एक ऐसा किला जिसे पाने के लिए हुमायूं से लेकर पेशवा बाजीराव जैसे शासकों तक ने जान की बाजी लगा दी

उत्तर प्रदेश के बांदा में मौजूद कालिंजर(Kalinjar Fort) के दुर्ग में इतिहासकारों की खासी दिलचस्पी है।
एक ऐसा किला जिसे पाने के लिए हुमायूं से लेकर पेशवा बाजीराव जैसे शासकों तक ने जान की बाजी लगा दी(Wikimedia Image)
एक ऐसा किला जिसे पाने के लिए हुमायूं से लेकर पेशवा बाजीराव जैसे शासकों तक ने जान की बाजी लगा दी(Wikimedia Image)

न्यूज़ग्राम हिंदी: एक ऐसा दुर्ग जिसको पाने की चाहत में हुमायूं और पेशवा बाजीराव जैसे शासकों ने जान की बाजी लगा दी। उत्तर प्रदेश के बांदा में मौजूद कालिंजर(Kalinjar Fort) के दुर्ग में इतिहासकारों की खासी दिलचस्पी है। विंध्य पर्वत की 900 फूट ऊंची पहाड़ियों पर स्थित यह किला मध्य प्रदेश के खजुराहो से 100 किमी की दूरी पर है। कालिंजर के इस किले का इतिहास ना सिर्फ मुगल काल तक सीमित है बल्कि बौद्ध साहित्य में भी इसका ज़िक्र मिलता है। अपने अंदर देश के राजनैतिक और सांस्कृतिक बदलते दौर की कहानी समेटे इस किले को लेकर इतिहासकारों में खास दिलचस्पी है।

रिसर्च अनुसार इस किले को हासिल करना उस समय शान की बात होती थी और यही कारण है कि महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, और हुमायूं से लेकर शाह सूरी ने इसपर कब्जा जमाने के लिए जान की बाजी लगा दी थी। पेशवा बाजीराव से लेकर पृथ्वीराज चौहान तक ने इसे पाने के लिए पूरा ज़ोर लगा दिया। घने जंगलों में बने इस किले की दीवारें 5 मीटर मोटी थीं और ऊंचाई 108 फुट थी जिसके कारण दुश्मनों के लिए इसे ध्वस्त करना बहुत मुश्किल था।

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दुनिया के मजबूत किलों में से के नाम पर जाने जाने वाले इस किले में साल भर पानी रिसता रहता था। बुंदेलखंड जैसा इलाका जहां अक्सर ही पानी की कमी बनी रहती है वैसी जगह पर कालिंजर किले में पानी का रिसाव अपने आप में आश्चर्य की बात थी। इन्हीं खास कारणों के कारण कई शासकों की नज़र इस किले पर रहती थी।

एक ऐसा किला जिसे पाने के लिए हुमायूं से लेकर पेशवा बाजीराव जैसे शासकों तक ने जान की बाजी लगा दी(Wikimedia Image)
एक ऐसा किला जिसे पाने के लिए हुमायूं से लेकर पेशवा बाजीराव जैसे शासकों तक ने जान की बाजी लगा दी(Wikimedia Image)

शेर शाह सूरी ने चंदेल शासन वाले इस किले पर फतह करने की कोशिश में अपनी जान गवां दी थी। यह भी शासक था जिसने हुमायूं को हराकर सूरी साम्राज्य की स्थापना की लेकिन इस किले को पाने में सूरी की मौत के बाद हुमायूं ने किले पर कब्ज़ा जमाने की चाह रखी, हालांकि उन्हें भी हार ही मिली। साल 1569 में अकबर ने इस किले को जीत इसे बीरबल को तोहफे में दे दिया। इसके बाद छत्रसाल ने पेशवा की मदद से यहां से मुगलों को बेदखल करके अंग्रेजों के शासन से पहले तक राज किया।

किले में मिले कई साक्ष्य ऐसे हैं जो बताते हैं कि यह गुप्त काल का है। इस पुराने किले में 400 सालों तक चंदेलों ने राज किया और इसे अपनी राजधानी बनाई।

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