दिल्ली में स्थित इस इलाके का नाम कैसे पड़ा 'मजनू का टीला’? तिब्बती शर्णार्थियों का बन गया घर

ये तिब्बती शर्णार्थियों की बहुत बड़ी बस्ती है। इस वजह से उन लोगों ने यहां अपने पूजा स्थल बनाए, रेस्टोरेंट बनाए, कपड़ों और अन्य तिब्बती मान्यताओं से जुड़ी चीजों को बेचने के लिए दुकानें खोलीं। लेकिन इसका नाम लोगों के लिए एक बड़ा राज बना रहता है।
Majnu ka tila history : यह जगह तिब्बती रेस्टोरेंट्स के लिए फेमस है, यहां आपको ऑथेंटिक तिब्बती भोजन मिलेगा। (Wikimedia Commons)
Majnu ka tila history : यह जगह तिब्बती रेस्टोरेंट्स के लिए फेमस है, यहां आपको ऑथेंटिक तिब्बती भोजन मिलेगा। (Wikimedia Commons)

Majnu ka tila history : दिल्ली के विधानसभा मेट्रो स्टेशन के पास ही मजनू का टीला स्थित है। यदि आप दिल्ली में नए आए होंगे, तो आपको ये नाम कुछ अजीब लग सकता है। लेकिन जो लोग मजनू का टीला जा चुका हैं, वे जानते होंगे कि ये जगह कितनी अनोखी है और यहां तिब्बत से आए शर्णार्थियों की कितनी बड़ी आबादी रहती है। इस जगह की सबसे खास बात यह है कि यह जगह तिब्बती रेस्टोरेंट्स के लिए फेमस है, यहां आपको ऑथेंटिक तिब्बती भोजन मिलेगा। लेकिन आज हम आपको यहां के खाने के बारे में नहीं, बल्कि इसके अजीबोगरीब नाम के बारे में बताएंगे और साथ ही साथ इससे जुड़ा इतिहास भी जानेंगे।

तिब्बती शर्णार्थियों की है बस्ती

नॉर्थ दिल्ली जिले में स्थित इस इलाका का आधिकारिक नाम न्यू अरुणा नगर कॉलोनी है, पर लोग इस जगह को 'मजनू का टीला' के नाम से जानते हैं। बेहद पतली और अंधेरी गलियों में बसे इस इलाके में इतनी रौनक होती है कि अगर आप अंधेरा होने के बाद भी जाएंगे, तो लाइटों की रोशनी के कारण रास्ता भूल सकते हैं। ये तिब्बती शर्णार्थियों की बहुत बड़ी बस्ती है। इस वजह से उन लोगों ने यहां अपने पूजा स्थल बनाए, रेस्टोरेंट बनाए, कपड़ों और अन्य तिब्बती मान्यताओं से जुड़ी चीजों को बेचने के लिए दुकानें खोलीं। लेकिन इसका नाम लोगों के लिए एक बड़ा राज बना रहता है।

बेहद पतली और अंधेरी गलियों में बसे इस इलाके में इतनी रौनक होती है कि अगर आप अंधेरा होने के बाद भी जाएंगे, तो लाइटों की रोशनी के कारण रास्ता भूल सकते हैं। (Wikimedia Commons)
बेहद पतली और अंधेरी गलियों में बसे इस इलाके में इतनी रौनक होती है कि अगर आप अंधेरा होने के बाद भी जाएंगे, तो लाइटों की रोशनी के कारण रास्ता भूल सकते हैं। (Wikimedia Commons)

क्या है इतिहास

15वीं सदी में सिकंदर लोदी के शासनकाल में एक सूफी संत था, जो ईरान का रहने वाला था। लोग उसे मजनू कहकर पुकारते थे। वो इसी इलाके में एक टीले पर रहा करता था। इसी कारण इस जगह का नाम मजनू का टीला पड़ गया। ये जगह यमुना नदी के पास थी और वो शख्स परमात्मा के नाम पर लोगों को मुफ्त में नदी पार करवाने का काम करता था।

गुरू नानक देव भी आए थे यहां

उसी दौर में यहां गुरू नानक देव जी आए थे और उन्होंने जब मजनू का सेवा भाव देखा, तो बहुत खुश हुए और उसे आशीर्वाद दिया। वो उसकी सेवा भाव देखकर ही यहां रुक गए थे। 1783 में सिख मिलिट्री लीडर बघेल सिंह ने मजनू का टीला गुरुद्वारा बनवा दिया, क्योंकि यहां गुरू नानक देव जी रुके थे।

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