विवाद से वकालत तक: जानें कैसे क्लासिक बनीं ‘अश्लील’ किताबें !

भारतीय साहित्य सिर्फ़ कल्पना या मनोरंजन तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि उसने समाज की उन सच्चाइयों को भी उजागर किया है, जिन्हें अक्सर पर्दे के पीछे छुपा दिया जाता है।
कुछ विवादास्पद किताबो की तस्वीर
विवाद से वकालत तकAi
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Summary
  • भारतीय और विश्व साहित्य में कई ऐसी कृतियाँ हैं जिन्होंने धर्म, जाति, स्त्री स्वतंत्रता, यौन नैतिकता और मनोविज्ञान जैसे संवेदनशील विषयों को खुलकर सामने रखा।

  • इन रचनाओं पर अश्लीलता, धार्मिक भावनाएँ आहत करने और नैतिकता तोड़ने के आरोप लगे, मुकदमे चले और कई जगह प्रतिबंध भी लगाए गए।

  • समय के साथ अदालतों और साहित्यिक विमर्श ने यह स्पष्ट किया कि यथार्थ का साहसिक चित्रण अश्लीलता नहीं

भारतीय साहित्य सिर्फ़ कल्पना या मनोरंजन तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि उसने समाज की उन सच्चाइयों को भी उजागर किया है, जिन्हें अक्सर पर्दे के पीछे छुपा दिया जाता है। जब-जब लेखकों ने धर्म, जाति, यौन नैतिकता, स्त्री स्वतंत्रता और इंसानी मनोविज्ञान जैसे कॉन्ट्रोवर्शियल विषयों को खुलकर शब्दों में ढाला, तब-तब उनकी रचनाएँ विवादों के घेरे में आ गईं। ‘लिहाफ’ से लेकर ‘लज्जा’, ‘प्रजापति’, ‘संसकार’, ‘लेडी चैटरलीज़ लवर’ और ‘हमज़ाद’ जैसी किताबें इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। इन कृतियों पर अश्लीलता, धार्मिक भावनाएँ आहत करने और नैतिकता तोड़ने जैसे आरोप लगे, मुकदमे चले, प्रतिबंध लगे और लेखकों को सामाजिक बहिष्कार तक झेलना पड़ा। लेकिन समय के साथ यही किताबें साहित्य की अमूल्य धरोहर बन गईं। सवाल यही है क्या ये किताबें सच में अश्लील थीं, या समाज सच से डर गया था? आइए इसका जवाब ढूंढते हैं।

‘संसकार’ – यू. आर. अनंतमूर्ति

‘संसकार’ कन्नड़ साहित्य के प्रसिद्ध लेखक यू. आर. अनंतमूर्ति का एक बहुचर्चित उपन्यास है, जो पहली बार 1965 में प्रकाशित हुआ था। यह उपन्यास भारतीय समाज की ब्राह्मणवादी परंपराओं (Brahman), धार्मिक रूढ़ियों और यौन नैतिकता पर तीखे सवाल खड़े करती है। उपन्यास की कहानी एक ब्राह्मण समुदाय के भीतर चलने वाले नैतिक संघर्षों पर आधारित है, जहाँ धर्म, कर्म और इच्छाओं के बीच टकराव दिखाया गया है। पुस्तक में न केवल जाति व्यवस्था की कठोरता को उजागर किया गया, बल्कि स्त्री-पुरुष संबंधों और दबी हुई यौन इच्छाओं को भी खुलकर सामने रखा गया। यही कारण था कि इसके प्रकाशित होते ही कई धार्मिक और रूढ़िवादी संगठनों ने इसे अश्लील और सनातन मूल्यों के खिलाफ बताया। खास तौर पर ब्राह्मण समाज के कुछ वर्गों ने इसे परंपरागत सोच पर चोट मानते हुए इसका विरोध किया। विरोध प्रदर्शनों और आलोचनाओं के बावजूद साहित्यिक जगत में इसे आधुनिक भारतीय साहित्य की एक क्रांतिकारी कृति माना गया। बाद में इस पर आधारित फिल्म भी बनी, जिसने विवाद को और बढ़ाया। समय के साथ ‘संसकार’ को केवल यौन विषयों की किताब नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की आवाज़ के रूप में स्वीकार किया गया।

‘लज्जा’ – तस्लीमा नसरीन

‘लज्जा’ बांग्ला भाषा की चर्चित और अत्यंत विवादित कृति है, जिसे लेखिका तस्लीमा नसरीन ने 1993 में लिखा था। यह उपन्यास मुख्य रूप से बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू परिवारों पर हो रहे अत्याचार, धार्मिक कट्टरता, साम्प्रदायिक हिंसा और महिलाओं पर होने वाले यौन शोषण को केंद्र में रखता है। किताब के प्रकाशन के तुरंत बाद ही इस पर यह आरोप लगा कि इसमें धर्म की आलोचना, यौन हिंसा के स्पष्ट वर्णन और स्त्री स्वतंत्रता को लेकर बेहद खुले विचार प्रस्तुत किए गए हैं, जो समाज और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाते हैं। बांग्लादेश में कट्टरपंथी संगठनों ने इसका तीखा विरोध किया, सड़कों पर प्रदर्शन हुए और लेखिका को जान से मारने की धमकियाँ तक तक दी गईं। इसी दबाव में बांग्लादेश सरकार ने इस किताब पर प्रतिबंध (Ban) लगा दिया। विवाद की आँच भारत तक भी पहुँची और कुछ समय के लिए भारत के कुछ हिस्सों में भी इस पर रोक लगी। ‘लज्जा’ के कारण तस्लीमा नसरीन को अंततः बांग्लादेश छोड़ना पड़ा और उन्हें निर्वासन का जीवन जीना पड़ा। हालांकि समर्थकों का कहना है कि यह किताब अश्लील नहीं, बल्कि सामाजिक सच्चाई और स्त्री पीड़ा का साहसिक दस्तावेज़ है, जो समाज को आईना दिखाती है।

‘प्रजापति’ – सामरेश बसु

सामरेश बसु द्वारा लिखा गया उपन्यास प्रजापति वर्ष 1967 में प्रकाशित हुआ और आते ही बंगाल के साहित्यिक व सामाजिक जगत में भारी विवाद का कारण बन गया। यह उपन्यास एक युवा व्यक्ति के जीवन, उसकी यौन इच्छाओं और समाज से टकराव को बेहद खुले और यथार्थवादी अंदाज़ में पेश करता है। इसी स्पष्ट यौन चित्रण के कारण तत्कालीन समाज और कई साहित्यिक समूहों ने इसे अश्लील (Vulgar) करार दिया। विरोध इतना बढ़ा कि मामला अदालत तक पहुँच गया। कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस उपन्यास को अश्लील मानते हुए इसके खिलाफ फैसला दिया और लेखक पर भी सवाल उठे।

उस दौर में यह बहस छिड़ गई कि साहित्य की आज़ादी की सीमा कहाँ तक होनी चाहिए। हालांकि, यह विवाद यहीं खत्म नहीं हुआ। लगभग 18 साल बाद, 1985 में, मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा, जहाँ कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी रचना को उसके साहित्यिक उद्देश्य और सामाजिक संदर्भ में देखा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने ‘प्रजापति’ को अश्लील मानने से इनकार करते हुए सामरेश बसु को बरी कर दिया। यह फैसला भारतीय साहित्य और कानून के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना गया, क्योंकि इसने यह स्पष्ट किया कि यथार्थ का चित्रण अपने आप में अश्लीलता नहीं है। ‘प्रजापति’ आज भी उस बहस की मिसाल है, जहाँ साहित्य, नैतिकता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आमने-सामने खड़ी दिखती है।

‘लिहाफ’ – इस्मत चुगताई

यह उर्दू साहित्य की सबसे चर्चित और विवादित कहानियों में गिनी जाती है। यह कहानी पहली बार 1942 में प्रकाशित हुई और इसके आते ही साहित्यिक और सामाजिक हलकों में हलचल मच गई। ‘लिहाफ’ में इस्मत चुगताई ने एक बंद कमरे की दुनिया के ज़रिए स्त्री अकेलेपन, दबी हुई इच्छाओं और वैवाहिक उपेक्षा को बेहद प्रतीकात्मक ढंग से दिखाया। कहानी में इस्तेमाल किए गए समलैंगिक संकेतों और यौन प्रतीकों को लेकर तत्कालीन रूढ़िवादी समाज ने इसे अश्लील करार दिया। खास तौर पर कहानी में “लिहाफ के हिलने” जैसे बिंबों को लेकर यह आरोप लगाया गया कि लेखिका ने स्त्री-स्त्री संबंधों की ओर इशारा किया है।

इसी आधार पर ब्रिटिश भारत में इस्मत चुगताई पर अश्लीलता का मुकदमा चला, जो उस दौर में किसी महिला लेखिका के लिए बेहद साहसिक और चुनौतीपूर्ण स्थिति थी। अदालत में इस्मत चुगताई ने स्पष्ट कहा कि कहानी में कहीं भी प्रत्यक्ष यौन दृश्य नहीं हैं, बल्कि यह पाठकों की मानसिकता पर निर्भर करता है कि वे इसे कैसे समझते हैं। लंबी बहस के बाद अदालत ने उन्हें दोषमुक्त कर दिया। यह फैसला भारतीय साहित्य के इतिहास में एक मिसाल बन गया। आज ‘लिहाफ’ को अश्लील नहीं, बल्कि स्त्री अनुभव, दबे हुए यथार्थ और अभिव्यक्ति की आज़ादी की सशक्त कहानी माना जाता है, जिसने अपने समय से बहुत आगे की बात कही।

‘Lady Chatterley’s Lover’ – डी. एच. लॉरेंस

‘लेडी चैटरलीज़ लवर’ अंग्रेज़ लेखक डी. एच. लॉरेंस का चर्चित उपन्यास है, जिसे पहली बार 1928 में इटली में निजी रूप से प्रकाशित किया गया था। यह उपन्यास एक संभ्रांत महिला कॉनी चैटरली और उसके पति के नौकर ओलिवर मेलर्स के बीच प्रेम और शारीरिक संबंधों की कहानी कहता है। उस दौर में इस किताब में स्पष्ट यौन संबंधों, शारीरिक विवरण और अभद्र शब्दों के कारण इसे कई देशों में अश्लील माना गया। ब्रिटेन, अमेरिका और भारत जैसे देशों में इसके प्रकाशन और बिक्री पर रोक लगाने की कोशिशें हुईं।

भारत में यह मामला 1964 में “रंजीत डी. उदेशी बनाम महाराष्ट्र राज्य” केस के रूप में सामने आया, जब मुंबई के एक किताब विक्रेता पर IPC की धारा 292 (अश्लीलता) के तहत मुकदमा चला। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस उपन्यास के कुछ अंश यौन उत्तेजना पैदा करने वाले हैं और समाज की नैतिकता को नुकसान पहुँचा सकते हैं, इसलिए इसे भारत में अश्लील माना गया। कोर्ट ने इस फैसले में ब्रिटिश कानून के Hicklin Test का सहारा लिया।

हालाँकि समर्थकों का कहना था कि यह किताब सिर्फ़ सेक्स नहीं, बल्कि मानवीय भावनाओं, वर्ग भेद और स्त्री की दबी इच्छाओं पर बात करती है। समय के साथ यह उपन्यास दुनिया भर में साहित्यिक क्लासिक माना जाने लगा, लेकिन भारत में यह लंबे समय तक अश्लीलता और अभिव्यक्ति की आज़ादी के बीच बहस का प्रतीक बना रहा।

‘हमज़ाद’ – मनोहर श्याम जोशी

‘हमज़ाद’ हिंदी साहित्य के चर्चित और बहस वाले उपन्यासों में गिना जाता है, जिसे प्रसिद्ध लेखक मनोहर श्याम जोशी ने लिखा। यह उपन्यास अपने समय से काफी आगे का माना गया, क्योंकि इसमें लेखक ने इंसान के अंधेरे मनोविज्ञान, अकेलेपन, असुरक्षा और दबे हुए यौन भावों को बेहद बेबाकी से सामने रखा। किताब के प्रकाशित होते ही साहित्यिक दुनिया में इसे लेकर तीखी प्रतिक्रियाएँ सामने आईं। उस दौर के कई पारंपरिक और नैतिकतावादी लेखकों व आलोचकों ने ‘हमज़ाद’ पर अश्लीलता, सेक्सुअल प्रतीकों के अनुचित प्रयोग और मानसिक विकृति को बढ़ावा देने जैसे आरोप लगाए। उनका कहना था कि उपन्यास में संबंधों और इच्छाओं को जरूरत से ज्यादा नंगा दिखाया गया है।

हालाँकि, लेखक के समर्थकों और आधुनिक सोच वाले पाठकों ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया। उनका मानना था कि ‘हमज़ाद’ कोई अश्लील कृति नहीं, बल्कि समाज की बनावटी नैतिकता को आईना दिखाने वाला उपन्यास है। यह किताब पाठक को भावनात्मक रूप से झकझोरती है, चौंकाती है और यह एहसास कराती है कि इंसान के भीतर छुपा अंधेरा कितना गहरा हो सकता है। मुख्य किरदार का मनोविश्लेषण इतनी गहराई से किया गया है कि पाठक उसके प्रति आकर्षण और डर दोनों एक साथ महसूस करता है।[Rh]

कुछ विवादास्पद किताबो की तस्वीर
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