सुप्रीम कोर्ट ने 'ग्राम न्यायालय' स्थापित करने की याचिका पर सभी उच्च न्यायालयों से मांगा जवाब

2008 में, संसद ने नागरिकों को घर-घर न्याय दिलाने के लिए जमीनी स्तर पर 'ग्राम न्यायालय' स्थापित करने के लिए एक अधिनियम पारित किया।
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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को केंद्र और सभी राज्यों को शीर्ष अदालत की निगरानी में 'ग्राम न्यायालय' स्थापित करने को लेकर दायर याचिका पर सभी उच्च न्यायालयों से जवाब मांगा। याचिकाकर्ता, एनजीओ नेशनल फेडरेशन ऑफ सोसाइटीज फॉर फास्ट जस्टिस और अन्य का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता प्रशांत भूषण (Prashant Bhusan) ने न्यायमूर्ति एसए नजीर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि 2020 में शीर्ष अदालत के एक निर्देश के बावजूद, कई राज्यों ने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है।

उन्होंने कहा कि 'ग्राम न्यायालय' ऐसे होने चाहिए कि लोग बिना किसी वकील की आवश्यकता के अपनी शिकायतों को व्यक्त करने में सक्षम हो सकें। 2008 में, संसद (Parliament) ने नागरिकों को घर-घर न्याय दिलाने के लिए जमीनी स्तर पर 'ग्राम न्यायालय' स्थापित करने के लिए एक अधिनियम पारित किया।

न्यायमूर्ति एसए नजीर और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालयों (High Courts) को इस मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए क्योंकि वह पर्यवेक्षी प्राधिकरण हैं। दलीलें सुनने के बाद, पीठ ने सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी किया और उन्हें मामले में पक्षकार बनाया, और मामले की अगली सुनवाई 5 दिसंबर को निर्धारित की।

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शीर्ष अदालत ने 2020 में राज्यों को निर्देश दिया था कि वह ग्राम न्यायालयों की स्थापना के लिए अधिसूचना जारी करें और उच्च न्यायालयों को इस मुद्दे पर राज्य सरकारों के साथ परामर्श की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए कहा था। अभी तक 'ग्राम न्यायालय' स्थापित करने के लिए अधिसूचना जारी नहीं हो पाई हैं। याचिका में कहा गया है कि अधिनियम की धाराएं बताती हैं कि राज्य सरकार उच्च न्यायालय के परामर्श से प्रत्येक 'ग्राम न्यायालय' के लिए एक 'न्यायाधिकारी' नियुक्त करेगी।

आईएएनएस/RS

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