Nuclear Damage Act : भारत के परमाणु दायित्व कानून से संबंधित मुद्दों के कारण महाराष्ट्र के जैतापुर में छह परमाणु ऊर्जा रिएक्टर बनाने की एक दशक से अधिक पुरानी योजना में बाधा बनी हुई है। सोमवार को विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत रूसी परमाणु रिएक्टर्स के लिए साइट्स की तलाश कर रहा है। इसके अलावा प्रस्तावित जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र परियोजना पर फ्रांस के साथ बातचीत जारी है।
दरअसल, भारत का परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व कानून, 2010 (सीएलएनडी एक्ट 2010) देश के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निवेश करने वाले देशों के लिए एक चिंता का विषय है। ऐसे में भारत, अमेरिका, फ्रांस, कनाडा और रूस के घरेलू कानूनों के तहत संचालकों के दायित्व से जुड़े प्रावधानों को देखना होगा।
सभी देशों के घरेलू कानून परमाणु घटना की स्थिति में परमाणु प्रतिष्ठानों के संचालकों की जिम्मेदारियों के लिए सख्त प्रावधान हैं। यह दायित्व ‘नो-फॉल्ट सिद्धांत’ पर आधारित है, जबकि भारत और रूस के कानून अप्रत्याशित घटना, असाधारण प्रकृति की गंभीर प्राकृतिक आपदा, सैन्य अभियान, सशस्त्र संघर्ष, शत्रुता, गृह युद्ध, विद्रोह या आतंकवाद जैसे कारकों के कारण ऑपरेटरों के दायित्व के लिए कुछ अपवाद उपलब्ध करते हैं। ज्यादातर जिम्मेदारियां विशेष रूप से परमाणु प्रतिष्टानों के संचालकों की है। इसके पीछे यह तर्क है कि पीड़ितों को तत्काल और पर्याप्त मुआवजा देने के लिए ऑपरेटर की जिम्मेदारी तेजी से पूरी की जाए।
भारत के मामले में सीएलएनडी एक्ट की धारा-17 दुर्घटना होने पर संचालक को तीन मामलों में सहारा लेने का अधिकार देती है। सबसे पहले, जब लिखित अनुबंध में स्पष्ट तौर पर ये व्यवस्था दी गई हो। दूसरा, अगर परमाणु दुर्घटना आपूर्तिकर्ता की वजह से हुई हो। तीसरा, अगर परमाणु घटना क्षति पहुंचाने के लिए किसी व्यक्ति के कारण हुई हो। इन्हीं व्यापक प्रावधान से अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों में शक पैदा हो रही हैं, जो भारत में परमाणु ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित करने में रुचि रखते हैं। इसके अलावा सीएलएनडी अधिनियम, 2010 की धारा-46 किसी ऑपरेटर के खिलाफ अधिनियम के अलावा दूसरे कानूनों के तहत भी कार्यवाही के लिए इजाज़त देती है। इसे 1984 में भोपाल गैस त्रासदी और पीड़ितों को अपर्याप्त मुआवजे को ध्यान में रखते हुए रखा गया है।