वर्तमान में सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) अधिक प्रासंगिक हैं। देश को उनके जैसे कम बोलने वाले, एक कर्ता, अप्रतिशोधी और राष्ट्रीय हित को आगे रखते हुए व्यक्तिगत मतभेदों को दफन करते वाले नेता की ज़रूरत है। यह बात सरदार पटेल के बारे में विस्तार से अध्ययन करने वाले लेखक उर्विश कोठारी ने कही।
उन्होंने गुजराती में सरदार पटेल पर कुछ किताबें लिखी हैं। इनमें से दो हैं 'सरदार: सचो मानस, सच्ची बात', 'सरदार एक दंतकथा नहीं, जीवन कथा'। वर्तमान में वह सरदार पटेल पर अंग्रेजी में एक किताब लिख रहे हैं।
आईएएनएस से बात करते हुए उर्विश कोठारी ने कहा कि जब मैं आज के राजनेताओं को सरदार पटेल का अनुसरण करने के बड़े-बड़े दावे करते हुए सुनता हूं, तो मुझे आश्चर्य होता है कि क्या उन्होंने पटेल को वास्तव में पढ़ा और समझा है, क्योंकि वह एक्शन मैन थे। देश का एकीकरण कराने वाले पटेल ने कभी इसका श्रेय लेने का दावा नहीं किया।
वह न ही प्रतिशोधी थे। इसका एक उदाहरण देते हुए कोठारी ने कहा, सरदार वल्लभभाई पटेल और जामनगर के शासक जमसाहेब के विचार कभी नहीं मिले, जब वे शासकों को अपने राज्यों को भारत (India) संघ में विलय करने के लिए मना रहे थे। जमसाहेब संयुक्त राज्य सौराष्ट्र की मांग का नेतृत्व कर रहे थे। इसे एक बाधा के रूप में देखते हुए जमसाहेब के भाई हिम्मतसिंहजी के माध्यम से सरदार वल्लभभाई उनके पास पहुंचे, उन्हें अपने दिल्ली आवास पर रात के खाने पर आमंत्रित किया और उन्हें अपने राज्य को भारत संघ में विलय करने के लिए राजी किया।
कोठारी ने कहा कि अहमदाबाद नगर निगम के स्तर पर भी, अगर पटेल का किसी अधिकारी से मतभेद था, लेकिन उन्हें लगा कि अधिकारी की ताकत का इस्तेमाल राष्ट्र निर्माण के लिए किया जा सकता है, तो वह बिना किसी हिचकिचाहट के पहुंचे।
अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में भी वल्लभभाई और उनके भाई विट्ठलभाई सुधारवादी थे। विट्ठलभाई पटेल का उदाहरण देते हुए कोठारी याद करते हैं कि विट्ठलभाई इंग्लैंड (England) के दौरे पर थे, जहां पटेल युवकों ने उनके लिए सम्मान समारोह का आयोजन किया। जब उन्हें पता चला कि सभी युवा पटेल हैं, तो उन्होंने युवाओं से सवाल किया कि इंग्लैंड पहुंचने के बाद भी क्या आप अपनी पटेल की पहचान से उठ नहीं पाए।
पटेल ने खुद को कभी भी पटेल या पाटीदार नेता के रूप में नहीं माना वह जातिवाद से ऊपर थे। कोठारी का मानना है कि सरदार वल्लभभाई पटेल को पटेल नेता कहना उनका अपमान है। वह सभी जातियों और पंथों के नेता थे। आज के नेताओं को उनके दर्शन का पालन करना चाहिए।
उन्हें लगता है कि किसी नेता या पार्टी द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए सरदार पटेल के नाम का इस्तेमाल करना भी उनका अपमान है।
जो लोग सरदार पटेल के गौरव की बात कर रहे हैं, उन्होंने कभी उन्हें समझने की कोशिश नहीं की।
उर्विश ने कहा कि दुख होता है जब सरदार पटेल को अन्य स्वतंत्रता सेनानियों (freedom fighters) या नेताओं को नीचा दिखाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अन्य नेताओं के साथ उनके मतभेद हो सकते हैं, लेकिन जब राष्ट्रीय हित की बात आती है, तो उन्होंने या तो मतभेदों को पीछे छोड़ दिया या उन्हें दफन कर दिया और कभी भी अहंकार को मुद्दा नहीं बनाया।
एक भी स्थापित करने की कोशिश की जा रही है कि सरदार पटेल के बिना महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) इतने बड़े नेता नहीं बनते।
दोनों नेताओं के बीच संबंधों के बारे में कोठारी का कहना है कि गांधी के आंदोलन में प्रवेश करने से पहले पटेल ने स्वतंत्रता आंदोलन में खुद के लिए जगह बनाई। लेकिन वह गांधी के विचारों व दर्शन से बहुत अधिक प्रभावित थे। गांधी ने सरदार पटेल को निखारा। तथ्य यह है कि गांधीजी के बिना हमें वह सरदार पटेल नहीं मिलता, जिसके बारे में हम सभी जानते और पढ़ते हैं।
उर्विश सुझाव देते हैं कि वर्तमान नेताओं को सरदार पटेल के जीवन से प्रशासन सीखना चाहिए, क्योंकि वह एक महान प्रशासक थे, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं किया जाता।
आईएएनएस/RS