पश्चिमी देशों में साल 2022 में भी महिलाओं के शीर्ष पद पर आसीन होने या कमान संभालने पर कई महीनों तक वाहवाही दी जाती है लेकिन भारत में शुरूआत से ही महिलाओं के सत्ता में रहने और कई क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभाने का चलन रहा है। कश्मीर ने भी कभी ऐसी ही नायाब महिला शासक के दौर को देखा है। अनुच्छेद 370 (Article 370) के निरस्त किये जाने के बाद से कश्मीर (Kashmir) की बदलती राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक तस्वीर उस दौर की याद दिलाती है, जब यहां धार्मिक और सांस्कृतिक सहिष्णुता थी, जब यहां की वादियों में असीम शांति महसूस होती थी और जब संत, पीर और फकीर कला जीवन के मायने बताते थे। तब का संपन्नता भरा दौर उस वक्त के शासक के अपनी जनता के प्रति लगाव का परिणाम था।
कश्मीर ने जिस हिंदू रानी के नेतृत्व में विकास की ओर कदम बढ़ाया, वह थीं- 'कोटा रानी'। कोटा रानी (Kota Rani) का व्यक्तित्व लोगों को चमत्कृत करने वाला था और उन्होंने अपने निजी भावनाओं को परे रख कर जनता के हितों को सर्वोपरि रखा, जिसके कारण उन्होंने वहां की जनता के दिल में अपनी अमिट छाप छोड़ी।
कोटा रानी के पिता रामचंद्र कश्मीर के राजा सुहादेव के प्रधानमंत्री एवं सेनापति थे। इसी दौरान लद्दाख (Ladakh) का एक राजकुमार रिन्शेन राजगद्दी की लड़ाई में अपने चाचा से हारकर सुहादेव के पास आया। सुहादेव के दरबार में उसे मंत्री का पद मिला और उसकी दोस्ती यहां शाहमीर से हुई।
मंगोली आक्रांता जुल्जू या दुलाशा ने जब कश्मीर पर हमला किया और सुहादेव को हरा दिया तो सुहादेव भागकर तिब्बत चला गया। लेकिन दुलाशा के लिये कश्मीर महंगा सौदा साबित हो रहा था। यहां की जलवायु, भूगोल और सेना को यहां तैनात करने का खर्च दुलाशा को अधिक लगने लगा तो वह कश्मीर छोड़कर चला गया।
दुलाशा के चले जाने के बाद रामचंद्र ने राजगद्दी संभाली और रिन्शेन को प्रशासक नियुक्त किया। लेकिन रिन्शेन ने रामचंद्र की हत्या कर दी और सत्ता हथिया ली। रिन्शेन बहुत ही चालाक और कूटनीतिक व्यक्ति था। उसने रामचंद्र के बेटे रावणचंद्र को अपना मुख्य सलाहकार नियुक्त किया और उसे लद्दाख तथा लार की जागीर दे दी। उसने रामचंद्र की बेटी कोटा रानी से शादी कर ली। कोटा रानी ने कश्मीर की जनता के हित में अपने पिता के हत्यारे को पति के रूप में स्वीकार किया।
सन् 1323 में रिन्शेर की मौत हो गई तो कोटा रानी से उसके भाई उदयन देव से शादी कर ली। उदयन देव से शादी कर कोटा रानी ही सत्ता की बागडोर संभाले हुई थीं। उस वक्त मंगोल तुर्क आक्रमणकारी अशला ने कश्मीर पर आक्रमण किया तो उदयन देव तिब्बत भाग गया लेकिन कोटा रानी मैदान में डटी रहीं। उन्होंने दुश्मन को पीछे ढकेला और अशला को मार गिराया। इस घटना के बाद वह अपने जनता के दिलों में घर कर गयीं।
कोटा रानी ने 15 साल तक सत्ता की कमान संभाली और उनके पहले पति रिन्शेन के दोस्त तथा वजीर शाहमीर ने हमेशा उनका साथ दिया। शाहमीर के साथ कोटा रानी ने कश्मीर को स्थिरता दी और राज्य में शासन व्यवस्था लागू की।
शाहमीर भी बाहर से आया था। कुछ का मानना है कि वह तुर्क था तो कुछ का कहना है कि वह पांडवों में महान धनुर्धर रहे अर्जुन का वंशज था। उसे लोहाारा वंश के कश्मीरी राजा साहदेव ने एक गांव तोहफे में दिया था।
कोटारानी के शासनकाल में कई बाहरी लोगों ने राज्य हथियाने की कोशिश की लेकिन मंत्रियों की वफादारी और अपनी समझदारी तथा कूटनीतिक जानकारी की बदौलत रानी ने हर कोशिश को नाकाम कर दिया। उन्होंने कश्मीर को सिर्फ बाहरी हमलों से ही नहीं बचाया बल्कि वह राज्य में आंतरिक खुशहाली लाने के लिये भी प्रयासरत रहीं।
कश्मीर के इतिहासकार जोनराजा कोटारानी की प्रशंसा अपनी कविता में करते हुये कहते हैं कि जिस तरह से नहरें खेतों को पोषण देती हैं, उस तरह से ही रानी संपत्ति न्योछावर कर अपने लोगों को खुशहाली देती हैं। वह राज्य के लिये बिल्कुल वैसी हैं, जैसे नीलकमल के लिये चांद होता है। वह दुश्मनों के लिये बिल्कुल वैसी हैं, जैसे सफेद कमल के लिये सूरज होता है।
मंगोल तुर्क आक्रमणकारी को मार गिराने के बाद कोटा रानी ने भट्ट भीक्षणा को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया और अपनी जनता को संरक्षण देती रहीं। उनका हर कदम बस कश्मीर की जनता के हित में उठा। उन्होंने इसी ख्याल के साथ कुटकोल नहर का निर्माण कराया। यह नहर श्रीनगर शहर को बाढ़ से बचाने के लिये बनाई गई थी। झेलम नदी का पानी इस नहर के जरिये श्रीनगर के प्रवेश के पास से गुजरता था और फिर शहर के इर्द-गिर्द होता हुआ नदी में मिल जाता था।
कोटा रानी ने जब भट्ट भीक्षणा को प्रधानमंत्री नियुक्त किया तो शाहमीर कुपित हो गया। उसने धोखे से भट्ट की हत्या कर दी और कोटा रानी के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। कोटा रानी ने 1339 में आत्महत्या कर ली और अपनी आंतें शाहमीर को तोहफे के रूप में भेज दीं।
यहां तक कि जैनुल आबदीन के शासनकाल में भी महिलाओं की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ और वे मौलिक अधिकारों से भी वंचित रहीं।
कोटा रानी की कहानी भले ही हर पग पर संघर्ष और युद्ध को बताती है लेकिन वह अपने निजी बलिदानों के कारण लोगों के दिल में एक देवी की तरह रहीं। उनकी बहादुरी, बुद्धिमता और कूटनीति ने एक मानक स्थापित किया। कोटा रानी की किस्मत में भले ही चैन का एक भी पल नहीं था लेकिन वह एक मां की तरह लोगों को छत्रछाया देती रहीं।
कश्मीर में आज दोबारा कोटा रानी के शासनकाल की लहर चल रही है। देश के मौजूदा प्रधानमंत्री घाटी में महिलाओं की स्थिति में सुधार के प्रति दिलचस्पी ले रहे हैं और केंद्र सरकार ने महिलाओं के सशक्तिकरण (Women Empowerment) के लिये कई योजनायें लागू की हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि सरकार के इस प्रयास से कश्मीर में कई कोटा रानी सामने निकलकर आयेंगी और घाटी को उसकी पुरानी गौरवशाली गरिमा वापस दिला पायेंगी।
आईएएनएस (PS)