बिहार जाति सर्वेक्षण: लालबेगी समुदाय आज भी जाति के लिए हो रहे है अपमानित

ये जाति के लोग केवल हिंदू नही हैं बल्कि मुसलमान भी है। हालांकि पहले ये हिंदू रहे होंगे और वर्ण एवम् जाति के आधार पर भेदभाव तथा घृणा के कारण इन लोगों ने इस्लाम कबूल कर लिया होगा
Caste Introduction - संविधान में आरक्षण के बाद भी  कुछ मुट्ठी भर लोग शासन-प्रशासन में भागीदार अवश्य बने हैं, लेकिन उनकी सामाजिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया (Wikimedia Commons)
Caste Introduction - संविधान में आरक्षण के बाद भी कुछ मुट्ठी भर लोग शासन-प्रशासन में भागीदार अवश्य बने हैं, लेकिन उनकी सामाजिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया (Wikimedia Commons)
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Caste Introduction - किसी चौराहे के एक चाय के दुकान में यदि हिंदू - मुस्लिम धर्म के नाम पर बहस छिड़ जाए तो दोनों ही धर्म के लोगो का खून खौलने लगेगा और न जाने कितनो के सिर फट जायेंगे या हाथ खून से लथपथ होजाएंगे , यदि यही कोई किसी एक ही धर्म के उच्च जाति के लोग किसी दलित जाति या निचली जाति के व्यक्ति के साथ गाली गलौच करे या उसका अपमान करे तो शायद ही किसी को ये नज़ारा देख गुस्सा आयेगा, वे यही सोचेंगे की इनका जन्म गाली गलौच सुनने के लिए ही हुआ है। यही मानसिकता लोगों के मन में सालों से घर कर गई है और शायद ही इस सोच के लिए खुद के मन में उन्हें पश्चाताप की भावना आयेगा। दरहसल, यही सोच का शिकार लालबेगी जाति के लोग हो रहे है।

ये जाति के लोग केवल हिंदू नही हैं बल्कि मुसलमान भी है। हालांकि पहले ये हिंदू रहे होंगे और वर्ण एवम् जाति के आधार पर भेदभाव तथा घृणा के कारण इन लोगों ने इस्लाम कबूल कर लिया होगा लेकिन धर्म बदलने से इनका पेशा नहीं बदला। पेशा तो वही रहा साफ-सफाई का। आज भी दोनों मजहबों में शामिल ये लोग यही करते हैं। वे सड़कें, गंदी नालियां, मल-मूत्र साफ करने वाले।

 यदि ये जातियां शिक्षा को अपनाले और एक जुट होकर इस लड़ाई को लड़े तो अपना लोहा मनवा लेंगे। (Wikimedia Commons)
यदि ये जातियां शिक्षा को अपनाले और एक जुट होकर इस लड़ाई को लड़े तो अपना लोहा मनवा लेंगे। (Wikimedia Commons)

इनके अलग - अलग नाम है जैसे हिंदू धर्म में कहने को वाल्मीकि और काम के आधार भंगी या चूहड़ा हैं, वैसे ही ऊंची जातियें वाले मुसलमानों ने भी इन्हे ‘हसनती’ कहा है । दोनों मजहबों के आधार पर देखें तो अनेक नाम हैं। ये सारे नाम अलग-अलग जातियां हैं। जैसे कि हेला, डोम, हलालखोर, भंगी, चूहड़ा, बांसफोड़, नामशूद्र, मातंग, मेहतर, महार, सुपच, बेदा, बोया, हंटर, मजहबी और कोली।

संविधान में आरक्षण के बाद भी सिर्फ कुछ मुट्ठी भर लोग शासन-प्रशासन में भागीदार अवश्य बने हैं, लेकिन उनकी सामाजिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। यह आज भी वैसा ही है जैसे एक समय डॉ. भीमराव आंबेडकर विदेश से पढ़ कर आए थे और इन्हे देखा था जिसकी पीड़ा उन्होंने ‘वेटिंग फॉर वीजा’ में व्यक्त की है।

ति में शामिल हैं। यह डॉ. आंबेडकर का सपना था कि सभी संगठित होकर एक हों व संघर्ष करें। (Wikimedia Commons)
ति में शामिल हैं। यह डॉ. आंबेडकर का सपना था कि सभी संगठित होकर एक हों व संघर्ष करें। (Wikimedia Commons)

लालबेगी , हेला, डोम, हलालखोर, भंगी, चूहड़ा, बांसफोड़, नामशूद्र, मातंग, मेहतर, महार, सुपच, बेदा, बोया, हंटर और कोली ये एकजुट नहीं हैं। सब बंटे हैं और उपेक्षित हैं। जबकि संविधान की नजर में ये सभी अनुसूचित जाति में शामिल हैं। यह डॉ. आंबेडकर का सपना था कि सभी संगठित होकर एक हों व संघर्ष करें। आज इन जातियों के लोग उनकी पूजा जरूर करते हैं, फूल चढ़ाते हैं, लेकिन उनकी मूल शिक्षा को ही भूल जाते हैं उन्होंने कहा था– ‘शिक्षित बनो, सगठित बनो और संघर्ष करो’। यदि आज भी ये जातियां हार न मान कर शिक्षा को अपना परम मित्र बना ले और एक जुट होकर इस लड़ाई को लड़े तो वो दिन दूर नही जब ये अपना लोहा मनवा लेंगे।

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