Gadia Lohar : सड़क किनारे लोहे के बर्तन और घरेलू इस्तेमाल में आने वाले औजार बेचते हुए जो लोग आपको दिखते है ज्यादातर लोगों को लगता है कि ये बंजारे हैं परंतु ये बंजारे नहीं है। इन्हे गाड़िया लोहार समुदाय या सिर्फ लोहार भी कहा जाता है। गाड़िया लोहार राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश का खानाबदोश समुदाय है। ये लोहे के बर्तन और घरों में इस्तेमाल होने वाले औजार बनाकर अपना गुजर-बसर करते हैं। कोई - कोई कृषि और बागवानी में इस्तेमाल होने वाले छोटे औजार भी बनाते हैं।
इस समुदाय के लोग अपने परिवारों के साथ बैलगाड़ी पर एक जगह से दूसरी जगह तक जाते हैं। इसे हिंदी में गाड़ी कहा जाता है। इसलिए इनका नाम ‘गाड़िया लोहार’ पड़ गया। इनके पूर्वज मेवाड़ की सेना में लोहार थे। वे मेवाड़ के महाराणा प्रताप के वंशज होने का दावा भी करते हैं। जब मेवाड़ पर मुगलों द्वारा कब्जा कर लिया, तो महाराणा प्रताप जंगल की ओर चले गए। जंगल में वे इन लोगों से मिले, जिन्होंने महाराणा प्रताप और उनके परिवार की मदद की।
इनके पूर्वजों ने परिवार के साथ जंगल में भटक रहे महाराणा प्रताप को कसम दी थी कि जब तक वे चित्तौड़गढ़ पर वापस जीत हासिल नहीं कर लेते, तब तक वे कभी भी अपनी मातृभूमि नहीं लौटेंगे और ना ही कभी कहीं अपना बसेरा करेंगे। दुर्भाग्य से महाराणा प्रताप कभी चित्तौड़ नहीं जीत पाए। इसलिए लोहार समुदाय आज भी महाराणा को दी अपनी प्रतिज्ञा पर कायम हैं। दिल्ली के कई इलाकों में करीब 40,000 गाड़िया लोहार रहते हैं। इसके अलावा अब ये समुदाय देश के कई राज्यों में फैल गया है लेकिन बढ़ते दौर के साथ वे चाहते हैं कि उनके बच्चे प्रतिज्ञा को तोड़कर आगे बढ़ें और अपना भविष्य सुधारें।
इस जनजाति के लोग पूरा जीवन इधर-उधर घूमकर सड़क के किनारे निकाल देते हैं। आज भी ये लोग सड़क किनारे बैठ दो वक्त की रोटी के लिए लोहे के औजार बनाते हैं। इनके पूर्वज महाराणा प्रताप की सेना में शामिल थे। वे उनकी सेना के लिए घातक हथियार बनाते थे। इस समुदाय को कोई सरकारी सुविधा नहीं मिल पाती है। जरूरी कागजात नहीं होने के कारण उनके बच्चों को स्कूलों में दाखिला भी नहीं मिल पाता है। परंतु अब समुदाय के कुछ लोगों ने अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर भी ध्यान देना शुरू कर दिया है।