Patna High Court: पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अगर यौन उत्पीड़न के दौरान कोई आंतरिक या बाहरी चोट नहीं लगती है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि पीड़िता ने सहमति से सेक्स किया था।
न्यायमूर्ति अनंत मनोहर बदर की पीठ ने 2015 के जमुई बलात्कार मामले में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए फैसले को पलटते हुए कहा कि बलात्कार के सबूत के तौर पर यह जरूरी नहीं है कि पीड़िता के शरीर पर आंतरिक या बाहरी घाव हो।
उन्होंने आईपीसी की धारा 375 के एक खंड का हवाला दिया जो यह स्पष्ट करता है कि केवल इसलिए कि एक महिला शारीरिक रूप से संबंध बनाने के कार्य का विरोध नहीं करती है, इसे यौन गतिविधि के लिए सहमति नहीं माना जा सकता है।
पीड़िता जमुई में एक ईंट भट्ठे का दिहाड़ी मजदूर थी। उसने मालिक से अपनी मजदूरी की मांग की थी जिसने उसे दिन के अंत में पैसे देने का वादा किया था। फिर वह उसके घर गया, कमरे के अंदर घसीटा, उसे फर्श पर पटक दिया और उसके साथ बलात्कार किया।
अदालत ने कहा कि यदि पीड़िता का बयान विश्वसनीय और भरोसेमंद है और यह परिस्थितिजन्य साक्ष्य द्वारा समर्थित है, तो घटना को बलात्कार के रूप में माना जा सकता है, न कि सहमति से यौन संबंध के रूप में माना जाएगा।
(आईएएनएस/PS)