Kalaripayattu : कलरीपायट्टू विश्व के सबसे पुराने मार्शल आर्ट फॉर्म्स में से एक है। इसकी शुरूआत केरल में करीब 5 हजार साल पहले हुआ था। प्राचीन लोक कथाओं के अनुसार जब भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम ने अपनी कुल्हाड़ी को अरब सागर में फेंका, तो उसमें से धरती का एक टुकड़ा उभर कर निकला, जो आगे चलकर केरल राज्य बना। इसके बाद इस धरती की रक्षा के लिए उन्होंने 21 शिष्यों को कलरीपायट्टू की शिक्षा दी। आइए आज हम आपको कलरीपायट्टू से जुड़ी बेहद दिलचस्प बातें बताएंगे।
इस आर्ट फॉर्म के बारे में कहा जाता है कि परशुराम ने कलरीपायटु की ट्रेनिंग देने के लिए 64 गुरुकुल स्थापित किए थे। कलरी का अर्थ होता है रणभूमि और कलरीपायट्टू असल में एक प्राचीन युद्ध कला है। इसमें कॉम्बैट एंड डिफेंस टेक्निक्स तो हैं ही इसके साथ ही हैं हथियारों की ट्रेनिंग। इसके अलावा इसमें योग और हीलिंग टेक्निक का बेमिसाल मेल भी है। यही कारण है कि इसे मदर ऑफ ऑल मार्शल आर्ट्स भी कहा जाता है।
हमारे शरीर में 64 मर्म बिंदु हैं, जिन्हें वाइटल प्वाइंट्स भी कहते हैं। इन वाइटल प्वाइंट्स में जीवन शक्ति की ऊर्जा बसती है। कलरी में इन्हीं प्वाइंट्स को ध्यान में रखकर अटैक और डिफेंड करना सिखाया जाता है। इस कला में महारथ हासिल करने के लिए आपको चार पड़ाव पूरे करने होते हैं और हर पड़ाव को पार करने से स्टूडेंट्स को एक साल से ज्यादा का वक्त लगता है।
१) मेयपयटु : इसमें शरीर और दिमाग को शक्ति प्रदान करने की ट्रेनिंग होती है।
२) कोलथारिपयटु : दूसरे पड़ाव में लकड़ी के हथियारों से ट्रेनिंग होती है।
३) अंकथारिपयटु : तीसरे पड़ाव में धारदार हथियारों से ट्रेनिंग होती है।
४) वेरुमकाई : चौथे तथा आखिरी पड़ाव में हाथों से लड़ने की कला सिखाई जाती है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनियाभर में जिस कुंग फू के ढेरों दीवाने हैं, उसका जन्म भी कलरीपायट्टू से ही हुआ है। बताया जाता है कि करीब 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में दक्षिण भारत के कलरी योद्धा बोधि धर्म चीन गए थे और वहां इन्हीं की सिखाई एक्सरसाइज ने आगे चलकर कुंग फू की नींव रखी।