कौन था कोहिनूर का असली मालिक? जानिए ये कैसे पहुंचा अंग्रेजो के पास

हीरे का सबसे पहला सत्यापन योग्य रिकॉर्ड मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के संस्मरणों से मिलता है, जिसने 1526 में लिखा था कि उसने यह पत्थर दिल्ली के सुल्तान से हासिल किया था।
Kohinoor : कोहिनूर का कुल वजन 105.6 कैरेट है और अब यह ब्रिटिश क्राउन ज्वेल्स का हिस्सा है।(Wikimedia Commons)
Kohinoor : कोहिनूर का कुल वजन 105.6 कैरेट है और अब यह ब्रिटिश क्राउन ज्वेल्स का हिस्सा है।(Wikimedia Commons)

Kohinoor : ये तो सब जानते हैं कि कोहिनूर दुनिया के सबसे बड़े और सबसे प्रसिद्ध तराशे गए हीरों में से एक है लेकिन इस बहुमूल्य रत्न का एक बहुत लंबा और विचित्र इतिहास रहा है, जो भारत में मध्यकाल से शुरू होता है। कोहिनूर पर एक समय में काकतीय वंश का अधिकार हुआ करता था, जो एक शक्तिशाली राजवंश था। जिसने 12वीं और 14वीं शताब्दी के बीच वर्तमान आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के अधिकांश तेलुगु भाषी क्षेत्र पर शासन किया था। आपको बता दें कि कोहिनूर का कुल वजन 105.6 कैरेट है और अब यह ब्रिटिश क्राउन ज्वेल्स का हिस्सा है।

कैसे हुई कोहिनूर की उत्पत्ति ?

हीरे का सबसे पहला सत्यापन योग्य रिकॉर्ड मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के संस्मरणों से मिलता है, जिसने 1526 में लिखा था कि उसने यह पत्थर दिल्ली के सुल्तान से हासिल किया था। जबकि यह भी संभव है कि हीरा बाबर से पहले ही अस्तित्व में था, और वह किसी अन्य बड़े हीरे की बात कर रहा था। कोह-ए-नूर नाम का फ़ारसी में अर्थ है "रोशनी का पर्वत", और यह नाम शासक नादिर शाह द्वारा दिया गया था, जिसने 1739 में दिल्ली पर आक्रमण किया और लूटा था।

कोह-ए-नूर नाम का फ़ारसी में अर्थ है "रोशनी का पर्वत", और यह नाम शासक नादिर शाह द्वारा दिया गया था।  (Wikimedia Commons)
कोह-ए-नूर नाम का फ़ारसी में अर्थ है "रोशनी का पर्वत", और यह नाम शासक नादिर शाह द्वारा दिया गया था। (Wikimedia Commons)

कौन थें कोहिनूर के पहले मालिक

राजा गणपति देव 1199 से 1262 तक काकतीय राजवंश के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले राजा थे। गणपति देव कोहिनूर के पहले ज्ञात मालिक थे। उन्हें यह पूर्वी गंगा से सम्मान या उपहार के रूप में प्राप्त हुआ था। इसके बाद रुद्रमा देवी 1262 में अपने पिता गणपति देव की उत्तराधिकारी बनीं। रुद्रमा देवी को कोहिनूर अपने पिता से विरासत में मिला था, और उन्होंने इसे देवी भद्रकाली को श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित किया था जो इससे सुशोभित थीं।

जब दिल्ली सल्तनत ने उस पर आक्रमण किया तब काकतीय राजवंश 14वीं सदी की शुरुआत में समाप्त हो गया। काकतीय राजा प्रतापरुद्र द्वितीय ने बहादुरी से विरोध किया, लेकिन उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर होना पड़ा। तब तुगलक द्वारा काकतीयओं से युद्ध में लूटे गए सामान में कोहिनूर भी शामिल था, जिसे उसने दिल्ली में अपने खजाने में शामिल कर लिया।

कब पहुंचा कोहिनूर अंग्रेजों के पास

काकतीय के बाद, कोहिनूर कई शासकों और राजवंशों, जैसे तुगलक, सैय्यद, लोदी, मुगलों, अफगान और सिखों के पास रहा। अंततः कोहिनूर 1849 में अंग्रेजों के पास पहुंच गया, जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पंजाब क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और युवा सिख राजा दलीप सिंह को यह हीरा महारानी विक्टोरिया को सौंपने के लिए मजबूर होना पड़ा। अब भारत पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान के स्वामित्व के दावों के बावजूद कोहिनूर आज भी ब्रिटिश क्राउन ज्वेल्स में बना हुआ है।

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