वन्यजीव सप्ताह: जंगलों की खामोशी और विलुप्त होती प्रजातियों के बीच भारत का वैश्विक संदेश

नई दिल्ली, भारत न सिर्फ अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है, बल्कि जैव विविधता का एक अनूठा केंद्र है। उत्तर में बर्फीले हिमालय से लेकर दक्षिण के सदाबहार वर्षावनों तक, पश्चिम की तपती रेगिस्तानी रेत से लेकर पूर्व के नम और दलदली मैंग्रोव तक, भारत का हर कोना अनोखे पारिस्थितिक तंत्र का उदाहरण है।
भारत न सिर्फ अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है, बल्कि जैव विविधता का एक अनूठा केंद्र है।
भारत न सिर्फ अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है, बल्कि जैव विविधता का एक अनूठा केंद्र है।IANS
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इन्हीं तंत्रों के बीच पलते हैं लाखों वन्यजीव, जो न सिर्फ प्रकृति की सुंदरता को जीवंत करते हैं, बल्कि पारिस्थितिक संतुलन में भी अहम भूमिका निभाते हैं। इसी जिम्मेदारी के साथ भारत पूरे विश्व में जैव विविधता के गहराते संकट की ओर हर साल पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित करता है। क्योंकि चिंताजनक स्थिति वन्यजीवों के विलुप्त होने की है, जो सिर्फ भारत में नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर है।

आज हम छठे 'मास एक्सटिंक्शन' यानी सामूहिक विलुप्ति के मुहाने पर खड़े हैं। पहले ही पृथ्वी 5 विलुप्ति देख चुकी है। वर्तमान स्थिति बरकरार रहती है तो मानवीय गतिविधियों के कारण छठा विलुप्तीकरण भी हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र की यह भी चेतावनी रही है कि अगले कुछ दशकों में दस लाख प्रजातियां लुप्त हो सकती हैं।

लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट (Living Planet Report) की एक रिपोर्ट भी कहती है कि 1970 से 2016 तक पृथ्वी की वन्यजीव आबादी में निगरानी की गई कशेरुकी प्रजातियों में औसतन 68 प्रतिशत की गिरावट आई। यह आंकड़ा हमें सोचने पर मजबूर करता है कि हमारी प्रकृति को बचाने के लिए अब कदम उठाना कितना जरूरी है।

इस सच्चाई को कोई इंसान नहीं झुठला सकता है कि वन्यजीव पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वन्य जीवन प्रकृति की अलग-अलग प्राकृतिक प्रक्रियाओं को स्थिरता प्रदान करता है। वन्यजीवों का महत्व कई तरह से समझा जा सकता है, जैसे कि पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने, आर्थिक लाभ देने, वैज्ञानिक खोजों में मदद करने और जैव विविधता को बचाने के रूप में।

यहां तक कि कई देशों ने अपने प्राकृतिक वन्यजीवों के इर्द-गिर्द अपना पर्यटन क्षेत्र स्थापित किया है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि वन्यजीवों को बचाने के लिए समाज के बीच एक संदेश दिया जाए। इसी मकसद से वन्यजीव सप्ताह पूरे देश में हर साल 2 अक्टूबर से 8 अक्टूबर के बीच मनाया जाता है।

वन्यजीव सप्ताह की शुरुआत 1952 में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाकर भारतीय जानवरों के जीवन को बचाने के महान उद्देश्य से की गई थी। इसमें भारत की किसी भी प्रजाति को विलुप्त होने से बचाने की योजना बनाना शामिल है।

हालांकि, भारत में पहली बार विलुप्त हो रहे वन्यजीवों के संरक्षण के लिए 7 जुलाई, 1955 को 'वन्य प्राणी दिवस' मनाया गया था। बाद में इसे हर साल 2 अक्टूबर से पूरे सप्ताह तक वन्य प्राणी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। भारत में साल 1956 से लगातार वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जा रहा है।

दक्षिण भारत में, पेरियार वन्यजीव अभयारण्य, बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान और मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य जंगलों के आसपास और जंगलों में स्थित हैं। भारत कई राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों का घर है जो अपने वन्यजीवों की विविधता, अपने अद्वितीय जीवों और अपनी विविधता में उत्कृष्टता को दर्शाते हैं।

भारत भर में 89 राष्ट्रीय उद्यान, 13 जैव आरक्षित क्षेत्र और 400 से अधिक वन्यजीव अभयारण्य हैं, जो बंगाल टाइगर, एशियाई शेर, भारतीय हाथी, भारतीय गैंडे, पक्षी और अन्य वन्यजीवों को देखने के लिए सबसे अच्छे स्थान हैं, जो देश में प्रकृति और वन्यजीव संरक्षण को दिए जाने वाले महत्व को दर्शाते हैं।

[SS]

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