“जय हिंद” वह सलाम जिसने पूरे देश को एक किया

एक छोटे से छात्र की देशभक्ति से जन्मा यह नारा आगे चलकर आज़ादी के सिपाहियों की पहचान बन गया। “जय हिंद” सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि भारत की एकता, साहस और गर्व की आवाज़ है, जो आज भी हर भारतीय के दिल में गूंजती है।
A painting of Indian soldiers from the Azad Hind Fauj raising their fists in unity, with a leader in military uniform passionately shouting “Jai Hind” in front of the Indian tricolor flag.
“जय हिंद” सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि भारत की एकता, साहस और गर्व की आवाज़ है, जो आज भी हर भारतीय के दिल में गूंजती है AI Generated
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सार (Summary)

  • यह लेख बताता है कि “जय हिंद” (Jai Hind) नारे की शुरुआत कहाँ और कैसे हुई।

  • इसमें चंपक रमन पिल्लै, नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) और अबिद हसन (Abid Hassan) की भूमिका बताई गई है।

  • यह भी बताया गया है कि कैसे “जय हिंद” आज भारत (Bharat) की एकता और गर्व का प्रतीक बन गया।

परिचय: “जय हिंद” का अर्थ और भावना

“जय हिंद” यानी “भारत की विजय” (Victory of India) ये दो छोटे-छोटे शब्द हर भारतीय के दिल में गहराई तक बसे हुए हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह नारा कैसे शुरू हुआ? इसकी शुरुआत सौ साल से भी पहले हुई थी, जब एक छोटे से छात्र ने स्कूल की कक्षा में सबसे पहले “जय हिंद” कहा। यह कहानी सिर्फ एक शब्द की नहीं, बल्कि उस भावना की है जिसने पूरे देश को जोड़ दिया।

शुरुआत: एक छात्र और उसकी देशभक्ति

सन 1907 की बात है। भारत (India) तब भी अंग्रेज़ों (Britishers) का गुलाम था। उसी समय त्रिवेंद्रम (अब तिरुवनंतपुरम, तमिलनाडु) में एक युवा छात्र पढ़ता था, उसका नाम था चंपक रमन (Champak Raman) पिल्लै। वह अपने स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ देश के लिए कुछ करने का सपना देखता था। एक दिन उसने कक्षा में जोर से कहा, “जय हिंद!” यह उसकी देशभक्ति की पहचान थी। उस समय उसके साथी और शिक्षक भी इस नए शब्द से हैरान हुए, पर चंपक रमन पिल्लै के लिए यह सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि स्वतंत्रता का सपना था।

बाद में, वह आगे की पढ़ाई के लिए जर्मनी चला गया। लेकिन “जय हिंद” उसके दिल में हमेशा जिंदा रहा।

जर्मनी में मुलाकात: नेताजी और पिल्लै

साल 1933 में, नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी (S.C. Bose) जर्मनी (Germany) पहुंचे। वहीं उनकी मुलाकात चंपक रमन पिल्लै से हुई। जब पिल्लै ने नेताजी का अभिवादन किया, तो उन्होंने कहा, “जय हिंद!”

नेताजी को यह शब्द बेहद अच्छा लगा। इसमें जो जोश और एकता की भावना थी, उसने नेताजी के दिल को छू लिया। उस समय यह नारा आगे नहीं बढ़ पाया, पर यह शब्द नेताजी की यादों में बस गया।

अबिद हसन और आज़ाद हिंद फौज की स्थापना

कुछ साल बाद, नेताजी की मुलाकात अबिद हसन से हुई, जो उस समय जर्मनी में इंजीनियरिंग (engeneering) की पढ़ाई कर रहे थे। नेताजी के देशप्रेम से प्रभावित होकर अबिद हसन ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और कहा “मैं आपके साथ देश की आज़ादी के लिए सब कुछ कुर्बान करने को तैयार हूँ।”

नेताजी ने उन्हें अपना निजी सचिव बना लिया। फिर दोनों ने मिलकर आज़ाद हिंद फौज (Indian National Army) बनाई, जिसमें करीब 3,000 सैनिक शामिल थे। इन सैनिकों का एक ही मकसद था, भारत को आज़ाद कराना।

A historical reenactment showing an Indian army leader in khaki uniform raising his fist and shouting “Jai Hind,” while soldiers stand behind him with the Indian flag fluttering in the background.
नेताजी ने उन्हें अपना निजी सचिव बना लिया। फिर दोनों ने मिलकर आज़ाद हिंद फौज (Indian National Army) बनाईAI Generated

एक समान नारे की जरूरत

एक दिन नेताजी और अबिद हसन सेना का निरीक्षण कर रहे थे। उन्होंने देखा कि हर सैनिक अलग-अलग अभिवादन कर रहा है, कोई “गुड मॉर्निंग” कह रहा था, कोई “सत श्री अकाल,” कोई “राम राम।”

नेताजी ने कहा: “जब तक हमारा नारा एक नहीं होगा, हम एक कैसे रहेंगे?”

उन्होंने अबिद हसन (Abid Hassan) से कहा कि एक ऐसा नारा सोचो जो हर भारतीय बोल सके, चाहे वह किसी भी धर्म, भाषा या प्रदेश का हो।

“जय हिंद” का जन्म

अबिद हसन ने सबसे पहले कहा: “जय हिंदुस्तान की।”

नेताजी ने कहा: “यह थोड़ा लंबा है।”

फिर अबिद ने कहा: “जय हिंद की।”

नेताजी मुस्कुराए, लेकिन तभी उन्हें 1933 की वह मुलाकात याद आई, जब चंपक रमन पिल्लै ने उन्हें “जय हिंद” कहकर अभिवादन किया था।

नेताजी तुरंत बोले, “बस! यही सही रहेगा, ‘जय हिंद’।”

और इस तरह 1943 में, जर्मनी में, नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने “जय हिंद” को आज़ाद हिंद फौज (Azad Hind Fauj) का आधिकारिक नारा बना दिया।

आज़ादी की आवाज़ बना “जय हिंद”

जब आज़ाद हिंद फौज के सैनिक “जय हिंद” कहते थे, तो उनके अंदर एक नई ताकत आ जाती थी। यह सिर्फ सलाम करने का तरीका नहीं, बल्कि देश के लिए मर-मिटने की कसम थी। “जय हिंद” (Jai Hind) हर सिपाही के होंठों पर, हर दिल में गूंजता था। यह शब्द उन सबको एक सूत्र में बांधता था, हिंदु, मुस्लिम, सिख, ईसाई, सब एक साथ “जय हिंद” बोलते थे।

आज़ादी के बाद “जय हिंद” की गूंज

1947 में भारत स्वतंत्र हुआ, लेकिन “जय हिंद” की गूंज कभी नहीं थमी। पंडित जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) अपनी हर भाषण के अंत में “जय हिंद” कहते थे। आज भी स्कूल की प्रार्थनाओं से लेकर गणतंत्र दिवस (Republic Day) की परेड तक, हर जगह “जय हिंद” हमारी एकता और गर्व की पहचान है।

युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा

“जय हिंद” की कहानी हमें यह सिखाती है कि बड़ी बातें छोटी उम्र में भी शुरू हो सकती हैं। एक छात्र के मन में जन्मा यह नारा एक दिन पूरे देश की पहचान बन गया। यह हमें याद दिलाता है कि अगर हमारे दिल में देश के लिए सच्चा प्रेम हो, तो कोई भी सपना असंभव नहीं।

निष्कर्ष (Conclusion)

“जय हिंद” सिर्फ दो शब्द नहीं हैं, यह भारत (India) की आत्मा की आवाज़ है। इसमें चंपक रमन पिल्लै की देशभक्ति है, अबिद हसन का समर्पण है और नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नेतृत्व है।

एक कक्षा से लेकर युद्ध के मैदान तक, यह नारा हर भारतीय की पहचान बन गया। आज जब हम “जय हिंद” कहते हैं, तो हम सिर्फ एक शब्द नहीं बोलते, हम अपने देश, अपनी आज़ादी और अपनी एकता को सलाम करते हैं।

जय हिंद!

(Rh/BA)

A painting of Indian soldiers from the Azad Hind Fauj raising their fists in unity, with a leader in military uniform passionately shouting “Jai Hind” in front of the Indian tricolor flag.
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