क्या है साबुन का इतिहास ?आइए जानें सबसे पहले साबुन कैसे बनाई गई थी?

अभिलेखों से ज्ञात हुआ कि प्राचीन मिस्रवासी नियमित रूप से स्नान करते थे। लगभग 1500 ईसा पूर्व के एक चिकित्सा दस्तावेज एबर्स पेपिरस में जानवरों और वनस्पति तेलों को एल्‍केलाइन साल्‍ट के साथ मिलाकर साबुन जैसी सामग्री बनाने का वर्णन किया गया है।
History of Soap : इसका उपयोग त्वचा रोगों के इलाज के साथ-साथ शरीर को साफ करने के ल‍िए भी क‍िया जाता है।(Wikimedia Commons)
History of Soap : इसका उपयोग त्वचा रोगों के इलाज के साथ-साथ शरीर को साफ करने के ल‍िए भी क‍िया जाता है।(Wikimedia Commons)

History of Soap : पूरे महीने भर के समान का जब लिस्ट बन रहा होता हैं तो उस लिस्ट में साबुन जरूर शामिल होता है। साबुन के बिना न तो कपड़ों की सफाई की जा सकती है और न ही हमारे शरीर की सफाई। इसका उपयोग अब तो लगभग सभी करते है लेकिन क्या आपको पता है पहली बार साबुन बना कैसे? अमेर‍िकन क्‍लीनिंग इंस्‍टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक, प्राचीन बेबीलोन सभ्‍यता से भी हजारों साल पहले साबुन के इस्‍तेमाल के प्रमाण मिले हैं। यह जान कर, इसके इतिहास के बारे में जानने की उत्सुकता और बढ़ जाती है।

2800 ईसा पूर्व से हो रहा है इसका उपयोग

दरहसल, प्राचीन बेबीलोन के लोग 2800 ईसा पहले से साबुन बनाना जानते थे। उस वक्‍त के मिट्टी के सिलेंडरों में साबुन जैसी सामग्री मिली है। उस पर ल‍िखा था क‍ि हम 'राख के साथ उबली हुई चर्बी' जो साबुन बनाने की एक विधि है, इसका उपयोग सफाई के ल‍िए करते हैं।

अभिलेखों से ज्ञात हुआ कि प्राचीन मिस्रवासी नियमित रूप से स्नान करते थे। लगभग 1500 ईसा पूर्व के एक चिकित्सा दस्तावेज एबर्स पेपिरस में जानवरों और वनस्पति तेलों को एल्‍केलाइन साल्‍ट के साथ मिलाकर साबुन जैसी सामग्री बनाने का वर्णन किया गया है। इसका उपयोग त्वचा रोगों के इलाज के साथ-साथ शरीर को साफ करने के ल‍िए भी क‍िया जाता है।

साबुन में दो तरह के अणु होते हैं। एक हाइड्रोफिलिक और हाइड्रोफोबिक।(Wikimedia Commons)
साबुन में दो तरह के अणु होते हैं। एक हाइड्रोफिलिक और हाइड्रोफोबिक।(Wikimedia Commons)

कैसे ' सोप ' नाम मिला ?

आपको बता दें कि कपड़ों से तेल के दाग और मैल निकालने वाला साबुन सबसे पहले टे और राख से मिलाकर बनाया गया था। करीब 4 हजार साल पहले रोमन महिलाएं टाइबर नदी के किनारे बैठकर जब कपड़े धो रही थीं, तभी नदी के ऊपरी सिरे से बलि चढ़ाए गए कुछ जानवरों का फैट बहकर आ गया और नदी के क‍िनारे मिट्टी में जम गया। जब यह कपड़ों में लगता तो चमक आ जाती थी चूंकि ये फैट माउंट सापो से बहकर आया था, इसल‍िए इस मिट्टी को ‘सोप’ नाम दिया गया। यहीं से साबुन का नाम मिला।

क्या है इसके पीछे का विज्ञान ?

साबुन में दो तरह के अणु होते हैं। एक हाइड्रोफिलिक और हाइड्रोफोबिक। हाइड्रोफोबिक तैलीय गंदगी से जाकर चिपक जाता है और पानी इस गंदगी को कपड़े से अलग करने का काम करता है। जब कपड़े को साफ पानी में धोया जाता है, तो साबुन के साथ ही गंदगी भी बह जाती है और कपड़ा फिर चमकने लगता है। अब साबुनों में एल्‍कालाइन की जगह सोडियम हाइड्रोक्साइड या पोटेशियम हाइड्रोक्साइड का उपयोग किया जाता है, जबकि पहले इसकी जगह ‘वुड एश लाई’ का उपयोग होता था।

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