Silver Coin : चांदी की कीमत लगातार बढ़ती ही जा रही है। 16 मई को इसकी कीमत अब तक के उच्चतम स्तर तक पहुंच गई। एक दिन में 1195 रुपए की बढ़ोतरी के बाद चांदी का दाम 85,700 रुपए प्रति किलो हो गया। एक समय था जब इन्हीं चांदी के सिक्कों का इस्तेमाल आम लेन-देन के लिए किया जाता था। आपको बता दें भारत में चांदी के सिक्कों का इस्तेमाल सबसे पहले शेरशाह सूरी ने शुरू किया था। आइए जानें कि कैसे थे शेरशाह द्वारा चलवाए चांदी और दूसरी धातुओं के सिक्के।
शेरशाह सूरी का जन्म 1486 ईस्वी में बिहार के सासाराम के जागीरदार हसन खान के घर में हुआ। उनका असली नाम फरीद था। बहादुरी के लिए फरीद को शेर खान की उपाधि दी गई थी। मुगलों को हरने के बाद हिन्दुस्तान पर शेरशाह सूरी का राज्य स्थापित हो गया और उसने सूर वंश की स्थापना की लेकिन उनका शासन काफी कम समय तक चला।
1940 से 1945 तक ही शेरशाह सूरी ने शासन किया, वैसे तो भारत में लेन-देन के लिए काफी पहले से ही अलग-अलग धातुओं के सिक्के और मुद्राएं चलन में थीं लेकिन पहली बार व्यवस्थित ढंग से शेरशाह ने ही अपने शासनकाल में चांदी के सिक्के शुरू किए। शेरशाह ने ही अपनी मुद्रा को रुपया कहा जो आज नया रुपया के रूप में भारत की मुद्रा है। उनके द्वारा चलाए गए चांदी के एक सिक्के का वजन करीब 178 ग्रेन यानी लगभग 11.534 ग्राम था। वहीं ब्रिटिश काल में इसका वजन 11.66 ग्राम था और उसमें 91.7 फीसदी तक चांदी होती थी।
इसके बाद में दोबारा मुगल शासन की स्थापना होने के बाद से लेकर अंग्रेजों के शासन काल तक इन सिक्कों का चलन रहा। इन सिक्कों के अलावा अपने शासन के दौरान शेरशाह सूरी ने दाम यानी छोटा तांबे का सिक्का, मोहर यानी सोने का सिक्का भी चलाया था। चांदी के सिक्के को एक रुपया कहा जाता था और एक तोला सोना के सिक्के को मोहर कहा जाता था। उस दौर में सोने के एक सिक्के यानी मोहर का मूल्य 16 रुपए था अर्थात एक मोहर के बदले में चांदी के 16 सिक्के देने पड़ते थे।
मुगल शासक अकबर ने अपने समय में गोल और वर्गाकार दोनों तरह के सिक्के चलवाए थे, साल 1579 में अकबर ने अपने नए धार्मिक पंथ दीए-ए-इलाही के प्रचार-प्रसार के लिए इलाही नाम से सोने के सिक्के चलवाए थे। उस वक्त एक इलाही सिक्के का मूल्य 10 रुपए था। इनके समय में सोने का सबसे बड़ा सिक्का शहंशाह कहा जाता था, जिस पर फारसी सौर माह के नाम होते थे।