Katchatheevu Island : भारत और श्रीलंका के बीच पड़ने वाले कच्चातिवु द्वीप को लेकर राजनीति पूरी तरह से गरमा गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कच्चातिवु द्वीप को लेकर लिखा,' कांग्रेस ने जानबूझकर कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया था।' दरअसल, 1974 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार और श्रीलंका की राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के बीच एक समझौता हुआ था और इस समझौते के तहत, भारत ने कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया था, तो आइए जानते हैं कि भारत के लिए क्यों खास है कच्चातिवु द्वीप।
यह द्वीप भारत के रामेश्वरम और श्रीलंका की मुख्य भूमि के बीच पाक जलडमरूमध्य में स्थित है। इस स्टेट का नाम मद्रास प्रांत के गवर्नर रहे रॉबर्ट पाक के नाम पर रखा गया है। यह द्वीप 285 एकड़ में फैला हुआ है। ये द्वीप उत्तरी श्रीलंका और भारत के तमिलनाडु राज्य के आसपास जिलों में रहने वाले लोगों के जीवन यापन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। द्वीप के आसपास का इलाका मछली पकड़ने के लिए उत्तम है। इस टापू के कई इलाकों में रहने वाले लोग पारंपरिक रूप से केवल इन समुद्री संसाधनों पर निर्भर रहे हैं। परंतु अक्सर कई बार देखा गया है कि भारतीय मछुआरों को मछली पकड़ने के कारण श्रीलंका हिरासत में लेता है और उन्हें लंबा समय वहां की जेलों में बिताना पड़ता है।
यह विवाद भारत और श्रीलंका के बीच मछली पकड़ने को लेकर बना रहता है। दरहसल, 1976 में भारत और श्रीलंका के बीच एक समझौता हुआ, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा को मन्नार की खाड़ी और बंगाल की खाड़ी तक बढ़ा दिया गया था। इससे भारत और श्रीलंका को समुद्री हिस्सों में आने वाली अपनी संपत्तियों पर और अधिकार मिल गए। लेकिन इसके बावजूद भी जब द्वीप तक पहुंचने के लिए भारतीय मछुआरों को अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा पार करनी पड़ती है, तब श्रीलंका की नौसेना उन्हें पकड़ लेती है।
इसके साथ ही चीन ने श्रीलंका को अपने कर्ज के जाल में फंसाकर उसके हंबनटोटा बंदरगाह पर कब्जा कर लिया है और चीन हंबनटोटा को अपने सैन्य अड्डे के रूप में विकसित कर रहा है। भारत इस मामले में कई बार श्रीलंका के सामने आपत्ति जताई है, लेकिन इसके बावजूद चीन के जासूसी जहाज को हंबनटोटा पर रुकने की अनुमति दी गई थी। ऐसे में भारत का कच्चाथीवु पर नियंत्रण महत्वपूर्ण सामरिक कदम हो सकता था।