![अफ़ग़ानिस्तान, आज भुखमरी, युद्ध और राजनीतिक अस्थिरता की भयानक त्रासदी से जूझ रहा है। [SORA AI]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-07-15%2Fuv66mufx%2Fassetstask01k071xzvnf1kr2ttekmcd80z81752583700img0.webp?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
एक समय में हरे-भरे खेतों, ऊँचे पहाड़ों और सांस्कृतिक धरोहरों के लिए प्रसिद्ध अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan), आज भुखमरी, युद्ध और राजनीतिक अस्थिरता की भयानक त्रासदी से जूझ रहा है। यहाँ के लाखों लोग पेट भरने के लिए तरस रहे हैं और वहीं दूसरी ओर, देश के किसान अफीम की खेती में अपनी पूरी ताक़त झोंक रहे हैं। सुनने में यह थोड़ा अजीब लगता है, की एक तरफ रोटी के लिए संघर्ष और दूसरी तरफ एक नशे की खेती के लिए लड़ाई। लेकिन यही अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) की सच्चाई है। अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) दुनिया का सबसे बड़ा अफीम (Opium) उत्पादक देश है। यहाँ के किसान सदियों से अफीम की खेती करते आए हैं, लेकिन अब यह खेती सिर्फ़ परंपरा नहीं, बल्कि जीविका का एकमात्र सहारा भी बन गई है। आइए जानतें है कि अफगानिस्तान (Afghanistan) के किसान आखिर इतने मजबूर क्यों हैं?
अफ़ग़ानिस्तान भूख से क्यों तड़प रहा है?
अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) में आज की भुखमरी का कारण केवल प्राकृतिक आपदाएं या फसल की असफलता नहीं है। इसके पीछे गहरे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारण हैं, जो किसानों की मजबूरी बनकर आए हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट (WFP, 2023) के अनुसार, अफग़ानिस्तान (Afghanistan) की 90% आबादी पर्याप्त भोजन नहीं पा रही है।
अगस्त 2021 में तालिबान (Taliban) द्वारा सत्ता पर कब्जा करने के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय (International Organisations) ने अफग़ानिस्तान को आर्थिक सहायता देना बंद कर दिया। अमेरिका और अन्य देशों ने अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) के केंद्रीय बैंक के करीब 9 अरब डॉलर फ्रीज कर दिए। इससे देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ठप पड़ गई। विश्व बैंक, IMF और अन्य संस्थाओं ने सहायता रोक दी।
देश का 70% हिस्सा कृषि पर निर्भर है, लेकिन Climate Change, Drought और बुनियादी सुविधाओं (Basic Amenities) की कमी ने खेती को भी संकट में डाल दिया है। 2021 से 2023 के बीच देश में दो बार सूखा यानी Drought आए जिससे खाद्यान्न उत्पादन (Production) 30% तक गिर गया।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, देश की 97% आबादी गरीबी की रेखा के नीचे जीवन जी रही है। बेरोज़गारी 40% से अधिक है, जिससे लोगों के पास आय के कोई विकल्प नहीं बचे।
तालिबान (Taliban) ने महिलाओं को काम करने, पढ़ाई करने और सार्वजनिक जीवन में हिस्सा लेने से रोक दिया है। इससे लाखों परिवारों की आय का जरिया खत्म हो गया।
2021 के बाद से 30 लाख से अधिक लोग आंतरिक रूप से गायब हो चुके हैं। इन लोगों को न आवास मिला, न भोजन, और न ही रोजगार।
भूख का ये संकट केवल एक मानवीय त्रासदी नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय आपातकाल बन चुका है। जहाँ बच्चे कुपोषण से मर रहे हैं, वहाँ सरकार की चुप्पी और वैश्विक समुदाय की नाराज़गी इस पीड़ा को और गहरा कर रही है।
फिर भी अफग़ान किसान अफीम की खेती क्यों कर रहे हैं?
जब पेट भूखा हो और जेब खाली, तब नैतिकता की बातें बेमानी लगती हैं। अफग़ानिस्तान (Afghanistan) के किसान अफीम की खेती में लगे हैं क्योंकि उनके पास कोई और रास्ता नहीं बचा है। आइए समझते हैं कि क्यों:
एक हेक्टेयर अफीम की फसल से औसतन 6-7 किलोग्राम कच्चा अफीम निकाला जा सकता है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय काला बाज़ार में कीमत \$5000–\$8000 प्रति किलो तक होती है। यानी किसान को चावल या गेहूं की खेती की तुलना में 10 गुना अधिक मुनाफा हो सकता है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट (UNODC, 2023) के मुताबिक, अफग़ानिस्तान (Afghanistan) में अफीम उत्पादन से 2022 में लगभग \$1.4 बिलियन की आय हुई थी, जो GDP का 15% था।
अफीम की खेती लगभग 4 लाख परिवारों को रोजगार देती है। एक किसान, एक दिहाड़ी मज़दूर और उसके परिवार का पूरा गुज़ारा इस पर निर्भर करता है।
अफीम का व्यापार तालिबान शासन के तहत भी फल-फूल रहा है। कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि स्थानीय कमांडर और अधिकारियों को इससे "टैक्स" के रूप में बड़ी रकम मिलती है। इसका सीधा मतलब है कि अफीम की खेती सरकारी संरक्षण में ही हो रही है।
अफग़ानिस्तान (Afghanistan) में न तो बड़ी फैक्ट्रियाँ हैं, न ही टेक्नोलॉजी या सर्विस सेक्टर। खेत ही एकमात्र रोज़गार हैं, और जब गेहूं या सब्ज़ी उगाने से पेट नहीं भरता, तो अफीम ही एक option बन जाता है।
UN के अनुसार, देश की 28.3 मिलियन आबादी को मानवीय सहायता की ज़रूरत है। ऐसे में किसान अफीम की खेती इसलिए भी कर रहे हैं ताकि वे विदेशी तस्करों को बेचकर कुछ डॉलर कमा सकें और अपने बच्चों के लिए खाना जुटा सकें।
एक ओर तालिबान सरकार ने 2022 में अफीम पर बैन की घोषणा की थी, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि यह खेती आज भी ज़ोर-शोर से चल रही है। क्योंकि इससे होने वाली कमाई से तालिबान को विदेशी मुद्रा मिलती है, हथियार खरीदे जाते हैं और सत्ता मजबूत होती है।
इस तरह, अफीम अफग़ानिस्तान (Afghanistan) के लिए केवल एक "नशा" नहीं, बल्कि भूख से बचने का विकल्प बन गया है। यह खेती लाचारी की उपज है, जिसमें किसान भी अपराधी नहीं, बल्कि सिस्टम के शिकार हैं।
सरकार क्या कर रही है?
तालिबान सरकार ने अप्रैल 2022 में अफीम की खेती पर "प्रतिबंध" की घोषणा की थी, लेकिन हकीकत इससे बहुत अलग है। ज़मीनी स्तर पर अफीम की खेती और तस्करी पहले से भी ज़्यादा तेज़ी से हो रही है, पर क्यों?
अफगानिस्तान (Afghanistan) को अफीम से करोड़ों डॉलर की कमाई होती है। स्थानीय "टैक्स", अंतरराष्ट्रीय तस्करी और काले धन से वे हथियार और नेटवर्क बनाए रखते हैं।
अफीम का नेटवर्क एक तरह से ग्रामीण क्षेत्रों में तालिबान के प्रभाव को मजबूत करता है। किसान अफीम की खेती करते हैं, और बदले में तालिबान उन्हें सुरक्षा देता है।
सरकार के पास कोई वैकल्पिक कृषि नीति नहीं है। गेहूं, सब्ज़ी या फलों की खेती के लिए न तकनीकी मदद है, न सिंचाई की व्यवस्था, और न बाज़ार।
जब तक वैश्विक संस्थाएं तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देतीं, कोई बड़ी मानवीय मदद या विकास योजना संभव नहीं। ऐसे में अफीम ही उनका "संसाधन" बना हुआ है।
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अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) का अफीम उत्पादन एक भयानक चर्चा का विषय है। भूख से तड़पते लोग, लेकिन नशे की खेती में व्यस्त किसान। यह केवल अपराध या लालच की कहानी नहीं, बल्कि एक भूख से लड़ते देश की मजबूरी है। जब तक वैश्विक समुदाय अफ़ग़ान जनता के लिए मानवीय मदद सुनिश्चित नहीं करता, और अफगान सरकार किसानो को वैकल्पिक खेती के अवसर नहीं देती, तब तक अफीम की खेती बंद होना मुश्किल है। यह एक मानवीय संकट है, जिसे केवल नीतियों से नहीं, बल्कि संवेदना और सहयोग से सुलझाया जा सकता है। [Rh/SP]