Hindu Persecution का इतिहास, Nupur Sharma का मामला कोई नया नहीं:
हमारे ऋग्वेद (Rigveda) की वाणी है कि, 'एक हमारा उद्देश्य हो, सुसंगत हमारी भावना हो। एकत्रित हमारे विचार हों, जैसे सबकुछ इस विश्व में एकता में है।'
समानी व आकूति: समाना हृदयानि व:।
समानमस्तु वो मनो यथा व: सुसहासति।।
इस देश की संस्कृति कहती है कि सबको साथ लेकर चलो, यही कारण है कि इस सनातन संस्कृति (Sanatan Dharma) वाले देश की संस्कृति आज तक जीवित है जबकि मिश्र, यूनान और रोम जैसी बड़ी सभ्यताएं आज इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गईं। कहने का मतलब यह है कि, इस देश ने सदा सभी को स्वीकार किया है, ठीक वैसे ही, जैसे नदी स्वीकार करती है। स्वीकार करते वक्त नदी भेद नहीं रखती कि कौन शुद्ध है और कौन अशुद्ध है। बल्कि वह सभी को स्वीकार करके अपना ही हिस्सा बना लेती है। ठीक वैसे ही भारत की संस्कृति ने भी सबको सम्मिलित किया।
पर, क्या इस सहर्ष स्वीकार करने वाले देश की ऐतिहासिक और सनातन संस्कृति का मजाक उड़ाना किसी भी स्तर पर स्वीकार्य होना चाहिए? हमने सदा ही यही सीखा है जो हमें अपनाए उसे सदा सम्मान दो। पर यहाँ सम्मान की जगह अपमान, और बदले में यदि पलट कर कोई जवाब दिया तो उसपर शादी में आए फूफा-मौसा की तरह मुंह फुला लो। और केवल मुंह भर ही नहीं फूलता इनका, ये तो आक्रामक भी हो जाते हैं, हद पार करते हुए इनका एक ही नारा होता है 'सिर तन से जुदा या फिर बलात्कार'।
बीते दिन नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) का मसला कुछ ऐसा ही रहा। बात-बात पर हमारे शिवलिंग, राम, हनुमान, दुर्गा, आदि देवी-देवताओं पर निंदनीय टिप्पड़ी करने वाले खुद के मजहबी विषय के लिए इतने संवेदनशील हो जाते हैं। क्या उनके मजहबी किताबों में बस खुद के लिए संवेदनशील होना भर ही लिखा है? दूसरे की आस्था का कोई महत्व नहीं? पर इस सबके पीछे कमी भी हमारी ही है, हम विनम्र इतने ज़्याद हैं कि भातेन्दु हरिश्चंद्र को भी भारत दुर्दशा जैसे नाटक लिख कर हमें जगाना पड़ा था। बात बिल्कुल स्पष्ट है कि सनातन की विनम्रता को उसकी कमजोरी समझी जाने लगी है। इतिहास में ढेरों उदाहरण हैं जहां सनातन की विनम्रता ही हिंदुओं के उत्पीड़न के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार रहा।
हिंदुओं के उत्पीड़न के मसले को समझने से पहले हम इतिहास के कई पन्नों को खंगालेंगे और देखेंगे कि इस तरह के धार्मिक उत्पीड़न की बू कहाँ-कहाँ से आती है।
3000 वर्ष पहले मिस्र (Egypt) में Pharaohs ने यहूदियों (Jews) का भयानक रूप से उत्पीड़न किया, जिसमें यहूदियों को धर्म के आधार पर नाइल नदी में फेंक दिया जाता था।
इसके बाद पहली शताब्दी में जब ईसाई धर्म Rome में दस्तक दे रहा था, तब रोमन उसे अंधविश्वास मानते थे और ईसाई धर्म मानने वालों को जिंदा ही शेर को खिला देते थे।
इसके बाद 16वीं शताब्दी में ईसाइयों (Christians) ने भी काफी लोगों का उत्पीड़न किया जिसमें गैलीलियो (Galileo) का नाम काफी महत्वपूर्ण है। इन्होंने जब कहा पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगती है, तो यह ईसाई मत के खिलाफ चला गया, और वो इसके भयानक रूप से शिकार हुए।
1865 के पहले के अमेरिका को देखिए जहां ग़ुलामों का व्यापार अपने चरम पर था। वहाँ भी एक भारी संख्या में लोगों का उत्पीड़न हुआ, और यह तब तक हुआ जब तक कि गृह युद्ध और अब्राहम लिंकन (Abraham Lincoln) के प्रयासों से वहाँ स्लेवरी समाप्त नहीं हो गई। इसके लिए लिंकन को अपना प्राण तक गंवाना पड़ा।
अब 20 वीं शताब्दी के ओटोमन साम्राज्य के कुकृत्यों की झलकी देखिए, जिसमें ओटोमन तुर्कों ने प्रथम विश्व युद्ध (World War I) के दौरान 1915 से 1916 में लगभग 15 लाख आर्मीनियाइयों का उत्पीड़न किया। संयुक्त अमेरिका के अभी के राष्ट्रपति जो बाइडन (Joe Biden) ने तो इसे 'An Act of Genocide' तक घोषित कर दिया है।
हिटलर (Adolf Hitler) ने द्वितीय विश्व युद्ध (World War II) के दौरान 2.60 लाख यहूदियों को concentration camps में डालकर मार दिया। वजह क्या थी? वजह थी तो बस दृष्टिकोण में अंतर की। नाजियों (Nazis) का मानना था कि मानव पदानुक्रम में आर्य सबसे ऊपर हैं और यहूदी सबसे नीचे।
इन तमाम उत्पीड़न की कहानी में हमें एक चीज समान दिखेगी वो थी इनके पीछे की वजह। वजह केवल दृष्टिकोण का। दृष्टिकोण स्वयं को सर्वोपरि समझने का, और यही कारण भी है उनके स्वयं के पतन का। संस्कृति के नाम पर आज वो या तो जगहों की खुदाई में या फिर इतिहास के पन्नों में मिलती है। पर एक सनातन संस्कृति ही है जो जीवंत आज भी सबके सामने है। इसकी एक खास वजह यह है कि, इसने सवाल उठाने वालों का सर तन से जुदा नहीं किया, बल्कि उनके सवालों का तार्किक जवाब देकर उन्हें शांत किया। और जब वह जवाब नहीं समझ आया तब भी वो शांत रहे, लेकिन जब कोई मुंह में हाथ डाल ही दे तो शस्त्र प्रयोग अनिवार्य हो ही जाता है। इस संबंध में एक महत्वपूर्ण बिन्दु और है, हमारे खुद के ही समाज ने हमारी पुस्तकों को हमसे दूर कर दिया। हमें उन चरित्रों से दूर रखा जिससे हम लड़ने की क्षमता प्राप्त कर पाते। तरीका था, लाल कपड़े में किताबों को बांध दो और इसे पढ़ने के लिए इतनी पाबंदियाँ लगा दो कि समाज खुद इनसे दूर हो जाए। इसके बाद दूसरा कदम था कि धरोहर के रूप में राम के वियम्र पक्ष को हमें सौंप दो, जबकि इसपर किसी ने जोर नहीं दिया कि राम की तरह बहु-बेटी पर आँख उठाने वालों से लड़ो भी। महाभारत के विषय में भ्रांति बना दी गईं, जिस घर में यह किताब होती है, वहाँ लड़ाई होती है, नतीजा अपने शूरवीरों की कहानी से दूर होकर एक डरपोक व्यक्तित्व को अपना लो।
ये सब पर्याप्त कारण हैं हिंदुओं के उत्पीड़न (Hindu Persecution) के लिए। हाँ, हिंदुओं का उत्पीड़न। चौंकिए नहीं। 1000 साल पहले सल्तनत काल में हिंदुओं के लाखों मंदिर तोड़ दिए गए। Peter Jackson और Andre Wick कहते हैं कि, 'इस्लामी ग्रंथ में हिंदुओं को काफिरों के रूप में वर्णित किया गया है, हिंदुस्तान को युद्ध क्षेत्र ("दार-अल-हरब") के रूप में, और मूर्तिपूजक हिंदुओं पर हमले को एक पवित्र युद्ध (जिहाद) के हिस्से के रूप में दर्शाया गया है।' यही कारण है कि जब 2001 में अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) में एक खुदाई के दौरान बामियान बुद्ध (Bamiyan Buddha Statue) की मूर्ति मिली तो उसे तालीबानियों ने क्षतिग्रस्त कर डाला।
उत्तर भारत (North India) में सबसे ज्यादा मंदिरों का तोड़-फोड़ हुआ। खजुराहो (Khajuraho) का मंदिर जंगलों में छिपे रहने की वजह से संरक्षित रह गया, जिससे कि वो मध्यकाल में नजर नहीं आया। राजस्थान में राजपूतों ने मंदिरों को बचाया।
हिंदुओं ने कभी अपने इतिहास को लिखना नहीं चाहा, यह तथ्य बहुत लोग देते हैं। पर यह बेबुनियाद है। बल्कि हमें उस दुर्घटना को याद करना चाहिए, जब बख्तियार खिलजी (Bakhtiyar Khilji) ने नालंदा और विक्रमशील (Nalanda and Vikramshila) जैसे हमारे अद्भुत विश्वविद्यालयों को 1193 और 1197 में तबाह कर दिया था। पारसी इतिहासकार मिन्हाज-ए सिराज के अनुसार लगभग 90 लाख हस्तलिपियां जला दी गईं, और हजारों साधुओं को मौत के घाट उतार दिया गया। तब प्रिंटिंग प्रेस इजात नहीं हुआ था, सो कई आयुर्वेद की भी हस्तलिपियाँ खाक हो गईं। कहते हैं कि, 2 महीने तक इस आग की ज्वाला शांत नहीं हुई।
इसके बाद हिन्दू एक द्वितीय श्रेणी के नागरिक बनकर रह गए, जिन्हें शासकों द्वारा धिम्मी (Dhimmis) का दर्जा दिया गया और उन्हें मुसलमानों द्वारा संरक्षित कहा जाने लगा। पर इस संरक्षण के सबसे क्रूर पक्ष बहुतेरे थे। जज़िया और खराज के नाम पर हिन्दू लगभग 50% कर देते थे जबकि मुसलमान मात्र 10% ही भू-कर देते थे।
हिन्दू उत्पीड़न (Hindu Persecution) में महिलाओं का भी उत्पीड़न चरम पर था। उदाहरण के लिए 1303 ई. के चित्तौरगढ़ का जौहर याद कीजिए जिसमें अलाउद्दीन खिलजी से अपनी आबरू बचाने के लिए राज्य की स्त्रियों ने एक साथ अपना आत्मदाह कर दिया था।
दिल्ली सुल्तानों और मुग़लों के समय ग़ुलामों के बाजार लगने लगे थे। अफगानिस्तान के महमूद स्तम्भ पर लिखा हुआ है 'दुख्तरे हिन्दोस्तां.. नीलाम ए दो दीनार'। मतलब इस जगह पर हिन्दुस्तानी औरतें 2-2 दीनार में नीलाम होती थीं।
बलबन ने 1267 में 60,000 गुलामों को बस इसलिए मार डाला क्योंकि वो इस्लाम (Islam) धर्म अपनाने के लिए तैयार नहीं थे। अन्वेषक इब्न बतूता (Ibn Battuta) ग़ुलामी के बारे में कहते हैं कि, जो लोग इस्लाम नहीं कबूलते थे उन्हें ग़ुलाम बना लिया जाता था।'
अच्छा, आपने इतिहास और भूगोल में हिंदुकुश (Hindu Kush) पर्वत के बारे में जरूर पढ़ा होगा। कहा जाता है कि यहाँ से ही होकर गुलामों को ले जाया जाता था और यहाँ आते-आते उनकी स्थिति इतनी बुरी हो जाती थी कि उनके प्राण भी चले जाते थे, यही कारण है कि इस पर्वत का नाम हिंदु कुश पड़ा। इसके विषय में भी इब्न बतूता बताते हैं कि, उन्होंने 'इतनी बुरी स्थिति गुलामों की कहीं और नहीं देखि'। आज आतंकी संगठन, सीरिया और इराक में ऐसा ही करता है।
पंजाब में एक कहावत बहुत प्रसिद्ध थी 'खड़ा पीटा लहेदा बाकी अहमद शाहेदा'। मतलब जो खाया पिया पहन ओढ़ लिया बस वही अपना है बाकी अहमाद शाह लूट ले जाएगा। 1748-67 में अहमद शाह अबदाली (Ahmad Shah Abdali) ने 18 बार पंजाब को लूटा था जिससे वहाँ की अर्थव्यवस्था तेजी से धड़ाम हो गई।
कहते हैं शाहजहाँ (Shahjahan) ने जब अहमद शाह पर आक्रमण किया तो डेक्कन की सारी फसल जला डालीं और तभी 1630 से 1633 तक इतना भयानक आकाल पड़ा कि उस क्षेत्र में 60% जनसंख्या समाप्त हो गईं।
Hindu Persecution की कहानियाँ बहुत सी हैं, पर हिन्दू हर वक्त उसका ढोल बजाने से ज्यादा आगे बढ़ने को महत्व देते हैं। यही कारण है कि बेचारे कहकर मासूम दिखाए जाने वाले कश्मीर के अलगाववादी, पत्थर उठा लेते हैं और जो वहाँ से उत्पीड़ित करके भगाए गए उन्होंने किताबें उठाईं।
कश्मीर से संबंधित एक और कहानी प्रचलित है। कहा जाता है कि कश्मीर के शाह मिरी वंश का सिकंदर बुतशिकन भारतीय इतिहास का सबसे क्रूर शासक माना जाता है। उसने गैर मुसलमानों के खिलाफ बर्बरता की सारी हदें पार कर दी थीं। बुतशिकन को सबसे बड़ा मूर्ति और मंदिरों को तोड़ने वाला आक्रांता बताया जाता है। उसने अपने राज्य में नृत्य, नाटक, संगीत, सबपर प्रतिबंध लगा दिया था। यहाँ तक कि उसके राज्य में हिंदुओं को शव-दाह के लिए भी कर देना पड़ता था। इसने बिजबेहरा मंदिर और मार्तंड सूर्य मंदिर को भी तोड़ा। इसके क्रूर नीतियों ने अधिकतर हिंदुओं को अपनी जमीन छोड़कर जाने के लिए विवश कर दिया। कहा जाता है की इसने कश्मीरी ब्राह्मणों को मारने के बाद इकट्ठे किए हुए जनेऊओं के 7 टीले जलाए थे।
इस सब बातों को यहाँ कहने का उद्देश्य यह था कि Nupur Sharma ने यदि इस्लामी ग्रंथ से कोई उद्धरण दिया तो उसपर पूरी जानकारी महैया करवानी चाहिए थी ना कि बलात्कार करने की धमकी। क्योंकि ऐसा कहकर और करके व्यक्ति अपने ऊपर लगे आरोप को पुष्ट कर देता है। यदि आप वास्तव में स्त्रियों के संरक्षक रहे हैं तो आप ऐसे बयान की बजाय स्पष्टीकरण देते। यदि आप वास्तव में सर्व धर्म समभाव की दुहाई देते हैं भारत को, तो आपको भी कोई हक नहीं है हिंदुओं के आस्था का मजाक बनाने का। बल्कि जो बनाते हैं उनपर कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए। खुद की उंगली जब तक नहीं कटती तब तक दूसरे के दु:ख का अनुमान नहीं होता।