"आज़ादी"इस शब्द को सोचा ही जाए तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं क्योंकि इस विषय पर सोचते ही याद आते हैं वह हजारों बलिदान हमारे देश की मां, बहन ,बेटियों और पत्नियों ने किए हैं अपने पुत्र ,भाई पिता और पति को खोकर। हजारों शहीद और हजारों क्रांतिकारी जिन्होंने अपना जीवन न्यौछावर कर दिया हमारी आजादी के लिए आइए हम आज आपको ऐसे ही एक आजादी के मतवाले के बारे में बताते हैं।
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के नाम से तो आप सभी वाकिफ होंगे। लेकिन क्या आप जानते है कि गायत्री महाविद्या के महामनीषी और अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक-संरक्षक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे।उनका एक और कार्य जो हमेशा याद रखा जाता हैं वह यह हैं कि आजादी की लड़ाई में उनके योगदान के बदले भारत सरकार ने अपना प्रतिनिधि भेजकर उन्हें स्वतंत्रता सेनानी वाली सुविधा व पेंशन देने की पेशकश की तो उन्होंने यह सब लेने से स्पष्ट मना कर दिया और कहा कि पेंशन की धनराशि प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा कर दी जाए। श्री राम ने 15 वर्ष की किशोरवय आयु से 22 वर्ष की युवा आयु तक आजादी के संग्राम में एक क्रांतिकारी की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।जेल में बंद हो गए 1927 से 1933 तक वे कांग्रेस में रहे और एक क्रांतिकारी स्वयंसेवक की भूमिका निभाते रहे। भगत सिंह की फाँसी के बाद जब हजारों युवा सरफरोशी की तमन्ना लिए जेल में बंद हो गए तो उन्हीं में से एक पंडित श्रीराम शर्मा भी थे। यह वह दौर था जब यदि कोई व्यक्ति हाथ में तिरंगा झंडा लेकर जुलूस निकालता था तो इसे दुस्साहस माना जाता था। इसी क्रम में जब श्रीराम ने हाथ में तिरंगा लेकर वंदे मातरम का नारा लगाया तो पुलिस द्वारा उनकी पिटाई की गई इससे बेहोश होकर वे कीचड़ में गिर गए परंतु झंडा नहीं छोड़ा तभी से उनका नाम मत्त( आजादी का मतवाला ) पड़ गया।सत्याग्रह आंदोलन के दौर में पांच छह वर्षों तक उन्होंने टेलीफोन के तार काटने से लेकर पुलिस थानों पर छापामार हमले की कार्रवाईयों को लेकर ब्रिटिश सरकार का जीना दुश्वार कर दिया।
(आईएएनएस/PT)