Rishi Kashyap And Lord Parshuram : ऐसे तो हमलोग कई कथा और कहानियों में ऋषि कश्यप और परशुराम का नाम सुनते हैं लेकिन भगवान परशुराम और ऋषि कश्यप के बारे में ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं। आपको बता दें परशुराम जी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। इसके साथ ही कश्यप ऋषि एक वैदिक ऋषि थे, इनकी गणना सप्तर्षि गणों में की जाती थी। हिंदू मान्यता के अनुसार, वह ऋग्वेद के सात प्राचीन ऋषियों, सप्तर्षियों में से एक हैं।
ऐसा माना गया है कि प्रारंभिक काल में ब्रह्मा जी ने समुद्र और धरती पर हर प्रकार के जीवों की उत्पत्ति की। इस काल में उन्होंने अपने कई मानस पुत्रों को भी जन्म दिया, जिनमें से एक मरीची थे। कश्यप ऋषि मरीची जी के विद्वान पुत्र थे। सृष्टि की रचना में कई ऋषि मुनियों ने अपना योगदान दिया। जब हम सृष्टि के विकास की बात करते हैं तो इसका अर्थ जीव, जन्तु या मानव की उत्पत्ति से होता है।
पुराणों के अनुसार, कश्यप ऋषि के वंशज ही सृष्टि के प्रसार में सहायक हुए। कश्यप जी की 17 पत्नियां थीं, जिनके वंश से सृष्टि का विकास हुआ। कश्यप एक प्रचलित गोत्र का भी नाम है। यह एक बहुत व्यापक गोत्र है। कहते हैं कि जिस मनुष्य का गोत्र नहीं मिलता उसका गोत्र कश्यप मान लिया जाता है, क्योंकि एक परम्परा के अनुसार सभी जीवधारियों की उत्पत्ति कश्यप से हुई।
भगवान परशुराम ऋषि कश्यप के शिष्य थे। कथा के अनुसार बताया गया है कि एक बार परशुराम जी ने पूरी धरती पर विजय प्राप्त कर जब समस्त क्षत्रियों का नाश कर दिया तो उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया। जिसके बाद उन्होंने पूरी धरती को अपने गुरु कश्यप मुनि को दान कर दी, जिसके बाद कश्यप जी ने परशुराम से कहा-अब तुम मेरे देश में मत रहो। अपने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए परशुराम ने प्रत्येक रात पृथ्वी पर न रहने का संकल्प किया। वे रोजाना रात्रि में मन के समान तेज गमन शक्ति से महेंद्र पर्वत पर चले जाते थे।