
रानी बनी शासक
साल 1631 में गढ़वाल (Garhwal) के राजा महिपति शाह (Mahipati Shah) का निधन हो गया। उनका बेटा पृथ्वीपति शाह उस समय केवल 7 वर्ष का था। ऐसे में राज्य की ज़िम्मेदारी उसकी मां, रानी कर्णावती के कंधों पर आ गई।
मुग़लों का हमला
मुगल (Mughal) बादशाह शाहजहाँ (Shah Jahan) को लगा कि एक महिला और छोटे से राज्य को आसानी से जीत लिया जाएगा। उन्होंने अपनी 30,000 सैनिकों की बड़ी सेना, अपने सेनापति नजाबत खान के साथ, गढ़वाल भेज दी। गढ़वाल सोना, चांदी, तांबा से भरपूर था, जिसे मुग़ल अपने कब्जे में लेना चाहते थे।
पहाड़ों में चतुर चाल
रानी कर्णावती (Rani Karnavati) को पता था कि सीधे युद्ध में उनकी छोटी सेना मुग़लो के सामने नहीं टीक पाएगी। इसलिए उन्होंने पहाड़ों का फायदा उठाते हुए रास्तों को पेड़ों और बड़े पत्थरों से बंद कर दिया, ताकि दुश्मन आगे न बढ़ सके। मुग़ल सेना फंस गई, वहाँ तो न खाने का इंतज़ाम, न आगे बढ़ने का रास्ता, न पीछे लौटने का।
चौंका देने वाली शर्त
जब मुग़ल सेनापति ने शांति की बात की, तो रानी कर्णावती (Karnavati) ने एक अजीब और अपमानजनक शर्त रखी, “या तो अपनी नाक कटवाओ, या वापस जाओ। नजाबत खान (Najabat Khan) की सेना को हार माननी पड़ी और कई सैनिकों की नाक काटकर उन्हें छोड़ दिया गया। कहा जाता है कि इस अपमान के कारण नजाबत खान ने अपनी जान भी दे दी।
नाक-कट्टी रानी का नाम
इस घटना के बाद लोग रानी कर्णावती (Rani Karnavati) को ‘नाक-कट्टी रानी’ कहने लगे। इस जीत ने पूरे इलाके में एक संदेश दे दिया, गढ़वाल की ओर आंख उठाकर देखने की हिम्मत भी मत करना।
सिर्फ योद्धा नहीं, एक निर्माता भी
युद्ध के बाद रानी ने राज्य के विकास पर ध्यान दिया। उन्होंने देहरादून में राजपुर नहर बनवाई, जिससे खेतों तक पानी पहुंचा। कई नए गांव बसाए, जैसे नवादा और राजपुर। उन्होंने विद्वानों और सांस्कृतिक गतिविधियों को भी बढ़ावा दिया।
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आज भी याद की जाती हैं
रानी कर्णावती के काम आज भी लोगों के लिए फायदेमंद हैं। 350 साल से भी पुरानी राजपुर नहर आज भी देहरादून घाटी के किसानों के खेतों को सींच रही है। जिन गांवों को उन्होंने बसाया, वे अब भी आबाद हैं। उनकी वीरता की कहानियां लोकगीतों, किस्सों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सुनाई जाती हैं।
निष्कर्ष
रानी कर्णावती (Rani Karnavati) की कहानी सिर्फ एक युद्ध जीतने की नहीं, बल्कि समझदारी, नेतृत्व और अपने लोगों की रक्षा करने की है। उन्होंने दिखा दिया कि असली ताकत हथियारों में नहीं, बल्कि हिम्मत, दिमाग और दूरदर्शिता में होती है। उनका नाम हमेशा इस बात की मिसाल रहेगा कि चाहे हालात कितने भी मुश्किल क्यों न हों, अगर इरादा मज़बूत हो, तो इतिहास बदल सकते है। [Rh/BA]