Hindu Code Bill : भारत को ब्रिटिश शासन से आजादी मिलने के बाद जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बनें। इतिहासकार रामचंद्र गुहा द्वारा लिखी गई किताब, ‘भारत: गांधी के बाद’ के अनुसार दिसंबर 1949 में संविधान पर सहमति बन जाने के बाद संविधान सभा ने एक ऐसा संसद बनाया जो तब तक काम करती, जब तक कि पहला आम चुनाव न हो जाए। वर्ष 1950 और 1951 में जवाहर लाल नेहरू और कानून मंत्री डॉ. भीमराव अंबेडकर ने हिंदू निजी कानून को पारित करने के लिए कई प्रयास किए लेकिन इसके विरोधी अड़े रहे और ऐसा संसद में और संसद के बाहर भी हो रहा था।
इस कानून के विरोध में खड़े लोगों ने हर तरह के तर्कों का सहारा लिया और कई तर्क तो ऐसे भी थे जो एक-दूसरे के ही विरोध थे। जैसे पति या पत्नी में किसी भी पीड़ित पक्ष को तलाक लेने की सुविधा दिए जाने पर भी लोग इसके खिलाफ थे इसके साथ ही जो लोग धर्म के नाम पर विरोध कर रहे थे कि हिंदू धर्म खतरे में है, उनकी वास्तविक आपत्ति तो इस बात पर थी कि बेटियों को पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर अधिकार नहीं दिया जा सकता है।
वहीं पीएम नेहरू का सामना उनके निर्वाचन क्षेत्र इलाहाबाद-जौनपुर में हिंदू कोड बिल के विरोधी नेता से था। उनका नाम दत्त ब्रह्मचारी था, वो एक साधु थे और ब्रह्मचारी भी थे। वह भगवा कपड़े पहनते थे। दत्त ब्रह्मचारी की उम्मीदवारी का जनसंघ, हिंदू महासभा और रामराज्य परिषद ने समर्थन किया। उनके प्रचार अभियान का एजेंडा था कि किसी भी कीमत पर हिंदू परंपराओं से छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए।
उन्होंने नेहरू जी को खुली बहस की चुनौती दी। लेकिन नेहरू अपनी सीट पर भारी मतों से विजयी हुए। कांग्रेस को संसद में 364 सीटों के साथ आरामदायक बहुमत मिल गया और जैसे ही नई संसद की बैठक शुरू हुई उन्होंने फिर से हिंदू कोड बिल पेश कर दिया।
यह बिल ऐसी तमाम कुरीतियों को हिंदू धर्म से दूर कर रहा था जिन्हें परंपरा के नाम पर कुछ कट्टरपंथी जिंदा रखना चाहते थे। नेहरू ने हिंदू कोड बिल को कई हिस्सों में तोड़ दिया। जिसके बाद 1955 में हिंदू मैरिज एक्ट बनाया गया। जिसके तहत तलाक को कानूनी दर्जा, अलग-अलग जातियों के स्त्री-पुरूष को एक-दूसरे से विवाह का अधिकार और एक बार में एक से ज्यादा शादी को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया।