भारतीय लोकाचार के विरुद्ध है समलैंगिक विवाह: केंद्र

केंद्र ने जोर देकर कहा कि समलैंगिक विवाह सामाजिक नैतिकता और भारतीय लोकाचार के अनुरूप नहीं है।
भारतीय लोकाचार के विरुद्ध है समलैंगिक विवाह: केंद्र(IANS)

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समलैंगिक विवाह

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 केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह(Homosexual Marriage) को मान्यता देने की दलीलों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) से कहा है कि पार्टनर के रूप में एक साथ रहना और समलैंगिक व्यक्तियों द्वारा यौन संबंध बनाना, जिसे अब अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है, भारतीय परिवार इकाई एक पति, एक पत्नी व उनसे पैदा हुए बच्चों के साथ तुलनीय नहीं है। केंद्र ने जोर देकर कहा कि समलैंगिक विवाह सामाजिक नैतिकता और भारतीय लोकाचार के अनुरूप नहीं है।

एक हलफनामे में, केंद्र सरकार ने कहा कि शादी की धारणा ही अनिवार्य रूप से विपरीत लिंग के दो व्यक्तियों के बीच एक संबंध को मानती है। यह परिभाषा सामाजिक, सांस्कृतिक और कानूनी रूप से विवाह के विचार और अवधारणा में शामिल है और इसे न्यायिक व्याख्या से कमजोर नहीं किया जाना चाहिए।

हलफनामे में कहा गया है कि विवाह संस्था और परिवार भारत में महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थाएं हैं, जो हमारे समाज के सदस्यों को सुरक्षा, समर्थन और सहयोग प्रदान करती हैं और बच्चों के पालन-पोषण और उनके मानसिक और मनोवैज्ञानिक पालन-पोषण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

केंद्र ने जोर देकर कहा कि याचिकाकर्ता देश के कानूनों के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं।

हलफनामे में कहा गया है कि सामाजिक नैतिकता के विचार विधायिका की वैधता पर विचार करने के लिए प्रासंगिक हैं और आगे, यह विधायिका के लिए है कि वह भारतीय लोकाचार के आधार पर ऐसी सामाजिक नैतिकता और सार्वजनिक स्वीकृति का न्याय करे और उसे लागू करे।

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यह प्रस्तुत किया गया है कि समान लिंग के व्यक्तियों के विवाह का पंजीकरण भी मौजूदा व्यक्तिगत के साथ-साथ संहिताबद्ध कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन करता है।

हलफनामे में कहा गया है कि एक पुरुष और महिला के बीच विवाह के पारंपरिक संबंध से ऊपर कोई भी मान्यता, कानून की भाषा के लिए अपूरणीय हिंसा का कारण बनेगी।

--आईएएनएस/VS

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