दोस्तों आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर हम आपके लिए एक बेहद रोचक जानकारी लेकर उपस्थित हुए हैं। भारत देश को अंग्रेजों के चुंगल से आजाद कराने में आध्यात्मिक महामनीषियों का भी बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है । आज हम आपका परिचय कराने जा रहे हैं एक ऐसे ही महामनीषी से जिनका आजादी के हवन में बहुत बड़ा योगदान रहा है।
स्वामी दयानंद सरस्वती के नाम से तो आप सभी वाकिफ हैं। जो एक महान चिंतक , समाज सुधारक और महान देशभक्त भी थे। सन् 1857 की क्रांति की कार्य योजना स्वामी दयानंद सरस्वती के नेतृत्व में ही सर्वप्रथम हरिद्वार में बनाई गई इस योजना में उनके साथ नानासाहेब, अजीमुल्ला खां ,बाला साहब, तात्या टोपे तथा बाबू कुंवर सिंह ने दिया था।इस बैठक में यह फैसला लिया गया कि अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध पूरे देश में एक निश्चित दिन सशस्त्र क्रांति की आधारभूमि तैयार कर एक साथ क्रांति का प्रारंभ कर दिया जाएगा। इस योजना को आर्यवर्तीय सैनिकों और जनता तक पहुंचाने के लिए "रोटी तथा कमल" की योजना भी स्वामी जी के नेतृत्व में ही तैयार हुई थी।स्वामी जी को स्वराज का प्रथम प्रवक्ता माना जाता है। स्वामी जी के विश्वस्त साधु सन्यासियों के एक संगठन ने स्वाधीनता समर में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। यह स्वामी जी द्वारा बनाया गया गुप्त संगठन था और इस संगठन का मुख्यालय इंद्रप्रस्थ ( दिल्ली) महरौली में स्थित योग माया मंदिर में था। इन साधुओं और सन्यासियों ने पूरे देश में क्रांति की आग जलाई। इन्होंने एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर क्रांतिकारियों के संदेश पहुंचाएं, और जरूरत पड़ने पर स्वयं भी हथियार उठाकर अंग्रेजों का सामना किया।
यही सब कारण थे कि अंग्रेज अधिकारियों ने स्वामी जी को अपने पक्ष में करने की योजना बनाई। इसी सिलसिले में तत्कालीन गवर्नर जनरल नार्थब्रुक ने कलकत्ता में स्वामी जी से भेंट की और कहा कि आप अपनी सभाओं में ईश्वर से जो प्रार्थना करते हैं कि उसमें अंग्रेजी सरकार के कल्याण के लिए प्रार्थना कर सकेंगे ? उनके इस प्रश्न का स्वामी जी ने बड़ी निर्भीकता से जवाब दिया- नहीं मैं ऐसी किसी भी बात को मान नहीं सकता। मैं पूर्ण तरह से इस बात से सहमत हूं कि मेरे देशवासियों को पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त हो और मेरा देश विदेशी सत्ता के जुए से शीघ्रातिशीघ्र मुक्त हो। गवर्नर इस जवाब की उम्मीद नहीं कर रहे थे। इसके फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार के गुप्तचर विभाग ने स्वामी जी और उनकी संस्था आर्य समाज पर बंदिशे लगा दी ।भारत को आजाद कराने में स्वामी जी की भूमिका "दधीचि" की तरह रही है। "स्वराज" का नारा सर्वप्रथम स्वामी जी के द्वारा ही दिया गया जिससे आगे चलकर बाल गंगाधर तिलक ने मुखर किया।