चितेरी कला को एक नई पहचान दे रहे है युवा और बुजुर्ग की जोड़ी

चितेरी कला को मराठा युग में विशेष पहचान मिली, लेकिन प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद चितेरी कला मंदिरों, महलों से हटकर लोगों के घरों की दीवारों तक सिमट कर रह गई।
Chiteri Arts -  पारंपरिक रूप से दीवारों पर होने वाली चितेरी को अब बैग्स, पर्स, डेकोरेटिव आइटम्स बनाया जा रहा है । (Wikimedia  Commons)
Chiteri Arts - पारंपरिक रूप से दीवारों पर होने वाली चितेरी को अब बैग्स, पर्स, डेकोरेटिव आइटम्स बनाया जा रहा है । (Wikimedia Commons)
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Chiteri Arts - चितेरी कला को मधुबनी, कांगड़ा, मारवाड़ी, मुगल शैली की चित्रकारी की तरह ख्याति नहीं मिली हो, लेकिन अब युवा इस पर शोध कर रहे हैं। झांसी में एक युवा और बुजुर्ग की जोड़ी एकसाथ मिलकर चितेरी कला को वह कला जो समय के साथ लोग भूलते जा रहे है उसको लोगों के बीच नए रूप में प्रदर्शित कर रहे है । पारंपरिक रूप से दीवारों पर होने वाली चितेरी को अब बैग्स, पर्स, डेकोरेटिव आइटम्स बनाया जा रहा है और लोग इसे काफी पसंद कर रहे हैं और इसके ऑर्डर भी दे रहे हैं।

क्या इतिहास है चितेरी कला का?

चितेरी कला को मराठा युग में विशेष पहचान मिली, लेकिन प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद चितेरी कला मंदिरों, महलों से हटकर लोगों के घरों की दीवारों तक सिमट कर रह गई। चितेरी कला में सधे अभ्यास एवं रंगों के सही उपयोग से एक मिनट में सामान्य आकार का चित्र दीवार पर चित्रित हो सकता है। बताया कि भले ही इस कला को वनस्पतियों से तैयार होते थे रंग

चिकनी सतह पर तूलिका से चित्रांकन चितेरी कला की विशेष पहचान मानी जाती है। इसके रंगों को बनाने के लिए वनस्पतियों का प्रयोग किया जाता था। जहां गेंदे से पीला रंग बनता था तो चुकंदर से लाल, टेसू से गुलाबी, हल्दी से पीला, चूने से सफेद, पलाश से नीला रंग बनाकर प्रयोग में लाया जाता था। वर्तमान में फ्लोरा सेंट पाउडर को गोंद अथवा फेवीकोल में मिलाकर रंग तैयार किए जाते हैं।

बैग, हैंडबैग, झोले, गमछे पर चितेरी डिजाइन की जा रही है।(Wikimedia  Commons)
बैग, हैंडबैग, झोले, गमछे पर चितेरी डिजाइन की जा रही है।(Wikimedia Commons)

चितेरी कला को अलग अंदाज में दिखाया

इसलिए अब ये जोड़ी इस चितेरी को एक नए अंदाज में लोगों के बीच ला रहे हैं। उन्होंने बैग, हैंडबैग, झोले, गमछे पर चितेरी उकेर रहे हैं। इसके साथ ही कई अन्य वस्तुओं पर भी चितेरी डिजाइन की जा रही है।युवाओं को भी जोड़ने का प्रयास परशुराम गुप्ता के युवा साथी 19 साल के सबत खाल्दी ने बताया कि वह अपने बड़े बुजुर्गों से चितेरी के बारे में सुना करते थे। लेकिन, डिजाइन कभी दिखती नहीं थी। इसके बाद उन्होंने पत्थरों और प्लेट जैसे चीजों पर चितेरी बनानी शुरू की. अब वह प्रोग्राम में दी जाने वाली ट्रॉफी और मोमेंटो भी चितेरी डिजाइन बनाई जा रही है।इसके लिए लोग ऑर्डर भी दे रहे हैं।

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