गोलियों से छलनी इंदिरा गांधी और एम्स की वो सुबह, जो इतिहास बन गई

31 अक्टूबर 1984 की वो सुबह, जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira gandhi) को गोलियों से छलनी हालत में एम्स (Aiims) लाया गया। डॉक्टर स्नेह भार्गव (Dr. Sneh Bhargava)की आंखों देखी उस दिन की कहानी, जब पूरा देश सन्न रह गया और इतिहास का एक दर्दनाक अध्याय लिखा गया।
31 अक्टूबर 1984 यह केवल इंदिरा गांधी की हत्या की तारीख नहीं थी, बल्कि भारत के लोकतंत्र, राजनीति और समाज के लिए एक निर्णायक मोड़ था। Wikimedia commons
31 अक्टूबर 1984 यह केवल इंदिरा गांधी की हत्या की तारीख नहीं थी, बल्कि भारत के लोकतंत्र, राजनीति और समाज के लिए एक निर्णायक मोड़ था। Wikimedia commons
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31 अक्टूबर 1984 की सुबह थी। दिल्ली के एम्स (AIIMS) में डॉक्टर स्नेह भार्गव (Dr. Sneh Bhargava)का पहला दिन था। यह दिन उनके करियर का नहीं, बल्कि भारत के इतिहास का भी एक काला दिन बन गया था। सुबह-सुबह एक रेडियोग्राफर दौड़ता हुआ उनके पास आया और कहा, "प्रधानमंत्री को इमरजेंसी में लाया गया है।"

डॉ. स्नेह (Dr. Sneh)को विश्वास नहीं हुआ। प्रधानमंत्री बिना सुरक्षा और सूचना के कैसे आ सकती हैं? लेकिन मन में बेचैनी हुई और वो इमरजेंसी की ओर भागीं। जब डॉक्टर स्नेह (Dr. Sneh)इमरजेंसी पहुंचीं, तो उन्होंने देखा वहां दो युवा डॉक्टर घबराए खड़े थे। उन्होंने उनको एक ट्रॉली की ओर इशारा किया जिस पर बिना चादर के इंदिरा गांधी खून से लथपथ लेटी थीं। ट्रॉली पर भी गोलियां पड़ी थीं। डॉक्टर स्नेह कहती हैं, “मैंने उनका चेहरा देखा, उनके सफेद बाल देखे, जो उनकी पहचान थी। उस समय मुझे समझ आ गया, स्थिति बेहद गंभीर है।”

इससे कुछ घंटे पहले, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके ही दो सिख बाडीगार्डो ने उनके आवास पर गोली मार दी थी। यह हमला जून 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के कारण हुआ गुस्से का बदला था, जिसमें सेना ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में छिपे उग्रवादियों के खिलाफ कार्रवाई की थी। इंदिरा गांधी को बचाने के लिए एम्स के डॉक्टरों ने हर संभव प्रयास किया। दो मिनट में सर्जन बुलाए गए। उनका ब्लड ग्रुप B-नेगेटिव था जो बेहद दुर्लभ होता है। खून की कमी को पूरा करने के लिए O-नेगेटिव ब्लड चढ़ाया गया, जो सभी को दिया जा सकता है। डॉक्टरों ने कोशिश की कि उन्हें हार्ट-लंग मशीन पर रखा जाए, लेकिन गोली उनके शरीर को अंदर तक घायल कर चुकी थी। खून जहां चढ़ाया जा रहा था, वहीं से नीचे गिर भी रहा था। डॉक्टर स्नेह (Dr. Sneh)ने ऑपरेशन थियेटर में उन्हें सर्जन को सौंप दिया, लेकिन स्थिति लगातार बहुत ही बिगड़ती जा रही थी।

जब इंदिरा गांधी को अस्पताल लाया गया, उस समय उनके बेटे राजीव गांधी चुनाव प्रचार के लिए बंगाल में थे, लेकिन उनकी बहू सोनिया गांधी और बच्चे राहुल और प्रियंका अस्पताल पहुंचे थे। Wikimedia commons
जब इंदिरा गांधी को अस्पताल लाया गया, उस समय उनके बेटे राजीव गांधी चुनाव प्रचार के लिए बंगाल में थे, लेकिन उनकी बहू सोनिया गांधी और बच्चे राहुल और प्रियंका अस्पताल पहुंचे थे। Wikimedia commons

सोनिया गांधी और बच्चों की हालत

जब इंदिरा गांधी को अस्पताल लाया गया, उस समय उनके बेटे राजीव गांधी चुनाव प्रचार के लिए बंगाल में थे, लेकिन उनकी बहू सोनिया गांधी और बच्चे राहुल और प्रियंका अस्पताल पहुंचे थे। उस समय का दृश्य देखकर सोनिया गांधी डॉ. अचानक बीमार होने लगीं। स्नेह बताती हैं, “सोनिया गाँधी को अस्थमा का दौरा पड़ा। उन्हें दवा देकर ठीक किया गया और ऑपरेशन थिएटर के बाहर एक कमरे में बैठाया गया।” बच्चे को तेजी बच्चन के घर भेज दिए गए ताकि वो एकांत में रहें। सोनिया की देखभाल की जिम्मेदारी खुद डॉ. स्नेह (Dr. Sneh )ने ली।

मृत्यु की घोषणा में क्यों हुई देरी ?

इंदिरा गांधी की मौत (Death) हो चुकी थी, लेकिन अस्पताल ने तुरंत घोषणा नहीं की। उसकी वजह थी राजनीतिक और सामाजिक हालात का तनाव। स्वास्थ्य मंत्री और कांग्रेस नेता आपस में चर्चा कर रहे थे कि डॉक्टरों को साफ़ कहा जाए कि इंदिरा गांधी की मौत (Death) का "घोषणा मत करो, सन्नाटा का माहौल नहीं बनने देना है।" उस समय भारत के राष्ट्रपति थे ज्ञानी जै़ल सिंह, जो खुद सिख थे। जब वो यमन यात्रा से लौटे और अस्पताल आए, तो उनके चेहरे पर डर और चिंता साफ दिख रही थी। डॉक्टर स्नेह (Dr. Sneh ) लिखती हैं कि वे बस कुछ ही मिनट रुके और फिर बोले, "राजीव को आने दो", और चले गए।

जब राजीव गांधी एम्स पहुंचे, उन्होंने सबसे पहले सोनिया से मुलाकात की और फिर मां के पास गए। डॉक्टर स्नेह (Dr. Sneh)के अनुसार, राजीव शांत थे लेकिन भीतर से टूट चुके थे। उन्होंने कहा, "मैंने मां को सिख गार्ड से सावधान रहने को कहा था, मुझे उस पर पहले संदेह था।"

31 अक्टूबर 1984 की सुबह थी। दिल्ली के एम्स (AIIMS) में डॉक्टर स्नेह भार्गव का पहला दिन था। यह दिन उनके करियर का नहीं, बल्कि भारत के इतिहास का भी एक काला दिन बन गया था। Wikimedia commons
31 अक्टूबर 1984 की सुबह थी। दिल्ली के एम्स (AIIMS) में डॉक्टर स्नेह भार्गव का पहला दिन था। यह दिन उनके करियर का नहीं, बल्कि भारत के इतिहास का भी एक काला दिन बन गया था। Wikimedia commons

एम्स में सिख डॉक्टरों की चिंता

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे। सैकड़ों लोग मारे गए, हजारों घर जला दिए गए। एम्स में भी काम करने वाले सिख कर्मचारी डर में जी रहे थे।

डॉक्टर स्नेह (Dr. Sneh)कहती हैं, "एक सिख टेक्नीशियन ऑपरेशन थिएटर में मदद कर रहा था, जब उसे पता चला कि प्रधानमंत्री को सिखों ने मारा है, तो वह डर के मारे भाग गया। मेरा रेडियोग्राफर भी सिख था। उसके बाद मैंने पुलिस से एम्स में सुरक्षा बढ़ाने की अपील की।"

डॉ. स्नेह भार्गव (Dr. Sneh Bhargava) की यह पूरी कहानी हाल ही में प्रकाशित उनकी किताब ‘The Woman Who Ran AIIMS’ में सामने आई है। इस किताब में उन्होंने इंदिरा गांधी की मौत से लेकर, दंगों के माहौल और एम्स में डॉक्टरों की चुनौतीपूर्ण भूमिका तक सब कुछ उन्होंने भावनाओं से जुड़े हुये रूप से लिखा है।

निष्कर्ष

31 अक्टूबर 1984 यह केवल इंदिरा गांधी (Indira gandhi) की हत्या की तारीख नहीं थी, बल्कि भारत के लोकतंत्र, राजनीति और समाज के लिए एक निर्णायक मोड़ था। डॉक्टर स्नेह भार्गव (Dr. Sneh Bhargava) की गवाही सिर्फ एक डॉक्टर की नहीं, बल्कि इतिहास की आंखों की गवाही है जो आज भी उन खामोश गलियारों में गूंजती है, जहां एक देश ने अपनी नेता को खो दिया।

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