जब-जब सत्ता हुई ताकतवर, तब-तब न्याय हुआ कमज़ोर: दुष्यंत दवे का बड़ा दावा!

इंदिरा गांधी और तत्काल की सरकार यानी मोदी सरकार के कार्यकाल का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि ये प्रधानमंत्री अपनी जरूरतों के अनुसार न्याय व्यवस्था में हस्तक्षेप करते हैं और न्याय प्रणाली की स्वतंत्रता को खत्म कर देतें हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व वकील दुष्यंत दवे (Dushyant Dave) लंबे समय से भारतीय न्यायपालिका के प्रखर आलोचकों में से एक रहे हैं [Canva AI]
वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व वकील दुष्यंत दवे (Dushyant Dave) लंबे समय से भारतीय न्यायपालिका के प्रखर आलोचकों में से एक रहे हैं [Canva AI]
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दुष्यंत दवे, वकालत के छेत्र में एक बड़ा नाम है। एक साक्षात्कार (Interview) में उन्होंने अपनी वकालत छोड़ने के पीछे एक कारण बताया कि वो अब भारत के judiciary system से खिन्न हो चुके हैं और अंत में परेशन हो कर अपनी प्रैक्टिस छोड़ रहें हैं। दुष्यंत दवे जी का यह वाकया भारत की न्याय व्यवस्था के खिलाफ कई सवाल खड़े करता हैं। इतना ही नहीं उन्होंने अपनी पूरी वकालत की जर्नी का हवाला देते हुए कहा कि जब जब कोई ताकतवर प्रधान मंत्री आता है, तब तब भारत की न्याय व्यवस्था कमजोर हो जाती है और अपनी स्वतंत्रता खो देती है। इंदिरा गांधी और तत्काल की सरकार यानी मोदी सरकार के कार्यकाल का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि ये प्रधानमंत्री अपनी जरूरतों के अनुसार न्याय व्यवस्था में हस्तक्षेप करते हैं और न्याय प्रणाली की स्वतंत्रता को खत्म कर देतें हैं। तो आइए आज हम दुष्यंत दवे के द्वारा उठाए सवाल और उनके द्वारा भारत के न्याय व्यवस्था की कमियों को समझेंगे।

 "Everyone is Equal in the eyes of law" यानी कानून की नज़र में सभी एक समान है पर क्या संविधान की ये बातें असल जिंदगी में लागू होती हैं? [Pixabay]
"Everyone is Equal in the eyes of law" यानी कानून की नज़र में सभी एक समान है पर क्या संविधान की ये बातें असल जिंदगी में लागू होती हैं? [Pixabay]

कौन है दुष्यंत दवे?

वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व वकील दुष्यंत दवे (Dushyant Dave) लंबे समय से भारतीय न्यायपालिका के प्रखर आलोचकों में से एक रहे हैं, उन्होंने हाल ही में बीबीसी हिंदी को दिए एक साक्षात्कार (Interview) में न्यायपालिका (Indian Judiciary System) की वर्तमान स्थिति पर गंभीर सवाल उठाए हैं। दवे ने कहा कि पिछले 20-25 वर्षों में भारतीय न्यायपालिका (Indian Judiciary System) धीरे-धीरे अपना दर्जा खोती जा रही है, और भ्रष्टाचार के विभिन्न रूप उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में देखे जा सकते हैं। दुष्यंत दवे (Dushyant Dave) एक ऐसे वकील रहें हैं जिन्होंने बड़े बड़े मामलों में वकालत की है कैसे 2G घोटाला, व्यापम घोटाला, अनुच्छेद 370 हटाने के ख़िलाफ़ याचिकाएं शामिल हैं।

दुष्यंत दवे एक साहसी और निडर अधिवक्ता बन चुके हैं [X]
दुष्यंत दवे एक साहसी और निडर अधिवक्ता बन चुके हैं [X]

दुष्यंत दवे (Dushyant Dave) एक साहसी और निडर अधिवक्ता बन चुके हैं जिन्होंने भारत के चीफ जस्टिस (Chief Justice of India) तक के गलत कामों पर सवाल उठाए। एक वकील का काम केवल केस लड़ना नहीं होता है देश में होने वाले सही गलत चीजों पर अपनी बात रखने और उसके लिए खड़े होना भी एक वकील और न्यायपालिका का काम होता है जिसे दुष्यंत दवे जी ने बखूबी निभाया।

न्यायपालिका खो चुकी है अपनी स्वतंत्रता

दवे ने साक्षात्कार में कहा, "पिछले 20-30 वर्षों में भारतीय न्यायपालिका की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। जब मैं 1978 में न्यायपालिका से जुड़ा था, तब न्यायपालिका बेहद स्वतंत्र थी और न्यायाधीशों की गुणवत्ता (Transparency) बहुत उच्च थी। लेकिन आज, बहुत कम ऐसे न्यायाधीश बचे हैं जो राजनीतिक, वित्तीय या किसी भी तरह के विचारधारा के दबाव में नहीं आते।" अपने इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि इंदिरा गांधी के समय में भी न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं थी। न्यायपालिका पर कई तरह के दबाव थे और उसे दबाव में उन्हें कई तरह के फैसले लेने पड़े थे और आज भी न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं है।

कहा जाता है कि न्यायपालिका में किसी का हस्तक्षेप नहीं होता [SORA AI]
कहा जाता है कि न्यायपालिका में किसी का हस्तक्षेप नहीं होता [SORA AI]

कहा जाता है कि न्यायपालिका में किसी का हस्तक्षेप नहीं होता यानी ना गवर्नमेंट ना कोई पॉलिटिकल पार्टी और ना ही कोई बड़ा व्यक्तित्व वाला इंसान न्याय को खरीद सकता है लेकिन फिर भी आज न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि न्यायपालिका में काम करने में अब उन्हें कोई आनंद नहीं मिलता, जिसके कारण उन्होंने वकालत छोड़ने का फैसला किया।

भ्रष्टाचार के विभिन्न रूप

दवे ने भ्रष्टाचार के विभिन्न रूपों का जिक्र करते हुए कहा, "भ्रष्टाचार सिर्फ वित्तीय नहीं है, बल्कि यह बौद्धिक और पारिवारिक लाभों के लिए भी हो सकता है। उच्च न्यायपालिका में इन सभी रूपों को मैंने देखा है।" उन्होंने यह भी बताया कि कई बार उन्हें ऐसे मामलों में हार का सामना करना पड़ा, जहां उन्हें जीतना चाहिए था, और कई बार वे ऐसे मामलों में जीत गए, जहां उन्हें हारना चाहिए था।

दवे ने भ्रष्टाचार के विभिन्न रूपों का जिक्र करते हुए कहा, "भ्रष्टाचार सिर्फ वित्तीय नहीं है, बल्कि यह बौद्धिक और पारिवारिक लाभों के लिए भी हो सकता है। [Pixabay]
दवे ने भ्रष्टाचार के विभिन्न रूपों का जिक्र करते हुए कहा, "भ्रष्टाचार सिर्फ वित्तीय नहीं है, बल्कि यह बौद्धिक और पारिवारिक लाभों के लिए भी हो सकता है। [Pixabay]

इस प्रकार की स्थिति भ्रष्टाचार बढ़ने का इशारा देती है। दबे जी ने यह भी बताया की कोई जज यदि भ्रष्ट है तो उसका कारण वकील होते हैं क्योंकि जज खुद कभी भी किसी से मुलाकात नहीं करता बल्कि वकीलों के द्वारा ही उनकी बातचीत होती है। भ्रष्ट होने की दिशा में वकील जज यहां तक की एक प्यून तक भी शामिल होते हैं।

विशेष उदाहरण

दवे ने न्यायाधीश भीम कोरेगांव और दिल्ली दंगों के मामलों का जिक्र करते हुए कहा कि इन मामलों में न्यायपालिका की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। उन्होंने न्यायाधीश लोया की मौत के मामले का भी उल्लेख किया, जहां उन्होंने स्वतंत्र जांच की मांग की थी, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। उन्होंने कई मामलों का हवाला देते हुए बताया की कई केस ऐसे हैं जिन पर अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई। लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया और वह 5 साल 10 साल सजा काट चुके हैं लेकिन उनकी गुना या उनके मामलों में एक भी बार सुनवाई नहीं हुई है।

दवे ने न्यायाधीश भीम कोरेगांव और दिल्ली दंगों के मामलों का जिक्र करते हुए कहा कि इन मामलों में न्यायपालिका की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। [Pixabay]
दवे ने न्यायाधीश भीम कोरेगांव और दिल्ली दंगों के मामलों का जिक्र करते हुए कहा कि इन मामलों में न्यायपालिका की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। [Pixabay]

राजनीतिक दबाव और न्यायपालिका

दवे ने यह भी कहा कि जब भी देश में एक मजबूत प्रधानमंत्री आता है, तो न्यायपालिका पर दबाव बढ़ जाता है। उन्होंने इंदिरा गांधी के समय का उदाहरण दिया, जहां न्यायपालिका को कमजोर किया गया था। उन्होंने वर्तमान सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी न्यायपालिका की स्वतंत्रता की बात करते हैं, लेकिन देश को यह नहीं दिखाते कि ये संस्थान स्वतंत्र हैं। हालांकि इतिहास उठाकर देखें तो कई ऐसे मामले हैं जिस पर तत्कालीन पॉलीटिकल पार्टी के दबाव के कारण न्यायपालिका निष्पक्ष न्याय नहीं दे पाई।

वकालत छोड़ने का निर्णय


दवे ने वकालत छोड़ने के अपने निर्णय के पीछे दो कारण बताए। पहला, व्यक्तिगत कारण, जैसे संगीत सुनना, पढ़ना और परिवार के साथ समय बिताना। दूसरा, न्यायपालिका की बिगड़ती स्थिति, जिसने उन्हें पेशे में कोई आनंद नहीं छोड़ा।

उन्होंने कहा, "जब तक पेशे में खुशी न हो, उस काम को जारी रखने का कोई मतलब नहीं।" [Pixabay]
उन्होंने कहा, "जब तक पेशे में खुशी न हो, उस काम को जारी रखने का कोई मतलब नहीं।" [Pixabay]

उन्होंने कहा, "जब तक पेशे में खुशी न हो, उस काम को जारी रखने का कोई मतलब नहीं।" वहीं दवे ने युवा वकीलों को सलाह दी कि वे न्यायपालिका की अखंडता को बनाए रखने के लिए प्रयास करें और भ्रष्टाचार का हिस्सा न बनें। उन्होंने कहा, "न्यायाधीश भ्रष्ट हैं, तो वकील भी भ्रष्ट हैं। वकीलों के माध्यम से ही न्यायाधीश भ्रष्टाचार में लिप्त होते हैं।"

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दुष्यंत दवे का यह बयान भारतीय न्यायपालिका के भीतर चल रही चुनौतियों को उजागर करता है। उनका कहना है कि “Unless concrete steps are taken to address corruption and restore the judiciary's independence, the rule of law in India will remain compromised”. उनकी चिंताएं न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अखंडता पर गंभीर प्रश्न खड़े करती हैं, और यह बहस का विषय बन गया है कि क्या भारतीय न्यायपालिका वास्तव में अपने कर्तव्यों को निभा रही है। [Rh/SP]

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