India's First Icehouse : गर्मियों के मौसम में बिना ठंडे पानी एवं शरबत के गुज़ारा करना न मुमकिन सा है, ऐसे में लोग अपने घरों में बर्फ का इस्तेमाल पानी, शर्बत, लस्सी, ठंडाई और कोल्डड्रिंक में करते हैं, आज के समय में तो घर-घर में फ्रिज के माध्यम से बर्फ उपलब्ध है। इसके अलावा गली-गली में आपको बर्फ बिकती हुई मिल जाती है। लेकिन एक ऐसा समय भी था, जब बर्फ अमीरों तक ही सीमित थी। अमीरों के घर की शान माने जाने वाले बर्फ पहले के जमाने में विदेशों से मंगवाया जाता था।
ईस्ट इंडिया कंपनी भी मुगलों की तरह ही कुछ दिन कश्मीर से बर्फ मंगाया। लेकिन उसके परिवहन में आने वाले खर्च से कारण सभी ने जल्द ही हाथ खड़े कर दिए। इसके बाद उन्होंने साल 1833 में अमेरिका के बोस्टन शहर से जहाज 'द क्लिपर टस्कनी' द्वारा बड़ी मात्रा में बर्फ कोलकाता मंगवाया। इस जहाज में 180 टन बर्फ लादी गई थी और 4 महीने बाद कोलकाता पहुंचे जहाज से करीब 100 टन बर्फ निकाली गई थी। ये बर्फ जमीं हुई झीलों, नदियों से निकाली जाती थी।
इस बर्फ को अमेरिका से भारत लकड़ी के बुरादे से लपेट कर लाया गया था, ताकि बर्फ पिघल न जाए। बर्फ को सहेजने के लिए कोलकाता में बर्फ जमाने के लिए 'आइस हाउस' बनाए गए थे। हालांकि भारत में मुगल काल में भी बर्फ का इस्तेमाल होता था। तब हिमालय से बर्फ को हाथियों पर लादकर लाया जाता था। जूट के कपड़े और लकड़ी के बुरादे में ढंक कर बर्फ लाई जाती थी। फिर भी हिमालय से आगरा आते-आते बर्फ की सिल्ली काफी छोटी रह जाती थी। इसके बाद बर्फ के डिमांड को देखते हुए देश में बर्फ बनाने की छोटी-छोटी फैक्ट्रियां खुलने लगी थी।
साल 1838 में प्रकाशित एक दस्तावेज से पता चलता है कि बर्फ को स्टोर करने के लिए बंगाल में बनाए गए पहले आइस हाउस पर 10,500 रुपये की लागत आयी थी। उस समय अंग्रेजों की एक बड़ी धनराशि का ‘अमेरिकी बर्फ’ को स्टोर करने पर खर्च हो रही थी।