Maharaja Madho Rao Scindia : आपने कई अमीर लोगों और महाराजाओं के बारे में पढ़ा होगा। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे महाराजा के बारे में बताएंगे जिन्होंने एक कुत्ते के नाम वसीयत लिख दी। दरअसल, साल 1886 में माधो राव सिंधिया जब ग्वालियर रियासत की गद्दी पर बैठे, तो उनकी उम्र मात्र 10 साल थी। इसके बाद के सालों में उन्होंने ऐसे - ऐसे काम किये, जिसके अंग्रेज भी दीवाने हो गए। माधो राव ने अपना बेतहाशा पैसा सिंधिया रियासत की सेना को आधुनिक बनाने पर खर्च किया।
जब पहला विश्व युद्ध शुरू हुआ तो ग्वालियर की इंपीरियल आर्मी ब्रिटिश फौज की तरफ से फ्रांस, ईस्ट अफ्रीका, मिस्र, फिलिस्तीन जैसे देशों में लड़ी। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई अपनी किताब ‘द हाउस ऑफ सिंधियाज’ में इनके बारे में लिखते हैं कि एक अनुमान के मुताबिक फर्स्ट वर्ल्ड वॉर में सिंधिया परिवार को उस जमाने में 25 मिलियन रुपये खर्च करने पड़े थे।
माधो राव सिंधिया ने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से एलएलडी की डिग्री हासिल की। जब वह ग्वालियर लौटे तो उन्होंने अपनी रियासत में अलग से सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट बनाया, जो खास बड़े-बड़े स्टोरेज टैंक और नहर जैसी चीजें बनाया करता था। उनके बारे में लिखा गया कि माधो राव थोड़ा अंधविश्वासी किस्म के व्यक्ति थे। एक बार एक-एककर तीन ऐसी घटनाएं हुईं, जिससे वह दहल गए। उनका पसंदीदा हाथी किले से तोप ले जाते हुए मर गया। इसके ठीक बाद उनकी पसंदीदा कोट ”माही मारताब” पता नहीं कैसे खराब हो गई। यहां तक तो ठीक था, लेकिन तीसरी घटना के बाद महाराजा बुरी तरह खौफ में आ गए।
सिंधिया परिवार ताजिया की अगुवाई करता था। एक बार मोहर्रम के दौरान जब ताजिया निकला तो शॉर्ट सर्किट की वजह से उसमें आग लग गई। परंतु थोड़ी देर में ही आग बुझा ली गई, लेकिन माधो राव को इस घटना से सदमा लग गया। उन्हें ऐसा लगने लगा कि कोई अनहोनी होने वाली है। यह देख कर उनकी आंखों से टप-टप आंसू गिर रहे थे। इन घटनाओं के बाद माधो सिंधिया बहुत ज्यादा सिगरेट पीने लगे।
माधो राव सिंधिया का जानवरों से खास लगाव था। खासकर अपने पालतू कुत्ते हुस्सू से बहुत प्यार करते थे। साल 1925 में जब महाराजा पेरिस में बीमार पड़े तो उन्हें सबसे ज्यादा चिंता अपने कुत्ते की थी। उन्होंने सबसे सीनियर महारानी चिनकू राजे को बुलाया और कहा कि मेरी मौत के बाद हुस्सू की देखभाल में कोई कमी नहीं आनी चाहिए और माधो राव ने अपनी वसीयत लिखी तो इसमें हुस्सू की देखरेख के लिए खास तौर से रकम जमा करवाए। उनकी मौत के बाद जब नवंबर 1930 में हुस्सू की मौत हुई तो महारानी चिनकू राजे ने ग्वालियर में आलीशान तरीके से उसका अंतिम संस्कार करवाया और एक मेमोरियल भी बनवाया।