Research on Climate Change : इस साल नेपाल से लेकर भारत के हिंदूकुश हिमालय तक ऊंचे पहाड़ों पर बर्फ की मात्रा न के बराबर है। इसका एक मात्र कारण जलावयु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग है। अब तक कुछ हिमालयी राज्यों में थोड़ी बहुत बर्फबारी हुई है परंतु कुछ जगहों पर बर्फ का नामों निशान भी नहीं है। कुल मिलाकर साल 2024 में अब तक सर्दी सूखी ही रही है। पिछले साल नवंबर में पहाड़ी इलाकों में बारिश में 80 फीसदी की कमी थी। दिसंबर में 79 फीसदी की कमी थी। इस साल जनवरी में अब तक तो 100 फीसदी की कमी है। ऐसी स्थिति में चिंता जायज़ है और इसलिए तीन राज्यों में उच्च हिमालयी झीलों की पारिस्थिति पर देश के पांच संस्थानों के विशेषज्ञ शोध करेंगे। इस शोध में जलवायु परिवर्तन के साथ ही मौसम के बदलावों पर अध्ययन होगा।
हिमालयी क्षेत्रों में जलवायु प्रदूषण के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं। बारिश, बर्फबारी, गर्मी और सर्दी का भी चक्र बदल रहा है। इसका पूरा असर तेजी से उच्च हिमालय पर पड़ रहा है। त्सोंगमो, हंसपोखरी सिक्किम में, त्सो मोरीर, संगेस्तर अरुणांचल में और उत्तराखंड के चमोली जिले के भेंकल झील की पारिस्थितिकी पर तीन सालों तक शोध होगा। जलवायु परिवर्तन का इन झीलों पर कितना असर पड़ रहा है और इसका निवारण क्या है इन्हीं सब विषयों पर जीबी पंत संस्थान अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर शोध करेंगे।
शोध में जीबी पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान, एसएसजे यूनिवर्सीटी, आईआईटी खड़गपुर, सिक्किम यूनिवर्सीटी और जीआईएस अरुणाचल मिलकर तीन सालों तक शोध करेंगे। इस शोध को करने में 9 करोड़ रुपये खर्च होंगे, जिसमें 27 लाख की पहली किस्त मिल चुकी हैं, जिससे शोध आरंभ हो चुका है।
जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे ज्यादा नुकसान हिमालय को झेलना पड़ा। हिमालय में साल-दर-साल बर्फ के पहाड़ पीछे खिसक रहे हैं। अब यहीं देखना बाकी है कि इन संस्थानों का अध्ययन क्या होता है और इसके बाद क्या निवारण निकल सकता है परंतु सर्दियों में जंगल जलना और पानी के स्रोत सूख जाना जैसे विषय बड़ी चिंता कि बात है।