बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न द्वारा किया जाएगा सम्मानित

कर्पूरी ठाकुर की पहचान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और राजनीतिज्ञ के रूप में रही है। वह बिहार के दूसरे उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रह चुके है।
Karpoori Thakur : ढाई साल के कार्यकाल में गरीबों, पिछड़ों और अति पिछड़ों को हक दिलाने के लिए तमाम काम किए।  (Wikimedia Commons)
Karpoori Thakur : ढाई साल के कार्यकाल में गरीबों, पिछड़ों और अति पिछड़ों को हक दिलाने के लिए तमाम काम किए। (Wikimedia Commons)
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Karpoori Thakur : भारत रत्न देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है। यह उन्हें दिया जाता है, जिन्होंने कला, साहित्य, विज्ञान, समाज सेवा और खेल के क्षेत्र में देश के लिए उल्लेखनीय और असाधारण योगदान दिया हो। इस बार बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न 26 जनवरी को दिया जाएगा। उन्हें जन-नायक भी कहा जाता था। कर्पूरी ठाकुर की पहचान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और राजनीतिज्ञ के रूप में रही है। वह बिहार के दूसरे उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रह चुके है।

कर्पूरी ठाकुर को बिहार की सियासत में सामाजिक न्याय के लिए आवाज उठाने वाला नेता माना जाता है। कर्पूरी ठाकुर एक साधारण नाई परिवार में जन्मे थे।पूरी जिंदगी उन्होंने कांग्रेस विरोधी राजनीति की और अपना सियासी मुकाम हासिल किया। यहां तक कि आपातकाल के समय भी बहुत कोशिशों के बावजूद भी इंदिरा गांधी उन्हें गिरफ्तार नहीं करवा पाई।

पढ़ाई मुफ्त करवाई

कर्पूरी ठाकुर जब 1977 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे तब केवल ढाई साल के कार्यकाल में गरीबों, पिछड़ों और अति पिछड़ों को हक दिलाने के लिए तमाम काम किए। वह बिहार में मैट्रिक तक पढ़ाई मुफ्त की दी। राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया। इसके उपरांत कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक ताकत में बहुत बढ़ोतरी हुई और वो बिहार की सियासत में समाजवाद के प्रतीत बन गए।

बिहार के जनता पार्टी के समय में लालू और नीतीश ने कर्पूरी ठाकुर की उंगली पकड़कर सियासत के बारे में सीखा। (Wikimedia Commons)
बिहार के जनता पार्टी के समय में लालू और नीतीश ने कर्पूरी ठाकुर की उंगली पकड़कर सियासत के बारे में सीखा। (Wikimedia Commons)

कर्पूरी ठाकुर के शिष्य हैं लालू और नीतीश जी

बिहार के जनता पार्टी के समय में लालू और नीतीश ने कर्पूरी ठाकुर की उंगली पकड़कर सियासत के बारे में सीखा । ऐसे में जब लालू यादव बिहार की सत्ता में आए तो उन्होंने कर्पूरी ठाकुर के कामों को आगे बढ़ाया और नीतीश कुमार ने भी अति पिछड़े समुदाय के हित में कई काम किए।

उनके नाम पर अब होती है राजनीति

बिहार के चुनाव में जितना है तो कर्पूरी ठाकुर को बिहार की राजनीति में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 1988 में कर्पूरी ठाकुर का निधन के बाद भी वो बिहार के पिछड़े और अति पिछड़े मतदाताओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं।बिहार में पिछड़ों और अतिपिछड़ों की आबादी करीब 52 प्रतिशत है। ऐसे में सभी राजनीतिक दल जीतने के लिए कर्पूरी ठाकुर का नाम लेते रहते हैं। यही कारण है कि 2020 में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में ‘कर्पूरी ठाकुर सुविधा केंद्र’ खोलने का ऐलान किया था।

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