Lakshagriha : महाभारत हो या रामायण इन दोनों से जुड़ी जगहें आज भी हमें समय समय पर देखने को मिलती है इन्हीं जगहों को देख कर पुष्टि होती है की महाभारत और रामायण कोई मिथ्य नहीं बल्कि सच है। मेरठ से करीब 35 किलोमीटर आगे बड़ौत के पास एक कुछ ऊंचे टीले पर एक शीर्ष शीर्ण सी संरचना नजर आती है, इसके ऊपर जाने पर टूटी हुई दीवारों जैसी संरचना और एक कमरे में टूटी दीवारों पर जले हुए निशान और नीचे धूल मिट्टी का ढेर मिलते है। लोगों का कहना है की यह वहीं जगह है, जिसे लाक्षागृह कहा जाता है। चूंकि इस जगह के आसपास जगह का नाम बरनावा है, इसे बरनावा लाक्षागृह भी कहा जाता है।
यह जगह बहुत उपेक्षित है, यहां आसपास दो तीन छोटी दुकानें हैं और एक बोर्ड है जिसपर इसके लाक्षागृह होने का नाम अंकित किया गया है। टीले पर जब ऊपर सीढ़ियों के जरिए पहुंचते हैं तो एक ओर नीले रंग का भारतीय पुरातत्व और सर्वेक्षण विभाग की छोटा सा बोर्ड लगाया गया है, जिसमें इसके पांडवकालीन लाक्षागृह होने की बात कही गई है। केवल लाक्षागृह देखने के लिए यहां आने वालों की संख्या नहीं के बराबर है।
60-70 साल या कहीं अधिक के हो चुके बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि उनकी पुरानी पीढ़ियों ने भी इसे लाक्षागृह ही माना था, कभी यहां ये माना ही नहीं गया कि महाभारत कालीन ये जगह कब्रिस्तान की है। वैसे एएसआई यहां खुदाई करके प्राचीन सभ्यता के अवशेष बरामद कर चुका है। वर्ष 1952 में ASI की खुदाई में मिले अवशेष दुर्लभ श्रेणी के थे। खुदाई में 4500 वर्ष पुराने मिट्टी के बर्तन मिले। महाभारतकाल भी इतना ही साल पुराना है।
ऐसे तो जिन्होंने भी महाभारत टीवी पर देखा होगा उन्हें भली भाती लाक्षागृह के बारे में मालूम होगा। महाभारत काल में दुर्योधन ने पांडवों का जलाने के लिए लाक्षागृह बनाया था। लाक्षागृह को लाख से बनाया गया था। पांडवों को इस साजिश के बारे में जानकारी होते ही वो सुरंग के ज़रिए बचकर निकल गए थे। जिस सुरंग से पांडव भागे वो आज भी हिंडन नदी के किनारे मौजूद है। दरहसल, बरनावा को ही महाभारत में वर्णित वारणावत माना जाता है।