Abrahamic New Religion : मुस्लिम बाहुल्य देश अरब में एक नया धर्म अस्तित्व में आया है, जिसका नाम अब्राहम बताया जा रहा है। अब्राहम धर्म दुनिया का नवीनतम धर्म है, जिसको लेकर पिछले कई सालों से बहस चल रही थी। कुछ एक्सपर्ट का मानना है कि यह सिर्फ एक धार्मिक प्रोजेक्ट है, जिसका लक्ष्य इस्लाम, ईसाई और यहूदी धर्मों के बीच व्याप्त समानता के कारण उनके बीच की दूरियों और मतभेदों को मिटाना है। इन्हीं तीन धर्मों को वास्तव में अब्राहमी धर्म की कैटेगरी में रखा जाता है। इस नए धर्म के बनने के बाद अब लोगों के मन में ये सवाल उठता है कि एक नया धर्म आखिर किस आधार पर बनाया जाता है?
वास्तव में मानव जाति की उत्पत्ति के समय कोई धर्म नहीं था। जैसे-जैसे मानव सभ्यता विकसित होती गई, धर्म से जुड़ी मान्यताएं भी सामने आने लगीं। जो कुछ मनुष्य के लिए सही था, उसे ही धर्म में जगह मिली। अर्थात् एक तरह से धर्म से ही मनुष्य संचालित होने लगें और धर्म ने ही मनुष्य को सिखाया कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं। प्राचीन भारतीय शास्त्रों में कहा गया है कि “धरणात इति धर्म:” यानी जो धारण किया जा सके या जो अपनाया जा सके, वही धर्म है।
धर्म का उद्देश्य केवल परोपकार और मानवता है। भले ही धर्म का मतलब हर संप्रदाय ने अलग-अलग होता है लेकिन यह पूरी तरह से परोपकार और मानवता पर ही आधारित है। अब यदि समाज में किसी नए धर्म की स्थापना करनी है तो सबसे पहले ऐसे विचार और मान्यताओं की जरूरत होती है, जिन्हें लोग समझें-जानें और अपनाएं। उस धर्म की एक भाषा और साहित्य की रचना करनी पड़ेगी। कुल मिलाकर इसे सर्वमान्य होना चाहिए या अधिक से अधिक लोगों से इसे मान्यता मिलनी चाहिए। ऐसा करने में सफलता मिलने पर ही नए धर्म की समाज में स्थापना होती है।
नए धर्म अब्राहम की बात की जाए, तो इसे बनाने के पीछे सबसे अहम विचार यही है कि इसके लिए कोई धर्मग्रंथ ही नहीं है। इसका कोई अस्तित्व नहीं है और न ही कोई अनुयायी है। इसका असल उद्देश्य केवल आपसी मतभेद को दूर कर पूरी दुनिया में शांति की स्थापना करना है।