्भवती होने के लिए आती हैं।
Pregnancy Tourism: लद्दाख में एक गांव है, जिसके बारे में यह बताया जा रहा है कि वहां विदेशी महिलाएं गर्भवती होने के लिए आती हैं। (Wikimedia Commons)
Pregnancy Tourism: लद्दाख में एक गांव है, जिसके बारे में यह बताया जा रहा है कि वहां विदेशी महिलाएं गर्भवती होने के लिए आती हैं। (Wikimedia Commons)
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Pregnancy Tourism: हमारे देश में मेडिकल टूरिज्म, एडवेंचर टूरिज्म, वाइल्ड लाइफ टूरिज्म, कल्चर टूरिज्म, इको टूरिज्म आदि जैसे कई प्रकार के पर्यटन मौजूद हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में भारत में एक ऐसा टूरिज्म का बात हो रहा है, जिस पर खुलकर चर्चा नहीं होता है। इसका नाम प्रेगनेंसी टूरिज्म है। लद्दाख में एक गांव है, जिसके बारे में यह बताया जा रहा है कि वहां विदेशी महिलाएं गर्भवती होने के लिए आती हैं। आइए जानते हैं इसके पीछे क्या रहस्य है।

शुद्ध आर्यों का गांव है यहां

लद्दाख की राजधानी लेह से दक्षिण पश्चिम में करीब 163 किमी दूर स्थित बियामा, गारकोन, दारचिक, दाह और हानू गांव हैं। बताया जाता है कि इन गावों में ब्रोकपा समुदाय के लोग रहते हैं, जो ये दावा करते हैं कि वे दुनिया के आखिरी बचे हुए शुद्ध आर्य हैं। नाज़ी-युग के नस्लीय सिद्धांतकारों ने शुद्ध नस्ल को मास्टर रेस कहा था। इसी आधार पर जर्मनी में यहूदियों का नरसंहार किया गया था। मास्टर रेस वालों की यह खासियत है कि वे लंबे होते हैं उनका रंग गोरे होता हैं, उनकी आंखें नीली होती हैं और जबड़े बहुत मजबूत होते हैं। ऐसा माना जाता है की वे अधिक बुद्धिमान भी होते हैं।

इन गावों में ब्रोकपा समुदाय के लोग रहते हैं, जो ये दावा करते हैं कि वे दुनिया के आखिरी बचे हुए शुद्ध आर्य हैं। (Wikimedia Commons)
इन गावों में ब्रोकपा समुदाय के लोग रहते हैं, जो ये दावा करते हैं कि वे दुनिया के आखिरी बचे हुए शुद्ध आर्य हैं। (Wikimedia Commons)

क्यों आती हैं विदेशी महिलाएं

इसका कारण यह है कि सातवीं शताब्दी में सिकंदर के जाने के बाद उसके कई लोग सिंधु घाटी में ही रह गए थे और लद्दाख में रहने वाले ब्रोकपास खुद को सिकंदर की खोई हुई सेना के सदस्यों के रूप में पहचानते हैं, इनको अंतिम शुद्ध-रक्त आर्य या स्वामी जाति माना जाता है। और इसी कारण यूरोपीय महिलाएं कथित तौर पर "शुद्ध बीज" घर ले जाने के लिए ब्रोक्पा लोगों की तलाश में यहां आती हैं।

वे केवल अपनी शारीरिक बनावट और अपने शुद्ध आर्य होने के बारे में विरासत में मिली कुछ कहानियों, लोककथाओं और मिथकों के आधार पर खुद को शुद्ध आर्य होने का दावा करते हैं। परंतु शुद्ध आर्य जाति होने के उनके ये दावे की कोई भी प्रामाणिकता नहीं है। उनके दावों को साबित करने के लिए कोई आनुवंशिक परीक्षण या कोई वैज्ञानिक उपाय नहीं किया गया।

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