Save Hasdeo Arnay : हसदेव का जंगल छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा की सीमा से लगा है। हसदेव के जंगल की कटाई फिलहाल आंदोलन के कारण बंद हो गई है। गांव वालों को भय है कि जैसे ही उनका आंदोलन धीमा पड़ेगा जंगल की कटाई फिर से शुरु हो जाएगी। जंगल को बचाने के लिए वहां के आदिवासी, पर्यावरण से जुड़े लोग और बुद्धिजीवी भी सामने आए हैं। कोयला खदान का विरोध करने वाले ग्रामीणों का कहना है कि दो सालों से पेड़ों की कटाई चल रही है लेकिन राजनीतिक दलों ने आवाज तक नहीं उठाई।
कोरबा के हसदेव में कोयले का बड़ा भंडार मिला है। केंद्र सरकार ने खदान की माइनिंग के लिए निलामी कर दी। खदान की नीलामी होते ही खनन कंपनी ने अपना काम शुरु कर दिया। ग्रामीणों का आरोप है कि खदान के लिए इतने पेड़ों की कटाई हो गई कि पूरा इलाका जंगल से मैदान में बन गया है। करीब एक दशक से कोयले के भंडार के लिए कंपनी के लोग हसदेव के लाखों पेड़ काटे जा रहे हैं। ग्रामीणों ने जब पेड़ों की कटाई के विरोध में आंदोलन किया तो उल्टे पुलिस बल तैनात कर दिया गया।
पेड़ों की कटाई किए जाने से हसदेव नदी के कैचमेंट एरिया पर भी इसका बड़ा असर पड़ेगा। हसदेव नदी पर निर्मित प्रदेश के सबसे ऊंचे मिनी माता बांगो बांध से बिलासपुर, जांजगीर-चाम्पा और कोरबा के किसानों को पानी मिलता है। जंगल मे हाथी समेत 25 से ज्यादा जंगली जीव रहते हैं। हसदेव जंगल करीब 1 लाख 70 हजार हेक्टेयर में फैला है। जंगल से सटे और आस पास के इलाकों में गोंड, लोहार, उरांव, पहाड़ी कोरवा जैसी आदिवासी जातियों के 10 हजार लोगों का घर है। भौगोलिक दृष्टि से इस जंगल को मध्य भारत का फेफड़ा भी मानते हैं। जंगल के कटने से पर्यावरण का संतुलन तो बिगड़ेगा ही 10 हजार लोगों पर भी इसका सीधा असर पड़ेगा। वहां करीब 2 हजार वर्ग किलोमीटर हाथी रिजर्व क्षेत्र है।
वर्तमान में यहां परसा ईस्ट केते बासेन खदान के लिए कुल 1136 हेक्टेयर जंगल काटा जाना है। कहा जा रहा है कि इसमें से 137 हेक्टेयर जंगल के क्षेत्र को काटा जा चुका है। क्षेत्र में लगभग 23 कोल ब्लॉक प्रस्तावित हैं, कोयले का अकूत भंडार यहां समाया हुआ है। पर्यावरण एक्टिविस्ट आलोक शुक्ला की मानें तो यहां से लगभग 700 लोगों को विस्थापित किया जाएगा, जबकि लगभग 4 लाख पेड़ों की कटाई होगी। एक तरह से समृद्ध वन पूरी तरह से साफ हो जाएगा।