शुभांशु शुक्ला के जरिए भारत की अंतरिक्ष में वापसी: एक्सियम-4 मिशन क्यों है ऐतिहासिक ?

भारत एक बार फिर अंतरिक्ष की ऊंचाइयों की ओर बढ़ रहा है। 1984 में राकेश शर्मा के बाद पहली बार एक भारतीय एस्ट्रोनॉट अंतरिक्ष की यात्रा पर निकलने को तैयार है। भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला, अमेरिका की एक्सियम स्पेस कंपनी के मिशन "एक्सियम-4" (Axiom-4 )के जरिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर 14 दिनों का प्रवास करेंगे। यह न केवल भारतीय अंतरिक्ष इतिहास का अहम पड़ाव है, बल्कि भविष्य के स्वदेशी मानव मिशन गगनयान की ओर एक निर्णायक कदम भी है।
मिशन के दौरान शुभांशु शुक्ला आउटरीच गतिविधियों का भी हिस्सा होंगे।
मिशन के दौरान शुभांशु शुक्ला आउटरीच गतिविधियों का भी हिस्सा होंगे।
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शुभांशु शुक्ला भारतीय वायुसेना के एक कुशल और प्रशिक्षित ग्रुप कैप्टन हैं। उनका चयन भारत सरकार और इसरो द्वारा विशेष रूप से एक्सियम-4 मिशन (Axiom-4 Mission) के लिए किया गया है। शुभांशु शुक्ला मिशन में पायलट की भूमिका निभाएंगे, यानी वे स्पेसक्राफ्ट की उड़ान, आईएसएस से जुड़ने की प्रक्रिया, पृथ्वी पर वापसी और सुरक्षित लैंडिंग में महत्वपूर्ण भूमिका में रहेंगे।

बचपन से ही विज्ञान और उड़ान में रुचि रखने वाले शुभांशु, अब उन गिने-चुने भारतीयों में शामिल हो जाएंगे जिन्होंने धरती के बाहर अंतरिक्ष को छुआ है।

यह मिशन अमेरिका की निजी कंपनी एक्सियम स्पेस, नासा और स्पेसएक्स के सहयोग से संचालित किया जा रहा है। यह कंपनी का चौथा मानव मिशन है, जिसे कमर्शियल स्पेस मिशन कहा जाता है। इस मिशन के तहत पहली बार कोई भारतीय एस्ट्रोनॉट अंतरिक्ष में जा रहा है। इसके अलावा, हंगरी, पोलैंड और अमेरिका के तीन अन्य एस्ट्रोनॉट भी इस मिशन में शामिल हैं।

मिशन को नासा के फ्लोरिडा स्थित केनेडी स्पेस सेंटर से स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया जाना था। पहले इसकी लॉन्चिंग मई के आखिरी सप्ताह में होनी थी, फिर 8 जून को टाल दी गई और अब तकनीकी कारणों से इसे फिर से आगे बढ़ा दिया गया है।

भारत सरकार ने इस मिशन के तहत एक एस्ट्रोनॉट सीट खरीदी है, जिसकी कीमत करीब 550 करोड़ रुपये है। यही सीट भारत के लिए एक्सियम मिशन (Axiom Mission) में प्रवेश का रास्ता बनी। भारत की ओर से इस सीट पर ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला को भेजा जा रहा है।

भारत के लिए महत्वपूर्ण है यह मिशन

भारत ने 1984 में विंग कमांडर राकेश शर्मा को सोवियत मिशन के जरिए अंतरिक्ष भेजा था। उसके बाद से कोई भी भारतीय नागरिक (सरकारी रूप से भारत द्वारा भेजा गया) अंतरिक्ष में नहीं गया। कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स भले ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय मूल की पहचान रखती हैं, लेकिन वे अमेरिकी नागरिक थीं।

विज्ञान विशेषज्ञ पल्लव बागला बताते हैं कि यह मिशन गगनयान मिशन की तैयारी का हिस्सा है। गगनयान भारत का पहला स्वदेशी मानव मिशन होगा, जिसे भारतीय रॉकेट से श्रीहरिकोटा से अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। गगनयान को 2027 में लॉन्च करने की योजना है।

प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच एक समझौते के तहत भारत को यह अवसर मिला है। एक्सियम-4 मिशन (Axiom-4 Mission) भारत को मानव मिशन की तकनीकी, प्रशिक्षण और अनुभव के क्षेत्र में कई अहम जानकारियाँ देगा।

भारत सरकार ने इस मिशन के तहत एक एस्ट्रोनॉट सीट खरीदी है I
भारत सरकार ने इस मिशन के तहत एक एस्ट्रोनॉट सीट खरीदी है I

एक्सियम-4 मिशन (Axiom-4 Mission) में पायलट के तौर पर शुभांशु शुक्ला की जिम्मेदारी काफी अहम होगी। उन्हें स्पेसक्राफ्ट की संपूर्ण निगरानी करनी होगी:

  • लॉन्चिंग के समय नियंत्रण

  • ऑर्बिट में पहुंचने की प्रक्रिया

  • अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से डॉकिंग (जुड़ना)

  • मिशन के दौरान पृथ्वी पर कंट्रोल सेंटर से संपर्क

  • वापसी और लैंडिंग की निगरानी

एक्सियम-4 (Axiom-4 ) एक वैज्ञानिक, तकनीकी और कमर्शियल मिशन है। इसमें करीब 60 वैज्ञानिक प्रयोग (experiments) किए जाएंगे, जिनमें से सात प्रयोग भारत के वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तावित हैं।

  • इन प्रयोगों में शामिल हैं:

  • बीज अंकुरण पर अध्ययन

  • अंतरिक्ष में पौधे कैसे उगते हैं

  • जीरो ग्रैविटी में जैविक प्रक्रियाओं का व्यवहार

  • अंतरिक्ष में एस्ट्रो-बायोलॉजी से संबंधित प्रयोग

यह पहली बार होगा जब भारत जैविक प्रयोग अंतरिक्ष में भेजेगा और उन्हें वापस भी लाया जाएगा। इसके अलावा इस मिशन में इसरो और नासा की साझेदारी से पांच अन्य प्रयोग भी शामिल हैं, जिनके विवरण अभी सार्वजनिक नहीं किए गए हैं।

मिशन के दौरान शुभांशु शुक्ला आउटरीच गतिविधियों का भी हिस्सा होंगे। इसमें वे लखनऊ स्थित अपने पुराने स्कूल के छात्रों से अंतरिक्ष से संवाद करेंगे। इसके अलावा भारतीय वैज्ञानिकों और स्टार्टअप्स से भी बातचीत होगी। खबर है कि वे एक महत्वपूर्ण वीआईपी से भी अंतरिक्ष से संवाद करेंगे – जैसा कि 1984 में राकेश शर्मा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से किया था।

यह पहली बार होगा जब भारत जैविक प्रयोग अंतरिक्ष में भेजेगा और उन्हें वापस भी लाया जाएगा।
यह पहली बार होगा जब भारत जैविक प्रयोग अंतरिक्ष में भेजेगा और उन्हें वापस भी लाया जाएगा।

अंतरिक्ष में भारतीय विज्ञान की नई उड़ान

इस मिशन के जरिए भारत ने पहली बार एक अंतरराष्ट्रीय कमर्शियल अंतरिक्ष मिशन में भाग लिया है। इसके जरिये भारत को अंतरिक्ष तकनीक के ह्यूमन स्पेसफ्लाइट क्षेत्र में व्यावहारिक अनुभव मिलेगा।

गगनयान मिशन के तहत भारत अपने चार एस्ट्रोनॉट्स को 400 किमी की कक्षा में तीन दिनों के लिए भेजने की योजना बना चुका है। इसके लिए चार अंतरिक्ष यात्री पहले ही चुने जा चुके हैं और शुभांशु शुक्ला उनमें से एक हैं।

जब 1984 में राकेश शर्मा अंतरिक्ष गए थे, वह एक राजनयिक मिशन था – भारत और सोवियत संघ की मित्रता का प्रतीक। भारत ने उसके लिए कोई भुगतान नहीं किया था। लेकिन एक्सियम-4 (Axiom-4 )पूरी तरह व्यावसायिक है। इसमें भारत ने सीट खरीदी है, प्रशिक्षण लिया है और अंतरिक्ष में वैज्ञानिक प्रयोग भेजे हैं।

भविष्य की योजना

  • 2027 में भारत का गगनयान मिशन

  • 2035 तक भारत का खुद का स्पेस स्टेशन स्थापित करने की योजना

  • भविष्य में भारतीय रॉकेट से चांद पर मनुष्य को भेजना

प्रधानमंत्री मोदी ने इसरो को यह स्पष्ट लक्ष्य दिया है और एक्सियम-4 मिशन (Axiom-4 Mission) इसी दिशा में पहला ठोस कदम माना जा रहा है।

निष्कर्ष

शुभांशु शुक्ला की यह उड़ान केवल अंतरिक्ष की नहीं, बल्कि भारत के आत्मनिर्भर और वैज्ञानिक प्रगति की ओर एक मजबूत संकेत है। 550 करोड़ रुपये की लागत, अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण और मिशन में शामिल वैज्ञानिक प्रयोगों के जरिए भारत ने अपनी तकनीकी दृष्टि का प्रदर्शन किया है।

जिस तरह एक बच्चा पहले घुटनों के बल चलता है और फिर दौड़ना सीखता है, ठीक वैसे ही एक्सियम-4 (Axiom-4)को गगनयान मिशन की नींव माना जा रहा है। यह मिशन सिर्फ एक भारतीय की अंतरिक्ष यात्रा नहीं, बल्कि एक राष्ट्र की नई अंतरिक्ष यात्रा का पहला अध्याय है।

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