बंदूक चलाने वाली माओवादी आदिवासी विधायक से पीएचडी करने तक का सफर

कांग्रेस नेता और तेलंगाना विधानसभा (Telangana Legislative Assembly) के सदस्य के रूप में लोकप्रिय सीथक्का ने मंगलवार को ट्विटर पर घोषणा की कि उन्होंने उस्मानिया विश्वविद्यालय (Osmania University) से पीएचडी पूरी की है।
माओवादी आदिवासी विधायक से पीएचडी करने तक का सफर
माओवादी आदिवासी विधायक से पीएचडी करने तक का सफरIANS

बंदूकधारी माओवादी से वकील और फिर विधायक और अब राजनीति विज्ञान (Political science) में पीएचडी (PhD) करने वाली दानसारी अनसूया (Dansari Anasuya) का जीवन संघर्षों से भरा है। कांग्रेस नेता और तेलंगाना विधानसभा (Telangana Legislative Assembly) के सदस्य के रूप में लोकप्रिय सीथक्का ने मंगलवार को ट्विटर पर घोषणा की कि उन्होंने उस्मानिया विश्वविद्यालय (Osmania University) से पीएचडी पूरी की है। 50 वर्षीय आदिवासी विधायक ने तत्कालीन आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के प्रवासी आदिवासियों के सामाजिक बहिष्कार और वंचितों में पीएचडी की- वारंगल और खम्मम जिले में गोटी कोया जनजातियों का केस स्टडी किया।

मुलुगु की विधायक सीतक्का ने लिखा- बचपन में मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं नक्सली (माओवादी) बनूंगीं, जब मैं नक्सली थी तो मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं वकील बनूंगीं, जब मैं वकील बनीं, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं विधायक बनूंगीं, जब मैं विधायक बनीं तो मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं पीएचडी करूंगी। अब आप मुझे राजनीति विज्ञान में डॉ अनुसूया सीथक्का पीएचडी कह सकते हैं।

उन्होंने कहा, लोगों की सेवा करना और ज्ञान हासिल करना मेरी आदत है। मैं अपनी आखिरी सांस तक इसे करना कभी बंद नहीं करूंगीं। उन्होंने अपने पीएचडी गाइड प्रोफेसर टी तिरुपति राव, उस्मानिया विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति, एचओडी प्रोफेसर मुसलिया, प्रोफेसर अशोक नायडू और प्रोफेसर चंद्रू नायक को धन्यवाद दिया।

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कांग्रेस के नेताओं और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने उन्हें बधाई दी और उनके भविष्य के लिए शुभकामनाएं दीं। पार्टी के केंद्रीय नेता और तेलंगाना में पार्टी मामलों के प्रभारी मनिकम टैगोर, राज्य कांग्रेस प्रमुख ए रेवंत रेड्डी और वरिष्ठ नेता मधु गौड़ यास्की ने भी उन्हें बधाई दी।

कोया जनजाति (Koya Tribe) से ताल्लुक रखने वाली सीतक्का कम उम्र में ही माओवादी आंदोलन में शामिल हो गई थी और आदिवासी इलाके में सक्रिय सशस्त्र दस्ते का नेतृत्व कर रही थी। उसकी पुलिस के साथ कई मुठभेड़ भी हुई, मुठभेड़ों में उन्होंने अपने पति और भाई को खो दिया। आंदोलन से निराश होकर, उसने 1994 में एक माफी योजना के तहत पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके साथ, सीतक्का के जीवन ने एक नया मोड़ लिया, जिसने अपनी पढ़ाई की और कानून की डिग्री हासिल की। उन्होंने वारंगल (Warangal) की एक अदालत में वकील के रूप में भी अभ्यास किया।

सांकेतिक चित्र
सांकेतिक चित्रWikimedia

बाद में वह तेलुगु देशम पार्टी (TDP) में शामिल हो गईं और 2004 के चुनावों में मुलुग से चुनाव लड़ा। हालांकि, कांग्रेस की लहर में वह जीत नहीं पाई लेकिन 2009 में उन्होंने उसी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीता। वह 2014 के चुनावों में तीसरे स्थान पर रहीं और 2017 में कांग्रेस में शामिल होने के लिए टीडीपी छोड़ दी। उन्होंने 2018 में तेलंगाना राष्ट्र समिति (TSR) द्वारा राज्यव्यापी व्यापक जीत के बावजूद अपनी सीट पर कब्जा करके मजबूत वापसी की।

सीथक्का ने कोविड-19 महामारी के दौरान अपने निर्वाचन क्षेत्र के दूरदराज के गांवों में अपने मानवीय कार्यों से सुर्खियां बटोरीं। अपने कंधों पर आवश्यक चीजों का भार लेकर, वह जंगलों, चट्टानी इलाकों से होकर चली और लॉकडाउन के दौरान जरूरतमंदों की मदद करने के लिए नालों को भी पार किया।

1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरूआत में उसी जंगल में बंदूक चलाने वाले माओवादी विद्रोही के रूप में काम करने के बाद, वह इलाके से अपरिचित नहीं थीं। उनके अपने शब्दों में अंतर केवल इतना था कि एक माओवादी के हाथ में बंदूक थी और महामारी के दौरान वह भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुओं को ले जाती थी।

आईएएनएस/PT

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