
भारत की आज़ादी के बाद इतिहास में पंजाब का पुनर्गठन (Punjab Reorganization) एक बड़ा राजनीतिक और प्रशासनिक मोड़ था। यह घटना केवल भाषा के आधार पर राज्यों के गठन तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसमें सुरक्षा, सीमारेखा, राजनीति और केंद्र राज्य संबंधों की गहरी छाप भी शामिल थी। आमतौर पर पंजाब के गठन का श्रेय इंदिरा गांधी( Indira Gandhi) को दिया जाता है, लेकिन इसके पीछे जो रास्ता तैयार हुआ, उसकी जड़ें लाल बहादुर शास्त्री की सोच और फैसलों में थीं।
लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) का प्रधानमंत्री कार्यकाल भले ही बहुत छोटा रहा हो, लेकिन उसमें लिए गए निर्णय लंबे समय तक असर डालते रहे हैं। 1965 में पाकिस्तान के साथ रण ऑफ कच्छ की झड़पों के बाद उन्होंने एक संगठित सीमा सुरक्षा बल की आवश्यकता महसूस की। पाकिस्तान ने पहले ही 1958 से वेस्ट पाकिस्तान रेंजर्स को सीमा की जिम्मेदारी सौंप रखी थी। भारत में यह जिम्मेदारी अलग-अलग राज्यों की पुलिस और सशस्त्र बलों के पास थी, जिससे सामंजस्य की समस्या आती थी। उसके बाद शास्त्री ने अप्रैल 1965 में गृह मंत्रालय से एक समिति बनवाई, जिसने सुझाव दिया कि एक नया केंद्रीय सीमा बल बनाया जाए। इसके बाद 1 दिसंबर 1965 को सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का गठन हुआ। शास्त्री का यह कदम केवल उस समय का जरूरत नहीं था, बल्कि एक लम्बे समय वाला रणनीति का हिस्सा था।
पंजाब पुनर्गठन का रास्ता कैसे खुला ?
1956 के राज्य पुनर्गठन आयोग ने पंजाबी को अलग भाषा के आधार पर पुनर्गठित करने की मांग को ठुकरा दी थी। आयोग का तर्क था कि अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे राज्यों को सुरक्षा के लिहाज से बड़ा और सक्षम होना चाहिए ताकि वो सीमा की रक्षा कर सकें। यानी, छोटे राज्य सीमाओं की सुरक्षा संभालने में सक्षम नहीं होंगे। लेकिन शास्त्री द्वारा बीएसएफ की स्थापना के बाद यह तर्क निरर्थक हो गया। अब सीमा सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्यों पर नहीं, बल्कि केंद्र के अधीन एक संगठित बल पर आ गई। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि सीमा से लगे छोटे राज्यों का गठन संभव हो गया, क्योंकि उन्हें सुरक्षा के बोझ से मुक्त कर दिया गया था।
शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) का निधन जनवरी 1966 में ताशकंद समझौते के बाद हुआ। उसी साल इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) देश की प्रधानमंत्री बनीं। बीएसएफ के गठन के बाद पंजाब पुनर्गठन का रास्ता साफ था और इंदिरा गांधी ने इस राजनीतिक फैसले को लागू किया।1 नवंबर 1966 को पंजाब का पुनर्गठन (Punjab Reorganization) हुआ। पुराने पंजाब से तीन नए हिस्से बने पंजाबी सूबा, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने इस फैसले को लागू करके राजनीतिक रूप से बड़ा श्रेय हासिल किया। उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल में ही यह ऐतिहासिक घटना हुई, इसलिए लोगों के मन में है की इसका श्रेय उन्हें ही मिला है। शास्त्री का नाम धीरे-धीरे पीछे छूट गया, क्योंकि उन्होंने केवल नींव रखी थी, जबकि अंतिम निर्णय इंदिरा गांधी ने लागू किया।
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बीएसएफ ने न केवल सीमाओं को सुरक्षित किया, बल्कि देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा में भी अहम भूमिका निभाई। समय के साथ यह बल दुनिया की सबसे बड़ी सीमा सुरक्षा फोर्स बन गया, जिसमें आज करीब 2.7 लाख जवान और 200 से अधिक बटालियन शामिल हैं। यह केवल सीमा की निगरानी ही नहीं करता, बल्कि तस्करी, आतंकवाद और अवैध प्रवासियों को रोकने में भी श्रेष्ठ है। अगर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) बीएसएफ की नींव न रखते, तो संभव है कि पंजाब का पुनर्गठन लंबे समय तक टल जाता। यह उनके दूरगामी सोच का प्रमाण है कि उन्होंने सीमाओं की सुरक्षा को केवल राज्यों के भरोसे नहीं छोड़ा।
पंजाब के पुनर्गठन (Punjab Reorganization) ने भारतीय राजनीति में बड़ा बदलाव किया। एक ओर जहां पंजाबी सूबा आंदोलन को सफलता मिली, वहीं दूसरी ओर हरियाणा का जन्म हुआ, जिसने उत्तर भारत की राजनीति को नई दिशा दी। हिमाचल प्रदेश का अलग अस्तित्व भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा था। हालांकि, इसके राजनीतिक श्रेय की कहानी अलग रही है। शास्त्री का निधन और उनका छोटा कार्यकाल उनकी उपलब्धियों को पीछे धकेल दिया, या ऐसा कह सकते हैं की शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) का निधन ऐसे समय में हुआ जब उनकी उपलब्धियों को इतिहास के पन्नो में लिखा जाता। वहीं, इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने इसे एक निर्णायक फैसले के रूप में लागू कर अपने राजनीतिक कार्य को और मजबूत किया।
क्यों इतिहास में शास्त्री का योगदान दब गया ?
इतिहास अक्सर उन नेताओं को ज्यादा याद रखता है, जिनके समय में अंतिम निर्णय लागू होते हैं। शास्त्री की छवि "जय जवान, जय किसान" के नारों तक सीमित कर दी गई, जबकि उनकी दूरदर्शी नीतियों ने आगे चलकर कई बड़े बदलावों का रास्ता खोला। पंजाब का पुनर्गठन उसी का एक उदाहरण है।
अगर वो कुछ और समय प्रधानमंत्री रहते, तो शायद पंजाब गठन का श्रेय भी उन्हें मिलता। लेकिन किस्मत ने ऐसा नहीं होने दिया और राजनीतिक इतिहास में यह उपलब्धि इंदिरा गांधी के नाम दर्ज हो गई।
निष्कर्ष
पंजाब के गठन (Punjab Reorganization) का श्रेय भले ही इंदिरा गांधी को मिला हो, लेकिन इसकी असली नींव लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) ने सीमा सुरक्षा बल की स्थापना से रखी थी। शास्त्री ने यह साबित किया कि राष्ट्रीय सुरक्षा और राज्यों के पुनर्गठन जैसे मुद्दे आपस में जुड़े हैं। यह कहानी हमें याद दिलाती है कि राजनीति में केवल फैसले लेना ही नहीं, बल्कि सही समय पर उन्हें लागू करना भी अहम होता है। इंदिरा गांधी ने यही किया और पंजाब गठन का श्रेय हासिल किया, जबकि शास्त्री का योगदान परछाइयों में छिप गया। असल में, पंजाब के पुनर्गठन की कहानी दो प्रधानमंत्रियों की है पहला शास्त्री, जिन्होंने नींव रखी और रास्ता बनाया। दूसरा इंदिरा, जिन्होंने उसे अंतिम रूप देकर इतिहास में दर्ज कर दिया। [Rh/PS]