अजमेर सेक्स कांड: तीन दशक बाद भी पीड़िताओं को नहीं मिला पूर्ण रूप से न्याय

अजमेर सेक्स कांड 1990 के दशक का सबसे जाना माना सेक्स स्कैंडल है। जिसमे सौ से ज़्यादा स्कूली और कॉलेज की बच्चियों को फंसाकर उनके साथ बलात्कार किया गया, लेकिन आज 30 साल बाद भी पीड़िताएँ न्याय की तलाश में हैं। अपराधियों ने खुली हवा में जिंदगी जी ली, जबकि पीड़िताओं ने अपना सब कुछ खो दिया।
अजमेर सेक्स कांड
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अजमेर सेक्स कांड

साल 1989 से 1992 के बीच अजमेर (Ajmer) शहर में यह बड़ा अपराध हो रहा था। अजमेर दरगाह (Ajmer Dargah) से जुड़े कुछ प्रभावशाली परिवारों के लड़के और उनके साथी स्कूली और कॉलेज की बच्चियों को कभी पढ़ाई मै मदद करने के बहाने से, कभी दोस्ती या प्यार के जाल में फँसाते थे और उनका गलत फ़ायदा उठाया करते।

इसके बाद उन्हें अलग-अलग जगह बुलाया जाता, कभी फार्महाउस (Farmhouse), कभी किसी निजी घर। वहाँ उनकी गुप्त रूप से अश्लील तस्वीरें खींची जातीं। फिर उन्हीं तस्वीरों से उन्हें धमकाया जाता, “अगर हमारी बात नहीं मानी तो ये फोटो सबको दिखा देंगे।” डर के कारण बच्चियाँ चुप हो जातीं और बार-बार उनका यौन शोषण किया जाता। धीरे-धीरे यह जाल फैलता गया। शुरू में कुछ पीड़िताएँ थीं, लेकिन देखते-देखते सौ से भी ज़्यादा लड़कियाँ इस कांड का शिकार बन गईं।

अप्रैल 1992 में दैनिक नवज्योति (Dainik Navjyoti) अखबार ने जब यह मामला तस्वीरों के साथ उजागर किया, तब पूरे अजमेर (Ajmer) यह घटना सुनके हिल गया। स्कूल बंद कर दिए गए, लोग सड़कों पर उतर आए और बच्चियों के माता-पिता सहम गए। लेकिन सबसे बड़ा दुख यह था कि पीड़िताओं के लिए असली मुसीबत तब शुरू हुई जब उन्हें न्याय के लिए अदालतों के चक्कर लगाने पड़े।

पीड़िताओं की जिंदगी

अजमेर सेक्स कांड (Ajmer Sex Scandal) ने इन लड़कियों की पूरी जिंदगी बदल दी या यु कहे की बर्बाद करदी। जिनके साथ यह अपराध हुआ, उन्हें समाज ने अपनाने के बजाय ठुकरा दिया। बहुत-सी लड़कियों को उनके परिवार और ससुराल ने छोड़ दिया। मोहल्ले में उनका मज़ाक उड़ाया गया, शादी टूट गई और उनके पति ने शादी के थोड़े समय बाद ही उन्हें छोड़ दिया।

कुछ लड़कियाँ इस बोझ को सह न सकीं और आत्महत्या कर ली। जिन्होंने जीने की कोशिश की, वे भी अदालत में बार-बार बुलाए जाने से टूट गईं। उन्हें हर बार वही दर्दनाक घटना बयान करनी पड़ती, वही तस्वीरें सामने आतीं, वही सवाल पूछे जाते। एक पीड़िता ने कहा था, “अदालत जाना मतलब फिर से वही दर्द जीना।”

आज जब यह केस 32 साल पुराना हो चुका है, तब भी कुछ पीड़िताएँ, जो अब माँ और दादी बन चुकी हैं, अदालत में जाकर बयान देती हैं। सोचिए, जिन्हें अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना था, वे अब भी उसी दर्दनाक अतीत की कैद में जी रही हैं।

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अजमेर सेक्स कांड और भारतीय न्याय व्यवस्था

इस कांड ने भारत (India) की न्याय व्यवस्था (Justice System) की सबसे बड़ी कमज़ोरी उजागर कर दी। यहाँ सबूत भी थे, तस्वीरें भी थीं, गवाह भी थे और सौ से ज़्यादा पीड़िताएँ थीं। फिर भी इस केस को निपटने में 30 साल लग गए।

कुल 18 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई। कुछ को निचली अदालतों ने सज़ा दी, लेकिन ऊँची अदालतों में वे बरी हो गए। कुछ आरोपी सालों तक फरार रहे। 2012 में सलिम चिश्ती नाम का आरोपी लगभग 20 साल बाद आत्मसमर्पण करके अदालत पहुँचा।

आख़िरकार अगस्त 2024 में अजमेर की अदालत ने पोक्सो (POCSO) के तहत छह आरोपियों, नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ़ टार्ज़न, सलिम चिश्ती, इक़बाल भाटी, सुहैल ग़नी और सैयद ज़मीर हुसैन, को आजीवन कारावास (Life Sentence) की सज़ा सुनाई। अदालत ने हर आरोपी पर पाँच लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया और आदेश दिया कि पीड़िताओं को सात-सात लाख रुपये का मुआवज़ा दिया जाए।

लेकिन यह फैसला आने मै बहुत देर लग गई। तब तक कई पीड़िताएँ आत्महत्या कर चुकी थीं, कई थककर केस से हट गईं और कईयो का जीवन बर्बाद हो चुका था। आरोपी दशकों तक खुलकर समाज में घूमते रहे, जबकि पीड़िताएँ अदालतों के चक्कर काटती रही और समाज के ताने सुनती रहीं।

यह कांड सिर्फ अदालत (Court) या पुलिस (Police) की नाकामी नहीं दिखाता, बल्कि हमारे समाज (Society) का भी चेहरा सामने लाता है। पुरुष अपराधी खुलेआम जीते हैं और समाज उन्हें “जवान खून है, गलती हो जाती है” कहकर माफ़ कर देता है। लेकिन वही समाज पीड़ित लड़कियों को हमेशा दोषी मानता है। वे लड़कियाँ जो बिल्कुल निर्दोष थीं, उन्हें ही बदनाम कर दिया गया।

वे लड़कियाँ जो बिल्कुल निर्दोष थीं, उन्हें ही बदनाम कर दिया गया।
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निष्कर्ष

अजमेर सेक्स कांड (Ajmer Sex Scandal) हमें यह याद दिलाता है कि न्याय में देरी, न्याय से इनकार के बराबर है (Justice delayed, is justice denied) अगर किसी केस को निपटने में 30 साल लग जाएँ, तो उसका क्या मतलब रह जाता है? पीड़िताओं ने अपना बचपन, अपनी मासूमियत, अपना भविष्य और अपनी इज्ज़त खो दी। अपराधियों को देर से मिली सज़ा उनके लिए सुकून या ख़ुशी नहीं ला सकती की जिन्होंने उनके साथ कुकर्म किया उन्हें अपनी गलतियों की सज़ा मिली।

यह मामला हम सब से एक बड़ा सवाल पूछता है: क्या भारत कभी ऐसी न्याय व्यवस्था बना पाएगा जो पीड़ितों को सुरक्षा और सम्मान दे सके? या फिर हमेशा की तरह अपराधियों को ही फायदा होता रहेगा और पीड़िताएँ ही बोझ उठाती रहेंगी और डर डरके जीती रहेंगी?

(Rh/BA)

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