ग्लोबल वार्मिंग देश में अधिक महामारी व प्राकृतिक आपदाओं का कारण

सीवोटर द्वारा राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 50 प्रतिशत वयस्क भारतीयों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग से उन्हें पहले से ही नुकसान हो रहा है।
प्रदूषण/ग्लोबल वार्मिंग
प्रदूषण/ग्लोबल वार्मिंगUnsplash
Published on
3 min read

अधिकांश भारतीयों का मानना कि है कि ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) देश में अधिक महामारी व प्राकृतिक आपदाओं का कारण बनेगी। भारतीयों का यह विचार विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) की उस रिपोर्ट के बाद सामने आया है, जिसमें कहा गया है कि कोविड महामारी ने दुनिया भर में 6.54 मिलियन लोगों की जान ले ली है। कोविड के अलावा आई अन्य कई प्राकृतिक आपदाओं से अधिकतर भारतीयों (81 प्रतिशत) की समझ में आ गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के बारे में उन्हें चिंता करनी चाहिए।

यह खुलासा येल प्रोग्राम ऑफ क्लाइमेट चेंज कम्युनिकेशन की ओर से सीवोटर द्वारा किए गए एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण में हुआ है। सर्वेक्षण अक्टूबर 2021 से जनवरी 2022 के बीच किया गया। सर्वेक्षण में 18 वर्ष से अधिक आयु के 4,619 वयस्क भारतीय शामिल हुए।

प्रदूषण/ग्लोबल वार्मिंग
Ministry of Education का प्रौद्योगिकी आधारित पाठ्यक्रम पर जोर

सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 50 प्रतिशत वयस्क भारतीयों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग से उन्हें पहले से ही नुकसान हो रहा है। यह 2011 के अंत में किए गए इसी तरह के एक सर्वेक्षण के मुकाबले 29 प्रतिशत अधिक है।

इस संबंध में येल विश्वविद्यालय (Yale University) के डॉ. एंथनी लीसेरोविट्ज ने कहा कि भारत पहले से ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना कर रहा है। यहां के लोगों को रिकॉर्ड गर्मी, बाढ़ और तेज तूफान से जूझना पड़ रहा है। अब भारतीयों को भी लगने लगा है कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है।

सीवोटर फाउंडेशन के यशवंत देशमुख ने कहा कि भारत में बहुत से लोग मानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के खतरनाक प्रभाव होंगे। आधे या अधिक से लोग मानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग रोग- महामारियों (59 प्रतिशत), पौधों और जानवरों की प्रजातियों के विलुप्त होने (54 प्रतिशत), भयंकर गर्मी (54 प्रतिशत), तेज चक्रवात (52 प्रतिशत), और सूखा व पानी की कमी (50 प्रतिशत) का कारण बनेगी। दस में से चार से अधिक उत्तरदाताओं का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण अकाल और भोजन की कमी होगी (49 प्रतिशत) और भीषण बाढ़ (44 प्रतिशत) आएगी।

सर्वेक्षण में शामिल करीब 60 प्रतिशत ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग से बीमारी व महामारी की संख्या बढ़ेगी। अधिकतर भारतीयों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग से लू बढ़ेगी। हर दूसरा भारतीय मानता है कि इससे गंभीर चक्रवात, सूखा, पानी की कमी और अकाल जैसी स्थिति पैदा होगी। 10 में से लगभग 4 भारतीय देश में आने वाली विनाशक बाढ़ के लिए ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार मानते हैं।

सूखा
सूखाPixabay

ऑकलैंड विश्वविद्यालय के डॉ. जगदीश ठाकर ने कहा कि भारत में ग्लोबल वार्मिंग के खतरनाक परिणाम मानने वालों का प्रतिशत 2011 की तुलना में बढ़ी है। पहले की अपेक्षा अब ग्लोबल वार्मिंग को रोग महामारी (14 प्रतिशत अधिक), पौधों और जानवरों की प्रजातियों का विलुप्त होना (6 प्रतिशत अधिक), भीषण गर्मी (9 प्रतिशत अधिक), भीषण  चक्रवात (20 प्रतिशत), सूखा और पानी की कमी (5 प्रतिशत अधिक), अकाल और भोजन की कमी (2 प्रतिशत अधिक), और गंभीर बाढ़ (10 प्रतिशत अधिक) कारण मानते हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022 में भारतीय उपमहाद्वीप ने भीषण गर्मी, अभूतपूर्व बाढ़, अनिश्चित मानसून और खाद्यान्न फसलों में संभावित गिरावट देखी है। भारत में अधिकांश लोगों का मानना है कि गर्मी के दिनों की संख्या बढ़ी है। 56 प्रतिशत का कहना है कि उनके क्षेत्र में गर्म दिन अधिक हो गए हैं और 23 प्रतिशत का कहना है कि कोई बदलाव नहीं हुआ है।

आईएएनएस/RS

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com