
हर साल (1 October) को International Day of Older Persons यानी “अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस” मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य समाज में बुज़ुर्गों के महत्व को समझना, उनके अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें सम्मानजनक जीवन दिलाने के लिए जागरूकता फैलाना है। भारत जैसे देश में जहाँ परंपरा में “बड़ों का सम्मान” गहराई से जुड़ा है, वहीं आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी में बुज़ुर्गों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। आर्थिक असुरक्षा, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ, अकेलापन और परिवार से दूरी जैसे मुद्दे बुज़ुर्गों के जीवन को प्रभावित करते हैं।
1 October को मनाया जाने वाला International Day of Older Persons (अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस) संयुक्त राष्ट्र की प्रस्तावना (UN Resolution 45/106) के तहत 14 दिसंबर 1990 को स्थापित किया गया था, और पहली बार यह दिवस 1 October 1991 को मनाया गया। इसका उद्देश्य यह है कि समाज में वृद्धजन (older persons) की स्थिति, उनकी समस्याएँ और उनकी गरिमा (dignity) को उजागर किया जाए। इस दिन को मनाने से यह संदेश मिलता है कि वृद्धावस्था सिर्फ कमजोरी नहीं, बल्कि अनुभव, योगदान और गरिमा का समय है।
इस वर्ष (2025) की थीम है: “Older Persons Driving Local and Global Action: Our Aspirations, Our Well-Being and Our Rights” यह संदेश देता है कि बुज़ुर्ग केवल देखभाल के पात्र ही नहीं, बल्कि समाज और दुनिया को बदलने की ताक़त रखने वाले मार्गदर्शक हैं। स्थानीय स्तर पर वे अपने परिवार, समुदाय और गाँव-शहर में अनुभव व ज्ञान से समाज को दिशा दे सकते हैं, वहीं वैश्विक स्तर पर उनकी समझ और जीवनानुभव नीतियों को बेहतर बना सकते हैं। उनके भी अपने सपने और आकांक्षाएँ होती हैं जिन्हें सम्मान मिलना चाहिए। साथ ही उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएँ, आर्थिक सुरक्षा और सामाजिक सहयोग उपलब्ध होना चाहिए ताकि वे गरिमा के साथ जीवन जी सकें। उनके अधिकारों जैसे सम्मानपूर्वक जीने का, भेदभाव से मुक्त रहने का और समाज में सक्रिय भागीदारी करने का संरक्षण करना ज़रूरी है। यानी बुज़ुर्ग केवल “निर्भर” नहीं बल्कि नेतृत्वकर्ता और समाज के पथप्रदर्शक हैं।
भारत में वृद्धों की वर्तमान स्थिति चुनौतियों और अवसरों से भरी है। भारत की जनगणना (2011 Census) के अनुसार, देश में लगभग 10.4 करोड़ लोग 60 वर्ष या उससे ऊपर के हैं, जो कुल जनसंख्या का 8.6% है। वृद्ध जनसंख्या लगातार बढ़ रही है (2021) में अनुमान है कि यह संख्या 138 मिलियन तक पहुँच सकती है।
स्वास्थ्य सेवाओं की चुनौती: भारत में लगभग 12.2% वृद्धों को पल्लियेटिव (Palliative) देखभाल की आवश्यकता है। यह ज़रूरत खासकर ग्रामीण क्षेत्रों और महिलाओं में अधिक देखी गई है। पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएँ, विशेषकर बुज़ुर्ग-हितैषी अस्पताल और जेरियाट्रिक सेवाएँ अभी भी सीमित हैं।
आर्थिक असुरक्षा: बहुत से वृद्ध लोग पेंशन या सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से वंचित हैं। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले बुज़ुर्गों के पास नियमित आय का साधन नहीं होता, जिससे वे परिवार पर आश्रित रहते हैं।
सामाजिक अलगाव और अकेलापन: परिवार संरचनाओं के टूटने, शहरीकरण और युवा पीढ़ी के प्रवास (migration) की वजह से वृद्धों में अकेलापन और मानसिक तनाव बढ़ रहा है। कई बुज़ुर्ग मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते हैं।
बीमा और सरकारी योजनाओं की कमी: स्वास्थ्य बीमा और सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ सभी तक नहीं पहुँच पातीं। सरकारी योजनाएँ जैसे राष्ट्रीय वृद्धजन स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम (National Programme for Health Care of the Elderly – NPHCE) मौजूद हैं, लेकिन इनका क्रियान्वयन सभी स्तरों तक प्रभावी नहीं है। [Rh/Eth/SP]