
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का विश्लेषण: स्ट्रीट डॉग्स का टीकाकरण और नसबंदी
बता दे की सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त को आवारा कुत्तों के काटने की समस्या को देखते हुए बहुत सारे निर्देश दिये थे। उस में उन्होंने कहा था की सभी आवारा कुत्तों को पकड़ कर डॉग शेल्टर में रखा जाएगा|कोर्ट के इस आदेश पर पशु प्रेमियों ने बड़ी प्रतिक्रिया देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जियां दाखिल कर आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी। लेकिन शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने इसे संशोधित करते हुए कहा की आवारा कुत्तों को पकड़ कर उनका बंध्याकरण व टीकाकरण करने के बाद उन्हें छोड़ दिया जाएगा ।यह एक अहम और सराहनीय कदम है। इसका लक्ष्य दो गंभीर समस्याओं – रेबीज के खतरे और स्ट्रीट डॉग्स की बढ़ती आबादी को नियंत्रित करना है और अब इस निर्देश से पशु प्रेमियों के लिए थोड़ी राहत देते हुए, सुप्रीम कोर्ट का यह संशोधन बहुत सरे लोगो को प्रसन्न कर सकता है| हालाँकि, इस आदेश को जमीन पर उतारना एक बहुत बड़ी चुनौती है|
क्या होता है रेबीज वैक्सीन ?
कुत्तो के लिए एंटी रेबीज टीका, रेबीज वायरस से निष्क्रिय रूप से बना होता है, जो डॉग्स के शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली को रेबीज के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने में उत्तेजित करता है|डॉग्स के लिए रैबीज का टीका करवाना कुत्ते और मनुष्य की सुरक्षा के लिए सबसे प्रभावी उपाए है |
कार्यान्वयन में आने वाली कठिनाइयाँ (Implementation Difficulties)
इतनी बड़ी संख्या में, फैले हुए कुत्तों को इंसानियत से पकड़ना खुद में ही एक बहुत बड़ा काम है। इसके लिए प्रशिक्षित कर्मचारी और विशेष उपकरण चाहिए ताकि कुत्तों को किसी भी तरह का चोट न पहुँचे और यह कार्य बेहद महंगा साबित हो सकता है। इसमें गाड़ियाँ, उपकरण, कर्मचारियों का वेतन, वैक्सीन, और ऑपरेशन के सामान का खर्च शामिल होगा। हमारे भारत के कई इलाकों में लोग कुत्तों से डरते हैं और उनके प्रति गुस्सा रखते हैं। उन्हें अपने इलाके में कुत्तों को पकड़ने और छोड़ने के लिए राजी करना थोड़ा मुश्किल साबित हो सकता है | इतना ही नहीं वक्सीनशन के बाद कुत्तों को उन्हीं की कॉलोनी में छोड़ा जायेगा इस में उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना और यह सुनिश्चित करना कि उनके आराम करने के दौरान भोजन-पानी मिलता रहे , यह भी एक बड़ा चुनौती है।
रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम के फायदे और नुकसान
फायदे (Advantages)
नियंत्रण कार्यक्रम से कुत्तो में रेबीज के मामलों में भारी कमी आएगी| रेबीज जो 100 % घातक है लेकिन इसे रोका जा सकता है| जिसके कारन हजारों लोगों की जिंदगी बचेगी, खासकर के बच्चों की। इस कार्यक्रम से सबसे ज्यादा फायदा कुत्तों की दयनीय हालत सुधर में होगी । उन्हें मारने की बजाय उनकी आबादी को नियंत्रित की जाएगी| माना जाता है की नसबंदी के बाद कुत्ते ज्यादा शांत हो जाते हैं, कम आक्रामकता दिखाते हैं और कम काटते हैं, जिसके कारन परेशानी कम होगी।
नुकसान (Disadvantages)
हालांकि, रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम के कुछ नुकसान भी हैं जो वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं। इस कार्यक्रम में शुरुआती खर्च बहुत ज्यादा होगा और इससे नगर निगमों के बजट पर दबाव पड़ेगा। और अगर काम ठीक से नहीं हुआ, तोआर्थिक नुकसान भी हो सकता है। गंदे ऑपरेशन, खराब देखभाल से कुत्तों की मौत भी हो सकती है और लोगों का भरोसा टूट सकता है। इतना ही नहीं कुत्तों को पकड़ने की प्रक्रिया से लोगों में थोड़ी बेचैनी हो सकती है और कुत्तों के बीच के रुतबे में बदलाव से उनका व्यवहार थोड़ा अप्रत्याशित हो सकता है।इन फायदों और नुकसानों को ध्यान में रखते हुए ही, रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम को सफलतापूर्वक लागू करना चाहिए| इतना ही नहीं इस में सरकार और नगर निगमों को मिलकर काम करना होगा।
निष्कर्ष
भारत में आवारा स्ट्रीट डॉग्स की संख्या और उनसे फैलने वाले रोग, खासकर रेबीज , एक बड़ी समस्या है। अगर 70% कुत्तों का रेबीज का टीकाकरण और नसबंदी कर दी जाती है तो इससे इंसानों और जानवरों दोनों की सुरक्षा बढ़ेगी। टीकाकरण से रेबीज जैसी घातक बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकेगा और नसबंदी से कुत्तों की अनियंत्रित जनसंख्या धीरे-धीरे कम होगी। हालाँकि, इसके लिए पर्याप्त संसाधन, पशु-चिकित्सक, धन और जनता की जागरूकता की बहुत आवश्यकता होगी। कुल मिलाकर यह एक मानवीय और सुरक्षित समाधान है जो समाज और पशुओं दोनों के लिए लाभकारी साबित हो सकता है अगर इसे अच्छे तरीके से किया जाये। [Rh/SS]