प्लास्टिक प्रदूषण से मिलेगा छुटकारा, वैज्ञानिकों ने बनाया खुद ही नष्ट हो जाने वाला प्लास्टिक

हर दिन 2,000 कचरा ट्रकों के बराबर का प्लास्टिक दुनिया के महासागरों, नदियों और झीलों में फेंक दिया जाता है। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक नई तरह का प्लास्टिक विकसित किया है जो खुद ही खत्म हो जाता है।
Self Digesting Plastic : प्लास्टिक के सामानों को पूरी तरह से नष्ट होने में कई सौ सालों तक का समय लगता है।(Wikimedia Commons)
Self Digesting Plastic : प्लास्टिक के सामानों को पूरी तरह से नष्ट होने में कई सौ सालों तक का समय लगता है।(Wikimedia Commons)

Self Digesting Plastic : रोज इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक इंसानों की सबसे बड़ी मुसीबत बनी हुई है। यह एक ऐसी वैश्विक समस्या है जिसे खुद इंसानों ने बनाया है। प्लास्टिक के सामानों को पूरी तरह से नष्ट होने में कई सौ सालों तक का समय लगता है। हर दिन 2,000 कचरा ट्रकों के बराबर का प्लास्टिक दुनिया के महासागरों, नदियों और झीलों में फेंक दिया जाता है। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक नई तरह का प्लास्टिक विकसित किया है जो खुद ही खत्म हो जाता है। उन्होंने पॉलीयूरीथेन प्लास्टिक में एक बैक्टीरिया को मिलाया है। यह बैक्टीरिया प्लास्टिक खा जाता है और इस प्रकार प्लास्टिक खुद ही खत्म हो जाता है।

कैसे करेगा ये काम

प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका नेचर कम्यूनिकेशंस में छपे एक शोध में इस प्लास्टिक के बारे में बताया गया है। शोधकर्ताओं के अनुसार इस प्लास्टिक में मिलाया गया बैक्टीरिया तब तक निष्क्रिय रहता है जब तक कि प्लास्टिक इस्तेमाल में रहता है। लेकिन जैसे ही वह कूड़ा- कर्कट में मौजूद तत्वों के संपर्क में आयेगा, तो सक्रिय हो जाएगा और प्लास्टिक को खाने लगेगा।

हर दिन 2,000 कचरा ट्रकों के बराबर का प्लास्टिक दुनिया के महासागरों, नदियों और झीलों में फेंक दिया जाता है। (Wikimedia Commons)
हर दिन 2,000 कचरा ट्रकों के बराबर का प्लास्टिक दुनिया के महासागरों, नदियों और झीलों में फेंक दिया जाता है। (Wikimedia Commons)

क्या नाम है इस बैक्टीरिया का

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने जो नई तरह का प्लास्टिक विकसित किया है, फिलहाल वह प्रयोगशाला में ही है लेकिन कुछ ही साल में यह इस्तेमाल के लिए तैयार हो सकता है। इस प्लास्टिक में जो बैक्टीरिया मिलाया गया है उसे बैसिलस सबटिलिस कहा जाता है। यह बैक्टीरिया खाने में एक प्रोबायोटिक के रूप में खूब इस्तेमाल होता है। लेकिन अपने कुदरती रूप में यह बैक्टीरिया प्लास्टिक में नहीं मिलाया जा सकता। इसके लिए उसे जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से तैयार करना पड़ता है ताकि वह प्लास्टिक बनाने के लिए जरूरी अत्यधिक तापमान को सहन कर सके।

प्लास्टिक प्रदूषण घटाने में करेगा मदद

ऐसे तो प्लास्टिक को खत्म करना मुश्किल होता है क्योंकि उसका रासायनिक स्वभाव बेहद जटिल होता है। एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक प्लास्टिक का इस्तेमाल तीन गुना हो जाने की संभावना है। इस कारण प्लास्टिक की रीसाइक्लिंग की कोशिशें बहुत कामयाब नहीं हो पाई हैं। इसलिए बहुत से वैज्ञानिक मानते हैं कि खुद ही खत्म हो जाने वाला प्लास्टिक प्रदूषण घटाने में ज्यादा कारगर साबित हो सकता है।

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