स्वदेशी समाज: आजादी की ओर एक और कदम

आजादी के संग्राम में बच्चे, बड़े ,बूढ़े, महिलाओं सभी का महत्वपूर्ण सहयोग रहा है।
स्वदेशी समाज की स्थापना आज़ादी की बढ़ाया जाने वाला एक और कदम
स्वदेशी समाज की स्थापना आज़ादी की बढ़ाया जाने वाला एक और कदमIANS

इस तथ्य से तुम हम सभी अच्छी तरह वाकिफ हैं कि आजादी के संग्राम में बच्चे, बड़े ,बूढ़े, महिलाओं सभी का महत्वपूर्ण सहयोग रहा है। लेकिन क्या आप इस तथ्य से वाकिफ है कि आजादी के संग्राम में अलग-अलग पेशे के लोगों का योगदान रहा है आज हम आपको इन्हीं में से एक कवि रवींद्रनाथ टैगोर के योगदान के बारे में बताने जा रहे हैं।

स्वदेशी समाज की स्थापना आज़ादी की बढ़ाया जाने वाला एक और कदम
भारत को आज़ादी का नारा देने वाले क्रांतिकारी कवि 'राम प्रसाद बिस्मिल'

नोबलजयी विश्व कवि के रूप में प्रख्यात गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का आजादी में बहुत ही सराहनीय योगदान रहा हैं। परंतु यह तथ्य बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि गुरुदेव भारतीय आध्यात्मिक जीवन मूल्यों के महापुरुष और एक महान राष्ट्र भक्त भी थे। सन 1905 में अक्टूबर 19 को तत्कालीन विदेशी शासक लॉर्ड कर्जन ने बंगाल को दो भागों में बांटने का फरमान जारी कर दिया था इसी के विरोध में गुरुदेव ने स्वदेशी समाज की स्थापना की। नतीजतन गुरुदेव के विरोध में कोलकाता में लाखों लोगों का जुलूस घुमा और उन्होंने गंगा स्नान करने के पश्चात राखी बांधकर ऐसे अन्याय पूर्ण आदेश को स्वीकार न करने की प्रतिज्ञा ली साथ ही उन्होंने एक गीत गाया इसके बोल इस प्रकार थे "बिधिर बंधन काटिवे तुम एमानि शक्तिमान"(क्या तुम ऐसे शक्तिशाली हो कि विधाता द्वारा निर्मित संबंध का भी विच्छेद कर दोगे) रविंद्र बाबू के इसी आंदोलन से एक चेतना उत्पन्न हुई जो भारत की आजादी के रूप में समाप्त हुई।

महर्षि अरविंद का योगदान

आध्यात्मिक क्रांति की पहली चिंगारी बंगाल के एक महान महर्षि अरविंद थे। सशस्त्र क्रांति के प्रेरणादाई महर्षि अरविंद के आह्वान पर बंगाल के हजारों युवकों ने हंसते-हंसते फांसी के फंदों को चूम लिया। 1906 में अरविंद ने आजादी का आंदोलन अपना मकसद बना लिया। उन्हें बाघा जतिन ,जतिन बनर्जी और सुरेंद्र नाथ टैगोर जैसे क्रांतिकारियों से कोलकाता में मिलवाने वाले अन्य कोई नहीं बल्कि उनके भाई बारिन थे। उनसे मिलने के बाद उन्होंने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के साथ कांग्रेस की गरमपंथी धड़े की विचारधारा को मुखर किया। इसके पश्चात 1908-09 में अलीपुर बम कांड के आरोपी के रूप में उनके ऊपर राजद्रोह का मुकदमा चला। यह उनके जीवन के लिए एक जीवनदायिनी मोड़ साबित हुआ वह जेल में गीता पढ़ा करते थे और भगवान श्री कृष्ण की पूजा किया करते थे वहीं उन्हें श्री कृष्ण के दर्शन हुए कृष्ण की प्रेरणा से वह योग और अध्यात्म में लीन हो गए ।इस बात को इत्तेफाक कहना सही नहीं होगा कि उनके जन्मदिवस यानि 15 अगस्त को ही देश आज़ाद हुआ।

(PT)

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