Positive Thoughts:- हम सभी जानते हैं कि सकारात्मक सोच हमारे जीवन के लिए कितना आवश्यक है लेकिन फिर भी पारिवारिक समस्याओं या हम जिस समाज में रहते हैं लोगों की सोच हमारे विचारों को सकारात्मक विचार दे ही नहीं पाती। कई बार ऐसा होता है कि हमने तय किया कि हम सकारात्मकता अपने जीवन में लेंगे और हम प्रयत्न भी करते हैं लेकिन फिर किसी कारण से हमारा थॉट प्रोसेस नकारात्मकता की ओर चलने लगता है। आज हम एक ऐसी लेडी से अपने विचारों और अपने सोच को बदलने के बारे में जानेंगे जिनके विचार जिनके थॉट ने कई लोगों के जीवन को बदल कर रख दिया। हम बात कर रहे हैं ब्रह्मा कुमारी संस्था की दीदी शिवानी की। इनकी सकारात्मक सोचे कई लोगों के जीवन को बदला है। यदि आप भी अपने जीवन में कुछ बदलाव लाना चाहते हैं तो यह आज का लेख आपके लिए है।
लोग अच्छा व सुंदर बनना व दिखना चाहते हैं। इसके माध्यम से दूसरों का स्नेह, सम्मान और सहयोग पाना चाहते हैं। अधिकतर ऐसा हो नहीं पाता, क्योंकि व्यक्ति की इच्छा और उसके अनुरूप कर्म के बीच अंतर आ जाता है। जैसी इच्छा है, उसके अनुरूप सोच, विचार, वाणी व व्यवहार नहीं हो पाता है। इसमें दूसरों को दोष देने के बजाय स्वयं को बदलना जरूरी है। अपने विचारों को सकारात्मक बनाना आवश्यक है। सुंदर बनने या सबका प्यार और आदर पाने का एक ही मूलमंत्र है-सुंदर सोच को अपनाना। सुंदर सोच सकारात्मक सोच है। कई बार इसे अपनाना कठिन होता है, क्योंकि बुरे बर्ताव से आपका मन गुस्से से भर जाता है। वह उसे दंडित होते हुए देखना चाहता है। मन में आता है कि अगर ईश्वर निष्पक्ष है, तो यह इंसान मेरे साथ बुरा बर्ताव करने के बाद भी प्रसन्न क्यों है?इस प्रकार की नकारात्मक भावनाएं जन्म लेने लगती हैं, जो स्वयं के हित व स्वास्थ्य की विरोधी भी है।
सिस्टर शिवानी ने बताया की नकारात्मक विचारों के कारण व्यक्ति को घृणा, क्रोध, ईर्ष्या आदि पीड़ाओं को सहना पड़ता है। देखा जाए तो लोगों और स्थितियों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता है, पर प्रतिक्रिया में हमारे जो विचार उद्भूत होते हैं, वे हमारे अपने वश में होते हैं। यह हमारा अपना निर्णय होता है कि हम किसी के प्रति कैसा दृष्टिकोण रखें।
आप जो बोलते हैं, वह भी आपकी रचना है। शब्द अपने आप मुख से नहीं निकलते, उन्हें हम चुनते हैं। बोल चाहे मीठे हों या कड़वे, हम स्वयं शब्दों को चुनते हैं। यदि शब्द अपने आप निकलते, तो हमारे पास चुनने की शक्ति नहीं रहती। हम जानते हैं कि बाहर क्या हो रहा है, पर क्या हमें पता है कि हमारे मन के भीतर क्या हो रहा है?
हमें यह पता है कि दूसरे क्या कर रहे हैं, पर क्या हमें पता है कि हमें क्या करना चाहिए? उससे भी महत्वपूर्ण यह है कि क्या हम सचेत हैं कि हम अपने शब्द रच रहे हैं? हमारे शब्द प्रतिक्रिया हो सकते हैं, पर वे स्वचालित नहीं हैं। यदि हम सजग भाव से सोच लें और तय कर लें कि इस स्थिति में हमें अलग तरह से प्रतिक्रिया देनी है, तब हम अपने कर्म और शब्दों को चुन रहे हैं। जब हम उसे बार-बार दोहराते रहेंगे, तो वह हमारी आदत या स्वचालित प्रतिक्रिया हो जाएगी।
आदतें अपने आप नहीं बनती हैं। हम उन्हें अपनी पसंद से बनाते हैं, तभी हम अपने जीवन या समाज में इच्छित परिवर्तन ला पाते हैं।अगर हमें अपने बोल, कर्म, व्यवहार व जीवन शैली में स्वस्थ, सुखद व सही परिवर्तन लाना है, तो पहले अपनी सोच, विचार व संकल्पों को सकारात्मक व सुखदायी बनाना होगा। क्योंकि संकल्प ही हमारे सोच, विचार, भावना, शब्द, दृष्टि, वृत्ति व कृति का आधार है। संकल्प व दृष्टि से सृष्टि बनती है। सुखदायी संकल्पों के संगठित बल से ही पूरी सृष्टि सुखमय बन सकती है। हर व्यक्ति सुंदर बन सकता है।