आजाद भारत का पहला अरबपति अपने कंजूस हरकतों के लिए था बदनाम

निजाम के पास 20 लाख पाउंड से ज्यादा तो केवल कैश था। इसके अलावा उनके पास अनगिनत हीरे, मोती, सोना और जवाहरात थे, इसलिए उन्हें आजाद भारत का पहला अरबपति कहा जाता है। लेकिन उनके बारे में कहा जाता है कि इतना सब कुछ होने के बावजूद भी निजाम अपनी कंजूसी के लिए बदनाम थे।
Mir Osman Ali Khan : वे अपने पास सबसे सस्ती सिगरेट रखा करते थे।(Wikimedia Commons)
Mir Osman Ali Khan : वे अपने पास सबसे सस्ती सिगरेट रखा करते थे।(Wikimedia Commons)
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Mir Osman Ali Khan : 1947 में जब भारत आजाद हुआ, तब भारत के सबसे अमीर शख़्स हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली थे। उस वक्त उनकी कुल संपत्ति 17.5 लाख करोड़ रुपए बताई गई थी। कहा जाता है कि निजाम के पास 20 लाख पाउंड से ज्यादा तो केवल कैश था। इसके अलावा उनके पास अनगिनत हीरे, मोती, सोना और जवाहरात थे, इसलिए उन्हें आजाद भारत का पहला अरबपति कहा जाता है। लेकिन उनके बारे में कहा जाता है कि इतना सब कुछ होने के बावजूद भी निजाम अपनी कंजूसी के लिए बदनाम थे। निजाम इतने थे कि वो लोगों की जूठी सिगरेट तक नहीं छोड़ते थे।

उनके पास था सबसे सस्ती सिगरेट

इतिहासकार डोमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स अपनी मशहूर किताब ”फ्रीडम ऐट मिडनाइट” में लिखते हैं कि मीर उस्मान अली अपनी कंजूसी के लिए बहुत बदनाम थे। उनके घर कोई मेहमान आता और अपनी बुझी सिगरेट छोड़ जाता तो निजाम ऐशट्रे से वह जूठी और बुझी सिगरेट उठाकर पीने लगते थे। वे अपने पास सबसे सस्ती सिगरेट रखा करते थे। वह भी कंजूसी करके ही जलाते थे।

निजाम इतने कंजूस थे कि इतने अरबपति होने के बाद भी वह टीन के बर्तन में खाना खाया करते थे। (Wikimedia Commons)
निजाम इतने कंजूस थे कि इतने अरबपति होने के बाद भी वह टीन के बर्तन में खाना खाया करते थे। (Wikimedia Commons)

टीन के बर्तन में खाते थे खाना

निजाम इतने कंजूस थे कि इतने अरबपति होने के बाद भी वह टीन के बर्तन में खाना खाया करते थे। ऐसे बर्तन जिन्हें देखते ही खाने का मन न करे। डोमिनिक लापिर और लैरी कॉलिन्स लिखते हैं कि निजाम की कंजूसी इससे समझी जा सकती है कि उनके पास इतने सोने के बर्तन थे कि उसमें एक साथ 200 लोगों को बैठाकर खाना खिला सकते थे, लेकिन खुद पुराने टीन के बर्तन में भोजन करते थे।

हड़प लेते थे लोगों की कार

निजाम हैदराबाद के पास एक से बढ़कर एक आलीशान गाड़ियां थीं। परंतु ज्यादातर गाड़ियां उन्होंने जबरजस्ती तोहफे में ली थी। लापियर और कॉलिन्स लिखते हैं कि निजाम जब कभी अपनी राजधानी की सीमा में कोई नया मोटर देखते थे, तो उसके मालिक को संदेश भेजते थे कि ‘हिज एक्जाल्टेड हाइनेस’ को उस गाड़ी को तोहफे के तौर पर पाकर बहुत खुशी होगी। 1947 तक निज़ाम के मोटरखाने में सैकड़ों ऐसी मोटरें जमा हो गईं। परंतु हद तो तब हो गई जब सैकड़ों मोटरें के बावजूद भी निजाम खुद 1918 मॉडल की एक खटारा कार से चला करते थे।

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